
इस विजयदशमी को मैंने दिमाग से कुछ घंटे मुक्ति पाई! उस दिन जब सवा सौ करोड़ लोगों और खास कर सौ करोड़ हिंदुओं की सत्ता और समाज की प्रतिनिधि आवाज संघ प्रमुख मोहन भागवत से सुना कि विचार की जरूरत नहीं है व ज्यादा सोचेंगे, बहस करेंगे तो स्थिति ज्यादा बिगड़ेगी इसलिए भरोसा रखें सरकार पर। यह सुन कल-परसों मेरा दिमाग लिखने के लिए नहीं कुनबुनाया। सोचा, क्यों न दिमाग की छुट्टी की जाए। वैसे अब हम हिंदुओं के लिए दुनिया में यह थीसिस फैलाने का वक्त है कि बुद्धि से मुक्ति पाओ, दिमागविहीन हो भक्ति के भजन गाओ और चैन से रहो! तमाम संकटों की जड़ है दिमाग और उसका विचारना। तभी हमारे मोदीजी का मंत्र है कि हार्वर्ड नहीं हार्ड वर्क! ऐसे ही अब भागवतजी की बात भी गांठ बांधने लायक है।
सचमुच क्यों कर भारत के हम लोगों को सोचना चाहिए, अनुभव करना चाहिए, फील करना चाहिए कि हम मंदी में हैं या नहीं? भागवतजी ने ठीक कहा कि सरकार पर भरोसा रखो। सब ठीक होगा। जब भारत के लोगों ने मोदी सरकार को बापी पट्टा लिख कर दे दिया है तो रेवड़ को फिर अनुशासन में ही रहना चाहिए। क्यों लोग सोचें, चिंता करें, चर्चा करें कि कैसा जीवन है, मंदी व बेरोजगारी है या नहीं, आगे भविष्य बनेगा या नहीं? इस तरह सोचा जाना भला उन लोगों को, उस नस्ल को, उस धर्म को क्या शोभा देता है, जिसने सैकड़ों साल गुलामी के बाड़ों में भेड़ की तरह जीवन जीया है!
संदेह नहीं कि आरएसएस, संघ प्रमुख मोहन भागवत, प्रचारक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हम हिंदुओं के इतिहास की गुलामी को बारीकी से बूझा, जाना, समझा हुआ है। इसलिए पता है कि हिंदू का जीना कैसा भी हो वह जी लेता है। उसकी मुक्ति भक्ति से है न कि दिमाग और बुद्धि से! सोने की चिड़िया भगवान विष्णु के अवतारी राजा से बनती है न कि प्रजा से। इसलिए प्रजा को नहीं सोचना चाहिए और उसे भक्ति भजन से राजा को साधते रहना चाहिए तो रामराज्य बनेगा ही!
मोहन भागवत विराट हिंदू समाज के रक्षक-चिंतक हैं तो उन्होंने स्वभाविक हिंदू बुद्धि अनुसार सोचा कि लोगों को चिंतामुक्त बनाना वक्त का तकाजा है। तभी दो टूक शब्दों में कहा कि मंदी नहीं है इसलिए ज्यादा विचार की जरूरत नहीं है। उनकी दलील है कि यदि तथाकथित आर्थिकी गिरावट पर अधिक चर्चा हुई तो उससे आर्थिक गतिविधियों में कमी आएगी। सरकार ने हालात सुधारने के लिए कदम उठाए है तो हमें भरोसा रखना चाहिए। विश्व आर्थिकी में चक्र आते रहते हैं, बाधाएं आती हैं और विकास मंदा पड़ता है। इसे ही फिर मंदी कहते हैं। लेकिन देश बढ़ रहा है। यदि हम विचार और बहस करेंगे तो वह माहौल बनेगा, जिससे लोगों का व्यवहार प्रभावित होगा। लोग सावधान, कंजरवेटिव हो जाएंगे और इससे आर्थिकी और सुस्त बनेगी।
मोहन भागवत के इस संबोधन के बाद सोचने की, दिमाग को एप्लाई करने की गुंजाइश कहां बचती है? यदि दिमाग से रोजी-रोटी-रोजगार-मंदी का ख्याल निकाल दिया जाए, राजा या सरकार के कदमों, बंदोबस्तों, धर्मादे व खैरात की निश्चिंतता में हम अपने को ढाल लें तो फिर सुनहरे, रूपहले सपनों में सब बूम-बूम जीवन जीने लगेंगे। क्या नहीं?
तभी मैं विजयदशमी के दिन कुछ आश्वस्त हुआ। दिमाग को छुट्टी दी और रावण पर रामजी की जीत के पटाखे फूटते देखे। मैंने तब बूझा कि 21वीं सदी का यह वक्त भारत राष्ट्र-राज्य का, हिंदुओं का वह कालखंड है, जिसमें चिरंतन हर दिन आंखें रावण के दहन को देखते हुए हैं तो हाथ विजय पताका थामे हुए हैं। सोचें, सहस्त्राब्दियों से हम हिंदू रावण दहन करते आ रहे हैं और विजय की दीये जलाते हुए दीपोत्सव मनाते रहे हैं लेकिन बावजूद हम जैसे जीये और रहे हैं वह भी हमारा इतिहास है। मतलब रावण दहन और विजय उत्सव जीने का रूटिन है उसी में डूबे रहा जाए और दिमाग सोया रहे।
इस इतिहास में कौम से नए अंदाज में अब लगातार यह आग्रह है कि विचारना, सोचना, चिंता करना याकि बुद्धि, दिमाग की इंद्रियों को रिटायर करने का वक्त है और जीवन को प्रभुजी के आगे समर्पित रखते हुए भजन संध्या से जीना है! सोचो नहीं, बल्कि भक्ति करो व सपने देखो! सपना छह ट्रिलियन इकॉनोमी का, भारत भूमि पर अमेजन-वालमार्ट के फलते-फूलते धंधे का, मेक और मेड इन इंडिया की बजाय असेंबलिंग ऑफ आई-फोन, मर्सिडीज का! सवा सौ करोड़ लोगों के स्वावलंबन, उनकी आर्थिक आजादी, उनकी दुकान की चिंता मत करो और जश्न मनाओ अमेरिकी अमेजन दुकान के सवा सौ करोड़ लोगों की नंबर एक दुकान बनने पर!
मैंने सचमुच नवरात्रि के दिनों सोशल मीडिया पर लोगों को इस बात पर बधाई देते गौर किया कि अमजेन ने बिक्री का रिकार्ड बनाया। कितनी शर्मनाक और कलंकित करने वाली, दहला देने वाली बात है कि अमेरिका की अमेजन और वॉलमार्ट सवा सौ करोड़ लोगों के बाजार पर एकाधिकार बना ले रही है और हम तालियां बजा रहे हैं!
लेकिन दिमाग और बुद्धि हो या वह आजाद हो तब तो विचार हो! कोई माने या न माने इस त्योहार और गुजरी नवरात्रि में भारत राष्ट्र-राज्य का बाजार मंदी के बावजूद जिस तरह दो अमेरिकी कंपनियों के नियंत्रण में गया है वह प्रमाण है इस बात का कि पूरी आर्थिकी दस-बीस खिलाड़ी रावणों के कब्जे में जा रही है और रामभक्त तालियां बजाते हुए सपना देख रहे हैं कि वाह! बूम आया!
अच्छा लिखा है…हिंदू राष्ट्र तभी बनेगा जब जनता सरकार को बिना सवाल किए उसका काम करने देगी…चुपचाप नोटबंदी होने देगी और करों का बोझ अपने ऊपर लादने देगी….जिस किसी ने भी रावण को जलाने की परंपरा हिंदुओं में बिठाई है वह इसीलिए कि दशहरे, दीपाली, नवरात्रि, सत्संग, रामकथा आदि में उलझे रहो, सरकार को अपना काम करने दो, जो निसंतान हैं वे तथाकथित संतों से आशीर्वाद लेकर अपने घरों में बच्चों की किलकारियां सुनें….