बेबाक विचार

नफरत है राष्ट्रधर्म!

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नफरत है राष्ट्रधर्म!
पता नहीं सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जोसेफ किस दुनिया में जी रहे हैं। तभी उनका नफरत को कोसना और उनका टीवी चैनलों व एकंरों पर ठीकरा फोड़ना आश्चर्यजनक है। इतना ही नहीं उन्होंने यह भी कहा कि सरकार कानून बनाए। सोचें, उस सरकार से उम्मीद, जिसका राष्ट्रधर्म और राष्ट्र मकसद नफरत है। नफरत की जो गंगोत्री है। कल्पना करें कि जस्टिस जोसेफ की जब टिप्पणी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह व उनके अफसरों ने सुनी होगी तब उन्होंने नफरत की किस भाव-भंगिमा में जज साहेब पर सोचा होगा। क्या दिल्ली की सत्ता, देश की सत्ता, हिंदू राष्ट्र और राजनीति के मौजूदा दिमाग में रत्ती भर भी जज साहेब की चिंता क्लिक हुई होगी? क्या मीडिया, टीवी चैनल, एकंर तनिक भी परेशान हुए होंगे? कतई नहीं। क्यों? इसलिए कि ये सब मौजूदा राष्ट्रधर्म के पालक हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह तथा संघ परिवार के सच्चे, व नफरत के कर्तव्य पथ पर चलने वाले सेनानी हैं। इन टीवी चैनलों से ही हिंदुओं की बुद्धि है, उनका ज्ञान है और सपने हैं। प्रधानमंत्री मोदी का करिश्मा है। भक्ति का अंधविश्वास है। भारत बुद्धि का गंवार निर्माण है। प्रजा का सत्ता गुलाम बनना है। क्या मैं गलत हूं? दिल पर हाथ रख कर ईमानदारी से सोचें कि क्या नफरत, नफरती सरकार, नफरती मीडिया और लोगों की नफरती बुद्धि से सन् 2022 में भारत का राष्ट्र निर्माण होता हुआ नहीं है? नफरत वह जादू है, वह ईवीएम मशीन है, जिससे नरेंद्र मोदी की चुनावों में बार-बार छप्पर फाड़ जीत है। तमाम बरबादियों के बावजूद हिंदुओं की भक्ति का स्थायी बना रहना है। नफरत है तो जयश्री राम के उद्घोष की ताकत है। उसका एक्सपोर्ट है। हाल में ब्रिटेन में इसके एक्सपोर्ट से लेस्टर शहर की सड़कों पर हिंदुओं ने जय श्री राम का नारा लगाया या नहीं? ब्रितानी गोरों ने जयश्री राम बनाम अल्लाह हू अकबर के नारों से नफरत की भारत विश्वगुरूता को जाना या नहीं? politics of race culture or language तभी सोचें आठ वर्षों की नई भारत पहचान पर। नफरत का एक उपमहाद्वीप। नफरत की प्रयोगशाला। नफरत का लोकतंत्र। नफरत का राजधर्म। नफरत का मीडिया। नफरत का ज्ञान और बुद्धि। नफरत की राजनीति। नफरत का पथ संचलन। नफरत का कर्तव्य पथ। नफरत की तीसरी पानीपत लड़ाई। सोचें, क्या है भारत आज? सन् 2022 में 140 करोड़ भारतीय, उनकी सरकार, उनकी राजनीति, उनका समाज व्यवहार तथा जीवन दिनचर्या की क्या है एक अकेली प्रमुख बात? क्या देश की प्राणवायु? क्या है देश का दिमाग, बहस, विमर्श, लिखना-पढ़ना और सोशल मीडिया? तो नोट करें। हर बात का सत्व-तत्व नफरत और उसमें विकसित दिमागी सांचा! कल्पना करें नरेंद्र मोदी जब अपनी कैबिनेट की बैठक करते होंगे तो चेहरों को देखते हुए वे नितिन गडकरी जैसे चेहरे पर मन ही मन नफरत के भभकों में नहीं होते होंगे? क्या नरेंद्र मोदी और अमित शाह ‘अपना’ जो भी नहीं है उससे नफरत में दुश्मन नहीं मानते? आलोचनाओं और आलोचक से नफरत नहीं करते? भाजपा क्या कांग्रेस से नफरत नहीं करती? कांग्रेस क्या भाजपा व संघ से नहीं करती। मतलब पक्ष बनाम विपक्ष, मेरे अपने बनाम दूसरे, समर्थक बनाम विरोधी, हिंदू बनाम मुसलमान आदि के तमाम भेद क्या देशभक्त बनाम देशद्रोही, मोदीभक्त बनाम मोदी विरोधी, धर्मी बनाम विधर्मी के नफरती सांचों में ढले हुए नहीं हैं? फिर बुलडोजर, जय श्री राम, चाहे जिस पर छापे, चाहे जिसे जेल में डालो और पूरे मीडिया का उपयोग क्या नफरत के राष्ट्र धर्म में विकसित औजार नहीं है? इसलिए नफरत गंगोत्री है। देश की आबोहवा है। हिंदुओं की वैश्विक प्रदूषण के बीच नई सेहत की प्राणवायु है। कौम का चरित्र है। नई पीढ़ी और खास कर युवाओं का जोश है। कारोबार, शिक्षा, कला-संस्कृति को बदलने का मंत्र है। नई बुद्धि का निर्माण है। बॉलीवुड को सुधारने का संकल्प है। देश-कौम पहचान और हिंदू विश्वगुरूता की ख्याति है। सबसे बड़ी बात जो नफरत है राष्ट्र-राज्य का राष्ट्रधर्म! राष्ट्र नवनिर्माण की घुट्टी। प्रधानमंत्री मोदी की नई अमृत वेला और उसके अगले पच्चीस सालों का अमृत पथ है नफरत! और सुप्रीम कोर्ट नफरत को गालियां दे रहा है!
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