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एक और स्वागतयोग्य पहल

राजस्थान का स्वास्थ्य का अधिकार कानून पूरे देश में अपनी तरह की पहली पहल थी। उसी तरह गिग वर्कर्स के हितों के संरक्षण का कानून बनाना पहली पहल है। आशा है, अब दूसरे राज्य भी राजस्थान सरकार की पहल से सबक लेंगे।

सबको सेहत का अधिकार देने का कानून बनाने के बाद अब राजस्थान सरकार ने एक उतनी महत्त्वपूर्ण और पहल की है। स्वास्थ्य का अधिकार कानून पूरे देश में अपनी तरह की पहली पहल थी। उसी तरह गिग वर्कर्स के हितों के संरक्षण का कानून बनाना पहली पहल है। राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार ने यह कानून बनाने का एलान इस वर्ष फरवरी में पेश अपने बजट में किया था। अब उस प्रस्तावित कानून का मसविदा तैयार कर लिया गया है। इसके तहत गिग वर्कर्स को उचित संरक्षण देने तथा उनके कल्याण की योजना लागू करने की दिशा में कदम उठाए जाएंगे। गिग वर्क पिछले कुछ वर्षों में प्रचलित हुआ नया चलन है। इसके जरिए कंपनियों ने श्रमिकों के हक मारने का उपाय कर लिया है। आधुनिक तकनीक ने इसके लिए उन्हें सक्षम बनाया है। इस रूप में आधुनिक तकनीक श्रमिक वर्ग के हित संरक्षण के बजाय उनके शोषण में कंपनियों की सहायक बन गई है। इस प्रचलन के तहत श्रमिकों को काम पर रखने वाली कंपनियां खुद को ‘एग्रीगेटर’, ‘मध्यस्थ’ या ‘सुविधादाता’ कहकर नियोक्ता के रूप में अपनी जिम्मेदारी से बच निकलती हैं।

गिग कर्मचारियों को बिना किसी निश्चित आय, बीमा, सेवानिवृत्ति, या पेंशन लाभ के खुद अपना ख्याल रखने के लिए छोड़ दिया जाता है । जिस कारोबार में वे हों, उनमें हर जरूरी निवेश उन्हें खुद करना पड़ता है। कंपनियां उनका ग्राहकों से संपर्क करवाने भर की सेवा देती हैं। बदले में वे उनके 25 से 30 फीसदी तक की आमदनी हड़प लेती हैं। टैक्सी सेवाओं से लेकर घर में साफ-सफाई और घरेलू उपकरणों की मरम्मत जैसी सेवाएं आज रूप में दी जा रही हैं। राजस्थान सरकार का अनुमान है कि वहां तीन लाख से अधिक गिग वर्कर इस समय काम कर रहे हैं। देश भर में यह संख्या 75 लाख से ऊपर बताई जाती है। इसलिए अब श्रम के इस रूप पर गौर करना जरूरी हो गया है। केंद्र और कुछ राज्य सरकारों ने इस श्रमिकों के कल्याण के कुछ कदम उठाए हैं। लेकिन उन्हें कानूनी संरक्षण देने की पहल पहली बार राजस्थान में ही हो रही है। आशा है, इससे दूसरे राज्य भी सबक लेंगे।

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