चीन ने एक बार फिर हांगकांग पर डंडा चलाना शुरू कर दिया है। इस बार उस पर उतना ध्यान नहीं गया, क्योंकि जो देश इसे मुद्दा बनाते हैं, वे अपने मामलों में उलझे हुए हैं। अमेरिका राष्ट्रपति चुनाव के बाद सत्ता हस्तांतरण के विवाद में फंसा हुआ है। ब्रिटेन कोरोना वायरस के दूसरे दौर से चोटिल है। इस बीच चीन ने हांगकांग की स्वायत्तता की उम्मीदों पर तगड़ा प्रहार किया है। उधर बीजिंग में नेशनल पीपुल्स कांग्रेस स्टैंडिंग कमेटी की बैठक में यह विधेयक पास हुआ कि जो कोई भी हांगकांग की आजादी का समर्थन करेगा, शहर पर चीन के आधिपत्य को नहीं मानेगा, राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डालेगा, उसकी सदस्यता खारिज कर दी जाएगी। इसके बाद हांगकांग के सिटी काउंसिल के चार पार्षदों की सदस्यता खत्म कर दी गई। इस पर विरोध जताते हुए हांगकांग के 15 पार्षदों ने घोषणा कर दी कि वे सभी परिषद में अपनी सीटें छोड़ देंगे। हाल के महीनों में चीन ने हांगकांग में विपक्ष की आवाज को दबाने के लिए कई कदम उठाए हैं। इनमें जून में राष्ट्रीय सुरक्षा कानून को लागू करना सबसे अहम कदम माना जा सकता है। इस कानून के विरोध में हांगकांग में लोकतंत्र समर्थक आंदोलन फिर से भड़का। फिर भी चीन ने अपने कानून को लागू कर दिया।
विशेषज्ञों ने कहा कि वैधता और संवैधानिकता के लिहाज से देखें, तो यह साफ तौर पर बेसिक लॉ और सार्वजनिक मामलों में हिस्सा लेने के हांगकांग के लोगों के अधिकार का उल्लंघन है। हांगकांग का मिनी संविधान बेसिक लॉ कहलाता है। हांगकांग की प्रशासनिक प्रमुख केरी लैम ने कहा है कि पार्षदों को उचित तरीके से पेश आना चाहिए। हांगकांग शहर को "देशभक्त पार्षदों" की जरूरत है। प्रो-डेमोक्रेसी आंदोलन के समर्थक सभी पार्षदों के इस्तीफे के बाद हांगकांग की विधान परिषद में केवल चीन-समर्थक कानून निर्माता ही बचेंगे। पहले से ही वहां चीन-समर्थक सदस्य बहुमत में थे, लेकिन भविष्य में विपक्ष के अनुपस्थित होने के कारण कोई भी चीन-समर्थक कानून बिना किसी बहस या विरोध के पास कराया जा सकेगा। हांगकांग के लोकतंत्र समर्थक प्रदर्शनों पर बीते साल से ही विश्व भर की नजरें लगी रही हैं। पश्चिमी देशों ने चीन के रुख पर सख्त प्रतिक्रियाएं भी दीं। कई देशों ने हांगकांग से अपनी प्रत्यर्पण संधियां तोड़ लीं। लेकिन ये साफ है कि चीन पर इनसे कोई फर्क नहीं पड़ा है।
चीन को विरोध नामंजूर है
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