बेबाक विचार

हांगकांग में चीन की मनमानी

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हांगकांग में चीन की मनमानी
चीन व उसके शासन वाले हांगकांग में जिस तरह से लोकतांत्रिक अधिकारो का हनन किया जा रहा है। इसका नवीनतम उदाहरण पिछले दिनों हांगकांग के जाने-माने व्यापारी व वहां के बहुचर्चित अखबार 'एप्पल डेली' के प्रकाशक जिम्मी लाई की गिरफ्तारी है। जिम्मी लाई हांगकांग की अखबार कंपनी नेक्सट डिजिटल के मालिक है व लोकतंत्र के प्रति गहन आस्था रखने वाले लोगों में गिने जाते हैं। चीन द्वारा हांगकांग में नया राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लागू किए जाने के बाद सरकार ने उनके अखबार से नाराज होकर 200 पुलिस अफसरो के जरिए उनकी गिरफ्तारी करवाई व उनके घर से हथकड़ी लगाकर सरेआम बेइज्जत करते हुए जेल ले गई। वहां के मीडिया मुगल माने-जाने वाले जिम्मी लिन लाई मूलतः चीन से ही हैं। वे वहां के गुआंगओ इलाके के रहने वाले हैं। वे 1948 में महज 12 साल की उम्र में मछली पकड़ने वाली नाव पर सवार होकर हांगकांग आ गए थे। वे अब ब्रिटिश नागरिक है और शुरू से लोकतंत्र के कट्टर समर्थक रहे। हांगकांग में लोकतंत्र के समर्थको द्वारा चलाए जाने वाले आंदोलनो में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। उन्होंने शुरुआत में हांगकांग में एक कपड़ा बनाने वाली कंपनी में नौकरी की व फिर समय के साथ अपनी कपड़ा कंपनी की स्थापना कर ली। वे गियोरडानो ब्रांड के सिले-सिलाए कपड़े बनाने वाली कंपनी के मालिक हैं जोकि अब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध हो चुकी है। जब 1989 में चीन में वामपंथी दल की सरकार ने निर्मम तियायनमिन हत्याकांड किया तो वे बहुत परेशान हुए व उनकी सोच ही बदल गई। उनके अखबार में चीन की जमकर आलोचना की जाने लगी। वे वहां सेंसरशिप लागू  करने व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर रोक लगाए जाने की जमकर आलोचना करते रहे हैं। चीन उन्हें देशद्रोही मानने लगा। जब उन्होंने पिछले साल अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोंपियो से मुलाकात की तो चीन की नाराजगी की इंतिहा नहीं रही। उन्हें फरवरी व मार्च में चीन द्वारा अवैध घोषित किए जा चुके लोकतंत्र के समर्थक प्रदर्शनो में हिस्सा लेने के लिए गिरफ्तार किया गया। चीन ने उनके अलावा उनके दो बेटो व कंपनी के कुछ आला अधिकारियों को भी गिरफ्तार किया है। उन्हें चीन द्वारा 30 जून को लागू किए गए राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत बंदी बनाया गया है। इस कानून के तहत चीन को हांगकांग में रहने वाले लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने के असीमित अधिकार मिल जाते हैं। वह उनके स्थानीय प्रशासन से एकदम अलग रखा गया है। इसके तहत वहां लोगों को गिरफ्तार करके उन्हें सजा देने के लिए चीन भेजा जा सकता है। यह कानून उन लोगों पर भी लागू किया जा सकता है जोकि हांगकांग के नागरिक नहीं हैं। वहां रहने वाले विदेशी भी इस सुरक्षा कानून की हिस्से में आ जाते हैं। जिम्मी लाई हांगकांग में नया सुरक्षा कानून लागू किए जाने का शुरू से विरोध कर रहे थे व लोकतंत्र की बहाली के लिए चलाए जा रहे जन आंदोलनों का खुलकर समर्थन कर रहे थे। वे इस समय ब्रिटेन के नागरिक हैं व उन्हें हांगकांग के सबसे अमीर व्यापारियो में गिना जाता हैं। उनके लेखों व अखबारो से चीन की सरकार लगातार नाराज रहती आई हैं। उन्होंने अखबार एप्पल डेली के अलावा नेक्सट (NEXT) नाम से एक डिजिटल पत्रिका भी निकाली। पिछले कुछ वर्षों में उनके हांगकांग स्थित अखबार के दफ्तर पर कई बार हमले हुए। उन पर पेट्रोल बमों के जरिए आग लगाने तक की कोशिश की गई। उनके द्वारा बीबीसी को दिए गए एक इंटरव्यू के बाद चीनी सरकार अपना आपा खो बैठी। हांगकांग की मौजूदा स्थिति बहुत दिलचस्प है। जब दुनिया में ब्रिटेन का विस्तारवाद चल रहा था तब उसने हांगकांग पर अपना अधिकार किया था। उन दिनों चीन में अफीम की खपत बढ़ रही थी व ब्रिटेन वहां की सरकार द्वारा लगाए गए प्रतिबंधो की परवाह न करते हुए हांगकांग के जरिए चीन में बड़ी बड़ी मात्रा में अफीम भेजता था। हांगकांग अपने यहीं चाय का आयात करता था। जब ब्रिटेन ने 1820-30 में भारत पर कब्जा किया तो अपने यहां होने वाली कपास की खपत को देखते हुए अमेरिका की जगह उसे भारत में उत्पादन बेहतर समझा। मगर जब उस खेती से मनचाहा लाभ नहीं हुआ तो उसने सारा जोर अफीम की खेती पर लगा दिया। चीन में अफीम की खपत बहुत ज्यादा थी व वहां की तत्कालीन सरकारो ने उसके आयात पर रोक लगा रखी थी। अतः ब्रिटेन ने भारत में पॉपी के पौधे उगा कर उनसे अफीम तैयार की। उसे गैर-कानूनी तरीके से चीन में भेजने व बेचने का काम शुरू कर दिया। इसकी तस्करी से ब्रिटेन मालामाल होने लगा। इसे लेकर चीन व ब्रिटेन के बीच अफीम युद्ध हुआ। 1842 में तत्कालीन चीनी शासक किंग के साथ ब्रिटेन ने इस मामले में संधि की। बड़ी तादाद में ब्रिटेन के उपनिवेशको से आए लोग हांगकांग में बसने लगे। दोनों देशों के बीच हांगकांग के भविष्य को लेकर बात होने लगी व यह तय किया गया कि बाद में इस बारे में कोई फैसला लिया जाएगा। बाद में चीन में वामपंथी सत्ता आई तो अत्याचारो से बचने के लिए बड़ी तादाद में चीनी नागरिक भागकर हांगकांग में शरण लेने लगे। जब चीन में संयुक्त राष्ट्र संघ में स्थायी सीट हासिल हुई तो उसने हांगकांग को लेकर दबाब बनाना शुरू किया। इस कारण संयुक्त राष्ट्र की आमसभा ने एक प्रस्ताव पारित करके हांगकांग को उपनिवेश की सूची से हटा दिया। बाद में ब्रिटिश प्रधानमंत्री मारग्रेट थैचर व चीन के प्रमुख देंग शियाओ के बीच हांगकांग को लेकर बातचीत शुरू हुई। ब्रिटिश सरकार हांगकांग को चीन को सौंपने के लिए तैयार हो गई। अंततः दोनों देश इस बात पर राजी हो गए कि 30 जून 1997 को ब्रिटेन हांगकांग को अपने 156 साल के शासन के बाद चीन को सौंप देगा। उन्होंने तय किया कि इस उपनिवेश रहे हांगकांग को अपने रक्षा विदेश नीति छोड़ अपने फैसले खुद लेने का अधिकार होगा व 50 साल तक कोई बदलाव नहीं होगा व वहां चीन के कानून आमतौर पर लागू नहीं किए जाएंगे। हांगकांग व चीन के लोग मिलकर वहां नया कानून तैयार करेंगे। इसके लिए एक समिति भी बनी। 4 अप्रैल 1990 को चीन ने निर्दोष प्रदर्शनकारी छात्रोपर हिंसा की। इस घटना का हांगकांग में जमकर विरोध हुआ व चीन ने कानून बनाने वाली समिति में शामिल हांगकांग के तमाम लोगों को हटा दिया। उसके बाद चीन की दुर्भावना से परेशान होकर हांगकांग निवासियों ने ब्रिटेन की ओर देखा। अब चीन की मनमानी का नया मामला सामने है।
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