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भारत भी तो कुछ कहे चीन को!

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भारत भी तो कुछ कहे चीन को!

भारत अपनी ही सीमा में पीछे हटे और चीन भारत की सीमा से निकल कर अपनी पुरानी पोजिशन पर बैठे। इस तरह पूरा बफर जोन भारत की जमीन में बन जाएगा। यह चीन की ‘स्लाइसिंग मिलिट्री स्ट्रेटेजी’ है। जिस तरह किसी भी चीज के पतले पतले स्लाइस काटे जाते हैं वैसे ही चीन पड़ोसी देशों की सीमा पर उनकी जमीन के पतले-पतले टुकड़े काटता है और उस पर कब्जा करता जाता है।

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सारी दुनिया चीन को कठघरे में खड़ा कर रही है। जी-7 देशों के नेताओं ने कोरोना वायरस की उत्पत्ति को लेकर चीन पर सीधी उंगली उठाई। चीन की परवाह किए बगैर जी-7 देशों ने ताइवान को तरजीह दी। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अपने देश की खुफिया एजेंसियों को वायरस की उत्पत्ति की जांच करके 90 दिन में रिपोर्ट देने को कहा है। चार देशों के क्वाड में शामिल तीन देश- अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया भी चीन पर सवाल उठाते रहते हैं। लेकिन भारत पूरी तरह से चुप्पी साधे हुए है। क्वाड के चार देशों में भारत एकमात्र देश है, जिसकी सीमा चीन से लगती है और भारत ही चुप है। भारत एकमात्र देश है, जिसके साथ चीन का सीमा विवाद चल रहा है, सैन्य तनातनी है और कारोबार असंतुलन भी है इसके बावजूद भारत कुछ नहीं बोल रहा है।

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क्या भारतीय नेतृत्व यह सोच रहा है कि उसकी लड़ाई दुनिया लड़े और वह चीन के साथ कारोबार करता रहे? ऐसा कैसे संभव है? ताजा रिपोर्ट के मुताबिक इस साल यानी 2021 में चीन के साथ भारत का कारोबार बढ़ गया है। चीन के सीमा शुल्क और उत्पाद विभाग के मुताबिक साल के पहले पांच महीने में दोतरफा कारोबार में 70 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। लेकिन अगर भारत सरकार के आंकड़ों पर यकीन करें तब भी इसमें 55 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। भारत के आंकड़ों के मुताबिक दोनों देशों के बीच 45 अरब डॉलर के करीब कारोबार हुआ है, जिसमें 34 अरब डॉलर का सामान चीन ने भारत को भेजा है और भारत की ओर से निर्यात 11 अरब डॉलर के करीब का है। यानी कारोबार असंतुलन तीन गुने का है।

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सोचें, यह आंकड़ा कब आया है! गलवान घाटी में भारत के 20 जवानों के शहीद होने की बरसी से ठीक पहले यह आंकड़ा आया है कि उनकी शहादत के बाद भारत और चीन के बीच कारोबार बढ़ गया है। कहां तो कहा जा रहा था कि गलवान घाटी के 20 जवानों की शहादत की बड़ी कीमत चीन को चुकानी पड़ेगी और कहां भारत सरकार चीन की कमाई बढ़ाने का बंदोबस्त कर रही है! लोगों की आंखों में धूल झोंकने के लिए चाइनीज मोबाइल ऐप्स बंद करने का दिखावा किया गया और दूसरी ओर दोतरफा कारोबार पहले की तरह फलने-फूलने दिया गया! तो क्या गलवान घाटी के शहीदों की शहादत बेकार नहीं चली गई? शहादत का बदला लेने के लिए चीन से युद्ध करने की जरूरत नहीं है लेकिन भारत उसके ऊपर बड़ी आर्थिक कीमत लाद सकता था, जो उसने नहीं किया। उलटे सरकार के चहेते कारोबारियों को फायदा पहुंचाने के लिए चीन के साथ कारोबार असंतुलन को बढ़ने दिया गया।

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गलवान घाटी में भारतीय जवानों की शहादत की बरसी पर यह भी देखने की जरूरत है कि आज पूर्वी लद्दाख में जमीनी हालात क्या हैं? कह सकते हैं कि एक साल बाद भी जमीनी हालात में कोई बदलाव नहीं हुआ है। पिछले साल 15 जून को गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प से एक महीने पहले चीन ने भारत के साथ सैन्य स्तर की वार्ता शुरू की थी। उसके बाद दोनों के बीच 11 बार सैन्य कमांडर स्तर की वार्ता हुई है। इसका कुल जमा हासिल यह है कि इस साल फरवरी में पैंगोंग झील के पास से दोनों देशों के सैनिकों के पीछे हटने की सहमति बनी, जिसे भारत की जीत की तरह प्रचारित किया गया। पैंगोंग झील इलाके में चीन पीछे हटने को तैयार हुआ तो उसका कारण कैलाश पर्वत शृंखला की पहाड़ियों पर समय रहते भारतीय सैनिकों की तैनाती थी। भारत को उसकी वजह से एडवांटेज मिली, लेकिन भारत ने वार्ता की टेबल पर वह एडवांटेज गवां दी और कैलाश पहाड़ियों से भारतीय सैनिकों के नीचे आने की सहमति दे दी। उसके बाद से गतिरोध बना हुआ है।

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यह महज संयोग है या भारत को चिढ़ाने की चीन की रणनीति, जो उसने 15 जून की पूर्व संध्या पर भारत के सामने फिर से सैन्य वार्ता शुरू करने का प्रस्ताव रखा। इससे पहले नौ अप्रैल को कॉर्प्स कमांडर स्तर की वार्ता हुई थी, जिसमें कोई नतीजा नहीं निकला। अब चीन ने डिविजनल कमांडर स्तर की वार्ता का प्रस्ताव दिया है। अगर यह वार्ता होती है तो इसमें मेजर जनरल स्तर के अधिकारी शामिल होंगे। इसमें हॉट स्प्रिंग और गोगरा पोस्ट को लेकर बात होगी। इस इलाके में चीनी फौज की एक टुकड़ी वास्तविक नियंत्रण रेखा यानी एलएसी पार करके भारत की सीमा में घुस कर बैठी है। कायदे से भारत की शर्त यह होनी चाहिए कि चीन पहले भारत की सीमा से बाहर निकले उसके बाद ही वार्ता होगी। अगर भारत ऐसा नहीं करता है तो वार्ता इस बात को लेकर होगी कि चीन और भारत जहां-जहां है वहां से पीछे हटें। इसका मतलब होगा कि भारत अपनी ही सीमा में पीछे हटे और चीन भारत की सीमा से निकल कर अपनी पुरानी पोजिशन पर बैठे। इस तरह पूरा बफर जोन भारत की जमीन में बन जाएगा। यह चीन की ‘स्लाइसिंग मिलिट्री स्ट्रेटेजी’ है। जिस तरह किसी भी चीज के पतले पतले स्लाइस काटे जाते हैं वैसे ही चीन पड़ोसी देशों की सीमा पर उनकी जमीन के पतले-पतले टुकड़े काटता है और उस पर कब्जा करता जाता है। भारत के खिलाफ वह इसी रणनीति के तहत काम कर रहा है। डोकलाम से लेकर पैंगोंग झील और हॉट स्प्रिंग, गोगरा से लेकर देपसांग के मैदानी इलाकों तक में उसने यह रणनीति आजमाई हुई है। यह सबको पता है कि चीन ने देपसांग में पारंपरिक रूप से गश्त के बिंदुओं तक भारत को जाने से रोका है। पेट्रोलिंग प्वाइंट 10 से लेकर 13 तक वह भारत को गश्त नहीं करने दे रहा है। भारत को पहले पारंपरिक पेट्रोलिंग प्वाइंट तक अपनी गश्त शुरू करनी चाहिए और उसके बाद अपनी शर्तों पर चीन से वार्ता करनी चाहिए। पर अफसोस की बात है कि भारत के प्रति चीन की स्थायी दुश्मनी को जानते समझते हुए भी भारत का नेतृत्व उसके साथ सख्ती से पेश आने की बजाय उसकी रणनीति के हिसाब से ही काम कर रहा है।

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सख्ती से पेश आने का यह कतई मतलब नहीं है कि भारत युद्ध छेड़ दे। दो परमाणु शक्ति संपन्न और बड़ी पारंपरिक सैन्य ताकत वाले देशों के बीच किसी भी समस्या के समाधान के लिए युद्ध कोई विकल्प नहीं हो सकता है। युद्ध के अलावा चीन पर दबाव बनाने के भारत के पास बहुत से विकल्प हैं। कोरोना वायरस की उत्पत्ति को लेकर सारी दुनिया इस समय चीन को कठघरे में खड़ा कर रही है। ताइवान जैसा छोटा देश खुल कर इस मसले पर चीन के खिलाफ बोल रहा है। लेकिन भारत ने एक बार भी उसका नाम नहीं लिया है। भारत चाहे तो वायरस की उत्पत्ति की जांच के बहाने चीन पर दबाव बना सकता है। भारत के साथ सीमा विवाद के मसले पर भी अमेरिका और दुनिया के देश नाम लेकर चीन को तनाव के लिए जिम्मेदार ठहरा रहे हैं लेकिन खुद भारत कभी भी इस पर बयान नहीं देता है। सीमा विवाद के लिए चीन को जिम्मेदार ठहरा कर भारत उस पर दबाव बना सकता है। इसके अलावा भारत चाहे तो चीन पर बड़ा आर्थिक दबाव बना सकता है। अगर चीन से होने वाले आयात को नियंत्रित किया जाए और उसकी कंपनियों को भारत में कारोबार करने से रोका जाए तो चीन को बड़ा आर्थिक नुकसान हो सकता है। भारत को सैन्य दबाव के साथ साथ आर्थिक और कूटनीतिक दबावों के विकल्प के बारे में गंभीरता से विचार करना चाहिए।
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