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तमिलनाडु विधानसभा का जरूरी प्रस्ताव

ByNI Editorial,
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तमिलनाडु से लेकर केरल और झारखंड तक कई ऐसे मामले देखने को मिले, जब राज्यपालों ने समय सीमा तय नहीं होने के प्रावधान का इस्तेमाल कर सरकार की सिफारिशें या विधानसभा से पारित विधेयक रोके रखे।

तमिलनाडु विधानसभा ने एक प्रस्ताव पास किया है, जो राज्यपालों के कामकाज को देखते हुए बेहद जरूरी प्रतीत हो रहा है। राज्य की विधानसभा ने प्रस्ताव पास करके केंद्र सरकार से अपील की है कि वह विधानसभा से पास किए गए विधेयकों को राज्यपाल से मंजूरी मिलने की एक समय सीमा तय करने का कानून बनाए। इस कानून की जरूरत इसलिए है क्योंकि कई राज्यों में यह देखने को मिला है कि विधानसभा से पास किए गए विधेयक महीनों तक राजभवन में लंबित रहते हैं। सरकार की ओर से भेजे गए प्रस्ताव पर महीनों या बरसों तक राज्यपाल फैसला नहीं करते हैं। इससे सरकार का कामकाज प्रभावित होता है। इस तरह की घटनाएं आमतौर पर गैर भाजपा दलों के शासन वाले राज्यों में हो रही हैं। तमिलनाडु में पिछले दिनों राज्यपाल ने ऑनलाइन गैम्बलिंग को रोकने वाले विधेयक को मंजूरी दी। उससे पहले यह विधेयक 131 दिन यानी चार महीने से ज्यादा समय तक राज्यपाल के यहां लंबित रहा था। ऐसी स्थिति से बचने के लिए तमिलनाडु विधानसभा ने प्रस्ताव पास किया है।

संविधान का अनुच्छेद 163 राज्यपाल को स्वविवेक से फैसला करने का अधिकार देता है। इसी के तहत विधानसभा से पास करके भेजे गए किसी विधेयक को मंजूरी देने का मामला भी आता है। यह राज्यपाल के स्वविवेक पर निर्भर करता है और संविधान में ऐसी कोई समय सीमा तय नहीं की गई है कि राज्यपाल कितने समय के भीतर विधेयक को मंजूर करके या बिना मंजूर किए वापस लौटाएंगे। संविधान की इस अस्पष्टता का फायदा उठा कर कई राज्यपाल विधानसभा से पास किए गए विधेयकों को अनिश्चितकाल तक रोके रखते हैं। इससे राज्य सरकारों के कामकाज पर असर होता है।

तमिलनाडु से लेकर केरल और झारखंड तक कई ऐसे मामले देखने को मिले, जब राज्यपालों ने समय सीमा तय नहीं होने के प्रावधान का इस्तेमाल कर सरकार की सिफारिशें या विधानसभा से पारित विधेयक रोके रखे। झारखंड के मुख्यमंत्री की विधानसभा से अयोग्यता के मसले पर चुनाव आयोग ने पिछले साल अगस्त में अपनी रिपोर्ट राज्यपाल को भेजी थी, जिसे राज्यपाल ने अभी तक सार्वजनिक नहीं किया है। इसी तरह महाराष्ट्र में तत्कालीन उद्धव ठाकरे सरकार की ओर से विधान परिषद में नामित करने के लिए 12 नामों की सिफारिश राज्यपाल से की गई थी लेकिन एक साल से ज्यादा समय तक राज्यपाल ने उन नामों को मंजूरी नहीं दी। इससे राज्य सरकार और राज्यपाल के बीच टकराव बढ़ता है। ऐसी अप्रिय स्थिति से बचने के लिए राज्यपालों की मंजूरी की समय सीमा तय होनी चाहिए।

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