चीन की बढ़ी ताकत और उसे नियंत्रित करने की अमेरिकी कोशिश ने दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया को विश्व शक्ति समीकरणों का मुख्य मंच बना दिया है। इसके बीच छोटे से छोटे देश की अहमियत बन गई है। नेपाल को भी उसका फायदा मिल रहा है।
यह बात नेपाल के टीकाकार भी कहते हैं कि अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में आज उनके देश को जितना महत्त्व मिल रहा है, वैसा पहले कभी नहीं हुआ। संभवतः इसकी वजह यही रही होगी कि पहले कभी दुनिया का यह हिस्सा भू-राजनीतिक होड़ का वैसा केंद्र नहीं था, जैसा इस समय बन गया है। चीन की बढ़ी ताकत और उसे नियंत्रित करने की अमेरिकी कोशिश ने दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया को विश्व शक्ति समीकरणों का मुख्य मंच बना दिया है। इसके बीच छोटे से छोटे देश की अहमियत बन गई है। नेपाल को भी फिलहाल उसका फायदा मिल रहा है, हालांकि लंबे समय इस क्षेत्र के हर देश के सामने यह तय करने की चुनौती आएगी कि वह किसके साथ है। फिलहाल नेपाल में कम्युनिस्ट प्रभाव वाली सरकार बनने के बावजूद अमेरिका ने उसे अपने पाले में लाने की कोशिशों में कोई ढील नहीं दी है। जबकि आम धारणा है कि हालिया घटनाक्रम से स्थितियां चीन की तरफ झुकी हैं।
बहरहाल, अमेरिकी अधिकारियों का नेपाल दौरा पूर्व निर्धारित कार्यक्रमों के मुताबिक जारी है। यूएस एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (यूसएड) की प्रशासक समांत पॉवर इस मंगलवार को यहां पहुंचीं। इसी बीच यह जानकारी सामने आई कि अगले हफ्ते अमेरिका की उप सहायक विदेश मंत्री आफरीन अख्तर यहां आएंगी। इसके कुछ दिन पहले ही अमेरिका की राजनीतिक मामलों की उप मंत्री विक्टोरिया नुलैंड ने काठमांडू की यात्रा की। उन्होंने यहां विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं के साथ बातचीत की थी। उस दौरान उन्होंने नेपाल के नेताओं को आगाह किया कि पड़ोसी देशों से संबंध बनाते समय उन्हें सावधानी बरतनी चाहिए। खास कर ऐसा आर्थिक मामलों में करना चाहिए। स्पष्टतः नुलैंड का इशारा चीन की तरफ था। हाल ही में अमेरिकी पत्रिका फॉरेन पॉलिसी में छपे एक विश्लेषण में अमेरिकी रणनीति में नेपाल के बढ़ते महत्त्व की चर्चा की गई है। इसमें कहा गया कि चीन के साथ बढ़ती होड़ के कारण अमेरिका ने अपनी रणनीति में नेपाल को खास लक्ष्य बना लिया है। आम समझ है कि फॉरेन पॉलिसी पत्रिका में छपे विचार आम तौर पर अमेरिका की रणनीतिक सोच के अनुरूप होते हैं।