जर्मन अर्थव्यवस्था के लिए दिसंबर और पूरे 2021 के जारी हुए आंकड़े दिखाते हैं कि रहन-सहन के दामों में केवल 2021 के दौरान 3.1 फीसदी की बढोत्तरी हुई। इसका कारण ऊर्जा की ऊंचीं कीमतों के अलावा सप्लाई चेन का अवरुद्ध होना भी रहा, जिसकी स्थिति कोरोना महामारी के कारण पैदा हुई।
महंगाई का जो दौर इस वक्त दुनिया में है, उसका कारवां यूरोप भी पहुंच चुका है। ताजा खबर जर्मनी से है। जर्मनी में तीन दशक से भी लंबे वक्त के बाद भोजन जैसी बुनियादी चीजों और ईंधन के दामों तेज उछाल देखा जा रहा है। इससे यूरोपीय सेंट्रल बैंक के प्रति गुस्सा बढ़ रहा है। जर्मन अर्थव्यवस्था के लिए दिसंबर और पूरे 2021 के जारी हुए आंकड़े दिखाते हैं कि रहन-सहन के दामों में केवल 2021 के दौरान 3.1 फीसदी की बढोत्तरी हुई। इसका कारण ऊर्जा की ऊंचीं कीमतों के अलावा सप्लाई चेन का अवरुद्ध होना भी रहा, जिसकी स्थिति कोरोना महामारी के कारण पैदा हुई। इसके अलावा देश में लंबे वैल्यू ऐडेड टैक्स पर मिलने वाली छूट खत्म होने का भी इसमें हाथ रहा। 1993 से यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था जर्मनी में इतनी महंगाई देखने को नहीं मिली थी। जब जर्मनी का यह हाल है, तो कमजोर अर्थव्यवस्था वाले दूसरे यूरोपीय देशों की स्थिति समझी जा सकती है। विशेषज्ञों के मुताबिक यूरोपीय सेंट्रल बैंक (ईसीबी) कीमतें स्थिर रखने में नाकाम रहा है। इसकी 'चीप मनी पॉलिसी' ने हालात और खराब कर दिए हैं। चीप मनी पॉलिसी का मतलब अंधाधुंध नोटों की छपाई है।
ईसीबी का कहना है कि ब्याज दर कम रखने और 1.85 ट्रिलियन यूरो कीमत के 'पैनडेमिक इमरजेंसी बॉन्ड' खरीदने का इसका फैसला अर्थव्यवस्था को कोरोना के असर से बचाने के लिए जरूरी था। इसी लिए नोट छापे गए। कई विशेषज्ञ मानते हैं कि ईसीबी की जीरो ब्याज दर की नीति भी अब नुकसानदेह साबित हो रही है। इससे आम इनसान की संपत्तियों का नुकसान हो रहा है। ईसीबी की इस पॉलिसी की वजह से बचत करनेवाले लोग लंबे वक्त से बैंक को लेकर आशंकित रहे हैं। इस पॉलिसी के तहत बाजार में पैसों या कम ब्याज पर क्रेडिट की उपलब्धता बढ़ा दी जाती है। इसी के जरिए महंगाई को नियंत्रण में रखने की कोशिश की जाती है। अधिकारी भरोसा बंधाने की कोशिश में हैं हैं कि ये बढ़ी हुई कीमतें भविष्य में नीचे आएंगी। लेकिन लोग उनकी बात पर भरोसा करने को तैयार नहीं दिखते। जर्मनी की अर्थव्यवस्था को मजबूत समझा जाता है। लेकिन अब इसका लाभ आम नागरिकों को होता नहीं दिखता। इसलिए जारी आर्थिक नीतियों के प्रति असंतोष बढ़ रहा है। अगर इसका समाधान नहीं ढूंढा गया, तो फिर असंतोष गंभीर रूप से ले सकता है।
महंगाई की मुसीबत
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