चीन से वार्ता का क्या संदेश है?

चीन से वार्ता का क्या संदेश है?

पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर यथास्थिति बदलने के चीन के प्रयासों और गलवान घाटी में भारत-चीन के सैनिकों के बीच हुई हिंसक झड़प के बाद पहली बार दोनों देशों के बीच राजनीतिक स्तर की वार्ता हुई है। शंघाई सहयोग संगठन की बैठक में हिस्सा लेने भारत आए चीन के रक्षा मंत्री जनरल ली शांगफू ने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के साथ दोपक्षीय वार्ता की। दोनों देशों के संबंधों और अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के लिहाज से भी यह एक बड़ा घटनाक्रम था। लेकिन इस वार्ता का क्या संदेश है? क्या दोनों देश तीन साल से चल रहे गतिरोध को समाप्त करने की दिशा में बढ़ेंगे? ध्यान रहे चीन के साथ सीमा पर गतिरोध का बिंदु सिर्फ पूर्वी लद्दाख नहीं है। डोकलाम से लेकर अरुणाचल प्रदेश के अंदर तक चीन ने किसी न किसी रूप में दखल देने का प्रयास किया है।

भारत का कहना है कि सीमा से जुड़े सारे मुद्दों का समाधान जब तक नहीं होता है, तब तक आगे बढ़ने का रास्ता नहीं बनेगा। भारत ने सीमा विवाद को सर्वोच्च बताते हुए इसके समाधान को दोपक्षीय संबंधों में सुधार के लिए अनिवार्य बताया है। ली शांगफू के साथ दोपक्षीय वार्ता के बाद भारत की ओर से जो जारी बयान के मुताबिक राजनाथ सिंह ने चीन के अपने समकक्ष से बहुत साफ शब्दों में कहा कि दोनों देशों के दोपक्षीय संबंधों में प्रगति सीमा पर शांति और स्थिरता पर निर्भर है। भारत ने चीन से मौजूदा दोपक्षीय संधियों के आधार पर सारे विवाद निपटाने की बात कही है। दूसरी ओर इस वार्ता के बाद चीन ने जो बयान जारी किया है उसमें बिल्कुल उलटी बात कही गई है। चीन ने सीमा के हालात को मोटे तौर पर स्थिर बताया है और दोपक्षीय संबंधों के बीच सीमा विवाद को एक निश्चित जगह देने की बात कही है। उसका कहना है कि सब कुछ सीमा विवाद से जोड़ना या उस पर निर्भर करना ठीक नहीं है।

इस तरह भारत चाहता है कि सीमा विवाद सुलझे तब दोपक्षीय संबंधों में आगे बढ़ा जाए और चीन कहता है कि सीमा विवाद सुलझाने का प्रयास चलता रहेगा लेकिन साथ ही दोपक्षीय संबंध भी चलते रहने चाहिए। उसने भारत के सामने दोनों देशों के सैनिकों के बीच सहयोग और साझीदारी बढ़ाने का एक प्रस्ताव भी रखा, जिसे भारत ने खारिज कर दिया। अब सवाल है कि क्या सचमुच भारत इतना नाराज है कि चीन से संबंध नहीं रखना चाहता है और इस बात को लेकर प्रतिबद्ध है कि जब तक सीमा विवाद नहीं सुलझेगा, तब तक दोपक्षीय संबंधों में सुधार नहीं होगा? ऐसा नहीं है। यह सिर्फ भारत की एक पोजिशनिंग है, एक दिखावा है, जिसका मकसद राजनीतिक कांस्टीट्यूएंसी को एड्रेस करना है। भारत नहीं चाहता है कि चीन के साथ कोई ऐसी तस्वीर आए, जो भारत के मजबूत और सख्त नेतृत्व पर सवाल उठाने वाली हो। इसी वजह से सैन्य साझेदारी बढ़ाने के प्रस्ताव को खारिज किया गया और इसी वजह से एससीओ की बैठक में राजनाथ सिंह ने चीनी रक्षा मंत्री से हाथ मिलाने से इनकार किया।

हकीकत यह है कि कूटनीतिक और सैन्य मामले में भारत जो भी स्टैंड ले कारोबार के मामले में भारत बुरी तरह से चीन पर निर्भर होता जा रहा है। सोचें, अगर भारत को चीन के सीमा विवाद सुलझे बगैर सैन्य साझेदारी नहीं करनी है या दोपक्षीय संबंधों में सुधार नहीं करना है तो आर्थिक साझेदारी क्यों बढ़ाई जा रही है? सरकार कुछ भी कहे लेकिन हकीकत यह है कि 2015 से 2022 के बीच भारत और चीन का दोपक्षीय व्यापार 190 फीसदी बढ़ा है। यानी हर साल भारत के आर्थिक विकास दर से दोगुने से ज्यादा रफ्तार से चीन से भारत का कारोबार बढ़ा है। इस अवधि में चीन से होने वाला आयात 120 फीसदी बढ़ा है, जबकि भारत के निर्यात में 38 फीसदी की कमी आई है। चीन के साथ एक साल का कारोबार 136 अरब डॉलर का हो गया है। यह तब हुआ है जब भारत में चीन के बहिष्कार की बात चल रही है। अगर दोपक्षीय संबंध सीमा विवाद के सुलझने पर निर्भर हैं तो आर्थिक संबंधों को क्यों उससे अलग रखा गया है?

दोनों देशों के कारोबार की छोड़ें एक हकीकत यह भी है कि चीन के जाल में फंस कर भारत ने पूर्वी लद्दाख के इलाके में अपनी रणनीतिक बढ़त गंवाई है। गलवान घाटी की घटना के बाद भारत के बहादुर सैनिकों ने 29-30 अगस्त 2020 की रात को कैलाश रेंज में रेजांग ला और रेचिन ला की पहाड़ियों पर अपना नियंत्रण बना लिया था। यह इतना अचानक हुआ था कि चीन के सैनिक हतप्रभ रह गए थे। उनको पता भी नहीं चला और भारत की सेना ने ऐसी रणनीतिक जगह पर अपना नियंत्रण बना लिया, जहां से वह चीनी सैनिकों की हर गतिविधि पर नजर रख सकती थी। इस घटना के बाद अचानक चीन ने भारत से सैन्य वार्ता में रूचि दिखानी शुरू की और यथास्थिति बहाली के लिए कोर कमांडरों की वार्ता शुरू हुई। ऐसी ही एक वार्ता में भारत ने चीन की बात मान ली और पैंगोंग झील के पास उसके सैनिकों के पीछे हटने के बदले में रेजांग ला और रेचिन ला से अपने सैनिकों के हटा लिया। जैसे ही भारत की यह रणनीतिक बढ़त समाप्त हुई, चीन की वार्ता में रूचि भी समाप्त हो गई। सोचें, अब तक कोर कमांडर स्तर की 18 दौर की वार्ता हो चुकी है और अभी तक पैंगोंग झील के अलावा किसी दूसरी जगह से सैनिकों के पीछे हटने की बात सफल नहीं हुई है। सो, चाहे सामरिक हो या आर्थिक दोनों मोर्चे पर चीन किसी न किसी तिकड़म से भारत को अपने जाल में फंसाए हुए है।

भारत सरकार की दिक्कत यह है कि उसने यह लाइन पकड़ ली है कि चीन की ओर से कोई घुसपैठ नहीं हुई है और किसी ने भारत की एक इंच जमीन नहीं कब्जा की है। गलवान घाटी की घटना के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 जून 2020 को सर्वदलीय बैठक में कहा था कि न कोई घुसा है और न कोई घुस आया है। उन्होंने इस बात को खारिज किया कि चीन ने भारत की जमीन कब्जा किया है। सोचें, भारत कह रहा है कि चीन ने एक इंच जमीन नहीं ली है और चीन भी यही कह रहा है कि उसने एक इंच जमीन नहीं ली है, फिर विवाद किस बात का है? चीन ने घुसपैठ नहीं की है तो भारत कहां से उसको पीछे हटने और अप्रैल 2020 से पहले की यथास्थिति बहाल करने के लिए कह रहा है? अगर चीन ने कोई घुसपैठ नहीं की है तो दुशांबे में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने जो कहा था कि पूर्वी लद्दाख में चीन की कार्रवाई से दोपक्षीय संबंध प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित हुए हैं। सवाल है कि वह क्या कार्रवाई थी, जिससे दोपक्षीय संबंध प्रभावित हुए हैं?

सो, कुछ तो है जो भारत के लोग नहीं जानते हैं। सरकार को वह बताना चाहिए। नागरिकों को भरोसे में लेना चाहिए और तब चीन से निर्णायक बात करनी चाहिए। देश के नागरिक देख रहे हैं कि उसने पूर्वी लद्दाख में क्या किया या अरुणाचल प्रदेश में किस तरह से उसने 30 से ज्यादा जगहों के नाम बदल दिए। डोकलाम विवाद से भी देश परिचित है। अच्छा है, जो भारत सरकार कह रही है कि इन सारी जगहों पर सीमा विवाद सुलझे तभी दोपक्षीय संबंधों में प्रगति होगी। लेकिन और अच्छा तब होगा, जब दोपक्षीय संबंधों में कारोबार को शामिल किया जाए। भारत अगर चीन से कारोबार खत्म करने या कम करने की हिम्मत दिखाए तभी चीन को कोई सबक दिया जा सकेगा।

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Published by अजीत द्विवेदी

संवाददाता/स्तंभकार/ वरिष्ठ संपादक जनसत्ता’ में प्रशिक्षु पत्रकार से पत्रकारिता शुरू करके अजीत द्विवेदी भास्कर, हिंदी चैनल ‘इंडिया न्यूज’ में सहायक संपादक और टीवी चैनल को लॉंच करने वाली टीम में अंहम दायित्व संभाले। संपादक हरिशंकर व्यास के संसर्ग में पत्रकारिता में उनके हर प्रयोग में शामिल और साक्षी। हिंदी की पहली कंप्यूटर पत्रिका ‘कंप्यूटर संचार सूचना’, टीवी के पहले आर्थिक कार्यक्रम ‘कारोबारनामा’, हिंदी के बहुभाषी पोर्टल ‘नेटजाल डॉटकॉम’, ईटीवी के ‘सेंट्रल हॉल’ और फिर लगातार ‘नया इंडिया’ नियमित राजनैतिक कॉलम और रिपोर्टिंग-लेखन व संपादन की बहुआयामी भूमिका।

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