जर्मनी बाकी यूरोप की भावना को दरकिनार कर चीन के साथ संबंध बढ़ाने का फैसला कर लिया है। उसने साफ संदेश दिया है कि चीन को दंडित करने के लिए वह अपनी मुसीबत नहीं बढ़ाएगा।
जर्मनी ने जैसे यह कह दिया है कि अब बहुत हुआ- पश्चिमी वर्चस्व को कायम रखने की रणनीति पर इससे ज्यादा पालन संभव नहीं है। तो जर्मन चांसलर ओलोफ शोल्ज ने बाकी यूरोपीय देशों की भावना को दरकिनार कर चीन के साथ संबंध आगे बढ़ाने का फैसला कर लिया है। जर्मनी की अपनी मुसीबत है। रूस को दंडित करने की कोशिश में उसने खुद को दंडित कर लिया है। रूसी प्राकृतिक गैस की सप्लाई घटने और ऊर्जा की महंगाई के कारण उसकी फूलती-फलती अर्थव्यवस्था मंदी का शिकार हो गई है। तो जर्मन सरकार ने अपने फैसलों से साफ संदेश दिया है कि अब चीन को दंडित करने के लिए वह अपनी जनता की मुसीबत और नहीं बढ़ाएगी। जर्मनी के इस रुख से यूरोपियन यूनियन (ईयू) में फूट पड़ गई है। ईयू में दो सबसे बड़े देश- जर्मनी और फ्रांस- खुल कर एक दूसरे के सामने आ गए हैँ। बीते हफ्ते कड़वाहट इस हद तक बढ़ी है कि जर्मन चासंलर ओलफ शोल्ज और फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के बीच मंत्रिस्तरीय प्रतिनिधिमंडलों के साथ होने वाली बैठक को स्थगित करना पड़ा। इस बैठक की जगह दोनों नेताओं ने फ्रांस के राष्ट्रपति आवास में अनौपचारिक बातचीत की।
शोल्ज की अगले महीने होने वाली चीन यात्रा दोनों देशों के बीच मतभेद का प्रमुख मसला है। शोल्ज की इस यात्रा से न सिर्फ फ्रांस खफा है, बल्कि दूसरे यूरोपीय नेता भी इसको लेकर असंतुष्ट हैँ। फ्रांस ने जर्मनी के इऩ्फ्रास्ट्रक्चर में चीन के बढ़ते निवेश पर भी सवाल उठाए हैं। गौरतलब है कि जर्मन सरकार ने कुछ रोज पहले अपने सबसे बड़े बंदरगाह हैम्बर्ग में चीनी कंपनी कोस्को शिपिंग होल्डिंग्स को. के निवेश को हरी झंडी दे दी थी। उधर कई जर्मन कंपनियों ने चीन में अपना निवेश बढ़ाने की घोषणा की है। गौरतलब है कि चीन और जर्मनी के बीच पहले से मजबूत आर्थिक रिश्ते हैँ। गुजरे वर्षों में चीन पर जर्मनी की निर्भरता बढ़ती चली गई है। एक रिपोर्ट के मुताबिक जर्मनी में मैनुफैक्चरिंग सेक्टर की लगभग आधी कंपनियां चीन से संबंधित सेवाओं पर निर्भर हैँ। फिर चीन का बाजार उनके लिए मुनाफे का स्रोत रहा है। तो जर्मनी अब इसे गंवाने को तैयार नहीं दिखता।
जर्मनी का एकला चलो
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