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तो सब ठीक-ठाक है!

चीनी पक्ष को उनके नेतृत्व का क्या मार्गदर्शन है, यह हमारी चिंता का विषय नहीं है। लेकिन यह सवाल हर भारतवासी के लिए अहम है कि भारतीय पक्ष को भारतीय नेतृत्व का क्या मार्गदर्शन है?

भारत और चीन के कोर कमांडरों की 23 अप्रैल को चुशुल-मोल्दो बॉर्डर हुई बैठक के बाद चीन की तरफ से जारी बयान का सार यह है कि अब कहीं कोई समस्या नहीं है। अगर कहीं कोई थोड़े बहुत मसले हैं, तो उन्हें बातचीत से हल कर लिया जाएगा। चीन के विदेश मंत्रालय की तरफ से मंगलवार को जारी बयान के इस हिस्से पर गौर किया जाना चाहिए- ‘अपने नेताओं के मार्ग-दर्शन और दोनों विदेश मंत्रियों की बैठक की उपलब्धियों को ध्यान में रखते हुए दोनों पक्ष सैनिक और कूटनीतिक माध्यों से संपर्क बनाए रखने और बातचीत जारी रखने पर राजी हुए।’ चीनी पक्ष को उनके नेतृत्व का क्या मार्गदर्शन है, यह हमारी चिंता का विषय नहीं है। लेकिन यह सवाल हर भारतवासी के लिए अहम है कि भारतीय पक्ष को भारतीय नेतृत्व का क्या मार्गदर्शन है? यह प्रश्न इसलिए प्रासंगिक बना हुआ है, क्योंकि तीन साल पहले लद्दाख क्षेत्र में चीनी घुसपैठ के बाद से भारत सरकार ने देश को भरोसे में लेने की जरूरत नहीं समझी है।

गलवान घाटी में झड़पों के बाद एक सर्वदलीय बैठक हुई भी, तो उसमें प्रधानमंत्री ने वह बहुचर्चित बयान दे दिया कि ‘ना कोई घुसा है और ना कोई घुसा हुआ है।’ उसके बाद 2020 के सितंबर में रूसी मध्यस्थता में मास्को में विदेश मंत्री जयशंकर ने चीनी विदेश मंत्री से बातचीत की और उसके बाद जारी बयान में वास्तविक नियंत्रण रेखा का उल्लेख ही नहीं किया गया। उसमें सीमा शब्द का इस्तेमाल हुआ, जिसको कई विश्लेषकों ने सवाल उठाया कि क्या भारत सीमा विवाद हल करने के चीन के 1959 के फॉर्मूले पर राजी हो गया है? अब मुद्दा है कि चीन अपने विदेश मंत्रियों की वार्ता की किस उपलब्धि का जिक्र कर रहा है? साथ ही देश के लोग भारत सरकार से यह जानना चाहते हैं कि क्या वह कोर कमांडरों की बैठक के बारे में चीनी आकलन से सहमत है? क्या उसकी नजर में भी अब कोई मसला नहीं बचा है? खुद लद्दाख के पुलिस अधिकारियों की तरफ से दिए गए विवरण अलग कहानी सामने आई थी। उस बारे में सरकार का क्या आकलन है?

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