बेबाक विचार

एक अजीबोगरीब फैसला

ByNI Editorial,
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एक अजीबोगरीब फैसला
हाल के वर्षों में न्यायालयों ने जो कुछ अजीबोगरीब फैसले दिए और अविश्वसनीय-सी टिप्पणियां कीं, इस निर्णय को भी उसी श्रेणी में रखा जाएगा। हालांकि ये फैसला कुछ रोज पहले आया, लेकिन इसकी जानकारी देश में देर से फैली और इसलिए अब इस पर तीखी प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। ये विचित्र आदेश गुवाहाटी हाई कोर्ट ने पास किया। इसके हिसाब से "ग्राफिक एविडेंस" न हो तो आपकी शादी को अमान्य घोषित किया जा सकता है। कोर्ट ने सिंदूर, शाखा पोला, मंगलसूत्र और बिछिया को "ग्राफिक एविडेंस" की श्रेणी में रखा। बेशक ये सभी हिंदू रीति-रिवाजों का हिस्सा हैं। लेकिन एक धर्मनिरपेक्ष संविधान वाले देश में, जहां चयन की व्यक्तिगत स्वतंत्रता को मूलभूत अधिकार के रूप में मान्यता दी गई है, ऐसा फैसला किसी रूप में तार्किक नहीं लगता। प्रथाएं धर्मों का अहम अंग हैं। स्वेच्छा से उन्हें मानने पर किसी को कोई एतराज नहीं हो सकता। इसी तरह की इच्छा के विरुद्ध प्रथाओं को उस पर थोपना भारतीय संविधान की मूलभूत भावना के खिलाफ है। गुवाहाटी हाई कोर्ट ने तलाक के एक मामले में कहा कि अगर विवाहिता हिंदू रीति रिवाज के अनुसार शाखा चूड़ियां और सिंदूर लगाने से इनकार करती है, तो यह माना जाएगा कि विवाहिता को शादी अस्वीकार है। यह टिप्पणी हाई कोर्ट ने एक पति की गई तलाक की याचिका मंजूर करते हुए की। दो जजों की बेंच ने कहा कि इन परिस्थितियों में अगर पति को पत्नी के साथ रहने को मजबूर किया जाए, तो यह उसका उत्पीड़न माना जा सकता है। हाई कोर्ट से पहले फैमिली कोर्ट ने पति की तलाक याचिका खारिज कर दी थी। फैमिली कोर्ट ने पाया था कि पति पर कोई क्रूरता नहीं हुई थी। हिंदू मैरिज एक्ट 1955 की धारा 5 के अनुसार, विवाह के लिए किसी भी व्यक्ति या पार्टी को पहले से शादीशुदा नहीं होना चाहिए। शादी के समय यदि कोई भी पक्ष बीमार है, तो उसकी सहमति वैध नहीं मानी जाएगी। भले ही वह वैध सहमति देने में सक्षम हो, लेकिन किसी मानसिक विकार से ग्रस्त नहीं होना चाहिए, जो उसे शादी के लिए और बच्चों की जिम्मेदारी के लिए अयोग्य बनाता है। दोनों में से कोई पक्ष पागल भी नहीं होना चाहिए। दोनों पक्ष में से किसी की उम्र विवाह के लिए कम नहीं होनी चाहिए। इसके अलावा हर संबंध वैध है। तलाक की अपनी तय प्रक्रियाएं हैं। मगर अब गुवाहाटी हाई कोर्ट ने अपनी तरफ से एक और शर्त जोड़ दी है।
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