संसद के दोनों सदनों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कुल मिलाकर कोई तीन घंटा बोले लेकिन उन्होंने एक बार भी अदानी का नाम नहीं लिया। न हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट का नाम लिया। प्रधानमंत्री देश के सबसे बड़े उद्योगपति के ऊपर लगे आरोप, अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं की चिंता, शेयर बाजार में मची बड़ी उथल-पुथल, बैंकों का कर्ज डूबने की आशंका, एलआईसी व एसबीआई जैसी कंपनियों में लगा जनता का पैसा डूबने की आशंका जैसी किसी भी बात को गंभीरता से नहीं लिया। किसी भी बात का जिक्र नहीं किया। उन्होंने न तो अदानी के मामले में देश के लोगों को भरोसा जताया और न खुल कर कहा कि सरकार सारे आरोपों की जांच कराएगी। संसद में उनसे पहले उनकी पार्टी के जितने भी वक्ताओं ने भाषण दिया उनमें भी किसी ने अदानी समूह पर लगे आरोपों के ऊपर जवाब नहीं दिया और न उन्हें खारिज किया।
इसका क्या मतलब निकाला जाए? क्या इसका यह स्वाभाविक मतलब नहीं है कि अदानी समूह पर लगे आरोप सच हैं? अगर आरोप गलत होते या हिंडनबर्ग रिपोर्ट में कही गई बातें गलत होतीं तो उसे गलत ठहराने वाले दस्तावेज पेश किए जाते। लेकिन उसकी बजाय संसद के दोनों सदनों में कीचड़ से कीचड़ धोने की कोशिश हुई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर आरोप लगा कि उन्होंने अदानी समूह को मदद पहुंचाई है तो भाजपा के एक सांसद ने लोकसभा में कहा कि कांग्रेस ने टाटा, बिड़ला और अंबानी की मदद की थी। कांग्रेस ने कहा कि नरेंद्र मोदी की सरकार ने नियमों में बदलाव करके और आपत्तियों को दरकिनार करके अदानी समूह को मुनाफा कमाने वाले छह हवाईअड्डे दिए। तो भाजपा के सांसद ने लोकसभा में कहा कांग्रेस ने जीएमआर और जीवीके को मदद की थी। उनको दिल्ली व मुंबई का हवाईअड्डा दिया था। यानी आपने भी तो किया था, इसलिए हमने किया तो क्या गलत है? कांग्रेस ने केंद्र सरकार से सात सवाल पूछे तो पलट कर भाजपा ने 11 सवाल पूछ दिए। भाजपा के लिए सवाल का जवाब सवाल है, कोई तथ्य पेश करने की जरूरत नहीं है।
भाजपा के राज्यसभा के एक सांसद ने तो प्रेस कांफ्रेंस करके कांग्रेस के घोटाले गिनाए। उन्होंने अदानी समूह को लेकर पूछे जा रहे सवाल या सरकार से नजदीकी के आरोपों का जवाब देने की बजाय कहा कि किस तरह से कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व अलग अलग घोटालों में फंसा हुआ है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने लोकसभा में तीखा हमला किया। मोदी-अदानी की नजदीकी का मुद्दा उठाया तो भाजपा के राज्यसभा सांसद ने कहा कि राहुल की मां भ्रष्टाचार के आरोप में फंसी हैं और जमानत पर बाहर हैं। उन्होंने यह भी कहा कि राहुल के बहनोई भी भ्रष्टाचार के आरोप में फंसे हैं और जमानत पर बाहर हैं। उनके कहने का मतलब था कि आप कैसे सवाल पूछे सकते हैं, आप तो खुद ही आरोपों में घिरे हैं। इसका यह भी मतलब है कि हम आरोपों में फंसे हैं तो क्या हुआ आप भी आरोपों से परे नहीं हैं। उन्होंने अंग्रेजी के एक अखबार में लेख लिख कर भी राहुल और कांग्रेस पर निशाना साधा। लेकिन उसमें भी उनका फोकस इस बात पर था कि राहुल और कांग्रेस कैसे सवाल पूछ सकते हैं।
कुल मिला कर मैसेज की बजाय मैसेंजर को शूट करने की कोशिश है। अदानी समूह पर उठाए गए सवालों और सरकार की नजदीकी से उनको हुए फायदों पर जवाब देने की बजाय सवाल पूछने वाले की साख बिगाड़ने और उस पर पलटवार की राजनीति है। इसका सीधालब्बोलुआब है कि आरोप सही हैं। आरोप सही नहीं होते तो सरकार को जांच कराने में दिक्कत नहीं होती। आखिर मनमोहन सिंह की सरकार के समय 2जी घोटाले की बात आई तो 30 सदस्यों की साझा संसदीय समिति बनी थी और उसने रिपोर्ट भी दी। सोचें, तब कांग्रेस के पास बहुमत नहीं था। इसके बावजूद उसने साझा संसदीय समिति बनाई। आज भाजपा के पास प्रचंड बहुमत है और सबको पता है कि संसदीय समिति में भी उसका बहुमत होगा। तब भी न संसदीय समिति बनाई जा रही है, न अदालती जांच की मंजूरी दी जा रही है। न ही किसी सरकारी एजेंसी से ही जांच की पहल है।