अब खबर आई है कि जर्मनी के कई अस्पतालों पर दिवालिया होने का खतरा मंडरा रहा है। ये अस्पताल अपना खर्च उठा पाने में असमर्थ हो गए हैं। कर्मचारियों की संख्या के लिहाज से भी वहां स्थिति चिंताजनक है।
जर्मनी मंदी में है। वहां ऊर्जा संकट का हाल यह है कि आबादी का एक हिस्सा लकड़ियां जला कर सर्दी में गर्मी पा रहा है। कई उद्योग बंद होने के कगार पर हैं और जो नहीं हुए हैं, वे वैश्विक प्रतिस्पर्धा से बाहर होने के अंदेशे से ग्रस्त हैँ। अब खबर आई है कि जर्मनी के कई अस्पतालों पर दिवालिया होने का खतरा मंडरा रहा है। ये अस्पताल अपना खर्च उठा पाने में असमर्थ हो गए हैं। अस्पतालों में कर्मचारियों के लिहाज से खास तौर पर नर्सों के मामले में स्थिति चिंताजनक है। 2022 के मध्य में लगभग 90 फीसदी अस्पतालों को जनरल वार्ड के लिए नर्सों की भर्ती करने में दिक्कत हो रही थी। जनरल वार्ड के लिए नर्सों के खाली पड़े पदों की संख्या पिछले साल के 14,400 से बढ़ कर अब 20,600 तक जा पहुंची है। सहज सवाल है कि एक अमीर देश के अस्पतालों की ये हालत कैसे हो गई? बल्कि उचित सवाल यह होगा कि जर्मनी अचानक इतने मोर्चों पर संकट से ग्रस्त कैसे हो गया? इसका छोटा उत्तर है कोरोना महामारी। लेकिन बड़ा उत्तर है यूक्रेन संकट, जिसमें जर्मनी बढ़-चढ़ कर अमेरिकी रणनीति का हिस्सा बना।
रूस को अलग-अलग करने की इस रणनीति में जर्मनी ने अपना जो नुकसान किया है, उससे उबरने में उसे बहुत लंबा वक्त लगेगा। जर्मनी अपनी ऊर्जा जरूरत के लिए काफी हद तक रूस पर निर्भर था। वह स्रोत बंद होना उसे बहुत भारी पड़ा है। अब संघीय सरकार ने अस्पतालों को ऊर्जा की ऊंची कीमतों से राहत देने के लिए आर्थिक मदद दी है। लेकिन अस्पतालों को जो दूसरे तरह के जो घाटे हो रहे हैं, उनकी भरपाई इससे नहीं की जा सकेगी। आम महंगाई बढ़ने के कारण अस्पतालों का सामान्य खर्च भी बहुत ज्यादा बढ़ गया है। 2023 में इसके कारण होने वाला नुकसान और बढ़ कर 15 अरब डॉलर तक पहुंचने की आशंका है। एक सर्वे के मुताबिक जर्मनी के 59 फीसदी अस्पताल 2022 में नुकसान में चले जाएंगे। 2021 में यह हालत 43 फीसदी अस्पतालों की थी। जब अस्पताल बीमार हो जाएं, तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि वह कैसी बीमारी के कगार पर है।