अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने इस वित्त वर्ष के लिए भारत की सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर को घटा कर 4.8 प्रतिशत कर दिया है। इसके पहले उसने इसके 6.1 फीसदी रहने अनुमान जताया था। आईएमएफ की मुख्य अर्थशास्त्री गीता गोपीनाथ की यह टिप्पणी भारत के लिए कहीं अधिक चिंता का विषय है कि सामाजिक अशांति आर्थिक विकास के लिए हानिकारक है। गोपीनाथ ने कहा कि नागरिकता संशोधन कानून विरोधी आंदोलन पर आईएमएफ की नजर है और इस बारे में वह अप्रैल में जारी होने वाली अगली रिपोर्ट में टिप्पणी करेगा। आईएमएफ ने भारत को विश्व अर्थव्यवस्था की विकास दर को पीछे खींचने वाले देश के रूप में चित्रित किया है। जिस देश को इस सदी के आरंभ में विश्व अर्थव्यवस्था के इंजन माने गए देशों में रखा गया था, उसके लिए ऐसी टिप्पणी बेहद अफसोसनाक है। नरेंद्र मोदी सरकार को इस पर अवश्य विचार करना चाहिए कि उसके शासनकाल में देश कहां से कहां पहुंच गया। इस स्थिति से देश को निकालने के लिए अब सरकार के पास पर्याप्त संसाधन भी नजर नहीं आते।
मसलन, पूर्व वित्त सचिव सुभाष चंद्र गर्ग का कहना है कि चालू वित्त वर्ष में सरकार का कर संग्रह निर्धारित लक्ष्य से करीब ढाई लाख करोड़ रुपये कम रहने का अनुमान है। यह देश के कुल सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 1.2 प्रतिशत के बराबर है। गर्ग ने राय जताई है कि कर राजस्व के नजरिए से 2019-20 एक बुरा वित्त वर्ष साबित होने जा रहा है। उन्होंने डिविडेंड डिस्ट्रिब्यूशन टैक्स हटाने की भी मांग की है। दरअसल, 15वें वित्त आयोग का भी अनुमान है कि परोक्ष करों की उगाही तय लक्ष्य से बहुत कम रहेगी। जानकारों ने कहा है कि कर राजस्व संग्रह लक्ष्य से 2,500 अरब रुपये (जीडीपी का 1.2 प्रतिशत) कम रहने की संभावना है। राज्यों के हिस्से का 8.09 लाख करोड़ रुपये अलग रखे जाने के बाद बजट में केंद्र सरकार का शुद्ध राजस्व संग्रह लक्ष्य 16.50 लाख करोड़ रुपये रहने का अनुमान है। यह 2018-19 में संग्रह किए गए 13.37 लाख करोड़ रुपये के अस्थायी वास्तविक कर संग्रह से 3.13 लाख करोड़ रुपये यानी 23.4 प्रतिशत अधिक है। कॉरपोरेट कर, उत्पाद शुल्क और सीमा शुल्क संग्रह में 2019-20 में गिरावट रह सकती है। यह गिरावट आठ प्रतिशत, पांच प्रतिशत और 10 प्रतिशत होगी। अब अगर स्थिति है, तो सरकार कहां से पैसा लाएगी, जिसके बड़े निवेश से वह अर्थव्यवस्था को संभाल सके?
कैसे संभलेगी अर्थव्यवस्था?
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