चीन की नियत पर गुरूवार को खबर थी कि वह सीमा पर से सेना पीछे नहीं हटा रहा है। कई राउंड बातचीत में अलग-अलग पोजिशन से पीछे हटने की सहमति के बावजूद चीनी सेना देपसांग, और गोगरा-हॉट स्प्रिंग, पैंगोंग सो-पैंगांग झील के फिंगर क्षेत्र मेंसैनिक जस के तस तैनात किए हुए है। जबकि इन स्थानों को न्यूट्रल बनाने की सहमति थी। केवल गलवान में उसका भी पीछे हटना हुआ है। एएनआई एजेंसी ने सूत्रों के हवाले बताया कि लद्दाख की नियंत्रण रेखा पर चीन के चालीस हजार सैनिक तैनात हैं। ये भारी हथियार कवच, मसलन हवाई रक्षा सिस्टम, बख्तरबंद गाड़ियों और मोर्चे पर व पीछे की तरफ लांग रेंज तोपों से लैस हैं। सोच सकते हैं कि चीन दस सप्ताह से नियंत्रण रेखा पर आक्रामकता से है। विस्तारवादी पैंतरे चल रहा है। सीमा पर तनाव है। जो हुआ है और जो है उसे दुनिया जान रही है। इसमें यदि नंबर एक ऐतिहासिक काम, भारत के मनोबल को बढ़ाने की पहल है तो वह अमेरिकी ससंद में चीन को चेतावनी वाला प्रस्ताव है। अमेरिकी कांग्रेस (संसद) में अमेरिकी सांसदों ने चीन से कहा है कि वह भारत के साथ तमीज से पेश आए। डंडे के जोर से वह भारत की जमीन हड़पने की कोशिश न करे।
यह अभूतपूर्व समर्थन है। भारत को इसका अर्थ समझना चाहिए। अमेरिका, ब्रिटेन और मोटे तौर पर यूरोपीय व दुनिया के लोकतांत्रिक देशों जापान, ऑस्ट्रेलिया से ले कर दक्षिण कोरिया, ताईवान, न्यूजीलैंड सब चीन को इस समय दुरूस्त करना चाहते हैं। उसकी दादागिरी, मनमानी के खिलाफ हैं। ट्रंप प्रशासन और उसके विदेश मंत्री दुनिया घूमते हुए चीन के खिलाफ सख्त रवैये, उसकी कंपनियों के बहिष्कार के लिए माहौल बनवा रहे हैं। अमेरिका ने पूरे दस्तावेजों के साथ चीन के साइबर जासूसों द्वारा कोविड-19 कीवैक्सीन बना रही प्रयोगशालाओं में जासूसी करने का भंडाफोड़ किया है। यहीं नहीं टेक्सास ह्यूस्टन में चीन के वाणिज्य दूतावास पर भी ताला लगवा दिया है। अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप यदि चीन के खिलाफ आक्रामकता से अपने को चमका रहे हैं तो उनके विरोधी डेमोक्रेटिक पार्टी के राष्ट्रपति उम्मीदवार बिडेन भी चीन के खिलाफ सख्त नीति के हिमायती हैं।
जाहिर है चीन के खिलाफ अमेरिका में आम राय से माहौल है। इसलिए भारत की सीमा पर चीन के दबाव की खबरों को अमेरिका में गंभीरता से लिया जा रहा है। अमेरिकी संसद ने इसका प्रस्ताव तक बनाया। अमेरिकी रक्षा मंत्रालय ने भारत का हौसला बढ़ाने के लिए नौसेनिक बेड़ा हिंद महासमागर में भेजा है। अंडमान-निकोबार द्विप के आस-पास अमेरिकी नौ सैनिक जहाज ‘निमिट्ज’ के साथ भारतीय जहाजों का सैन्य-अभ्यास है।
इस सब पर अपने डॉ. वेदप्रताप वैदिक ने गुरूवार को नया इंडिया में लिखा-भारतीय विदेश-नीति निर्माता यह भयंकर भूल कतई न करें कि वे अमेरिका के मोहरे बन जाएं। उनके अनुसार अमेरिका आज मजबूर है। हम मजबूरी का फायदा जरूर उठाएं लेकिन यह जानते हुए कि ज्यों ही अमेरिकी स्वार्थ पूरे हुए तो वह भारत को भूल जाएगा। फिर ट्रंप का कुछ पता नहीं कि वे दुबारा राष्ट्रपति बनेंगे या नहीं? इससे अपनी सहमति नहीं है। अपना पहले भी तर्क था और अब भी है दुनिया के आगे के सिनेरियो में, सभ्यताओं के संघर्ष के अगले मुकाम में भारत का नैसर्गिक एलांयस अमेरिका-यूरोपीय-लोकतांत्रिक देशों से बनता है न कि चीन की घमंडी, विस्तारवादी सभ्यता से या इस्लामी देशों से। तभी अब वह ऐतिहासिक घड़ी है जब भारत-अमेरिका में स्थायी सुरक्षा-सामरिक संधि हो। इस संधि से अमेरिका साफ, दो टूक चीन को संदेश दे कि भारत पर हमला अमेरिका अपने पर हमला मानेगा। इसलिए वह भारत की तरफ आंख उठा कर न देखे!
क्या ऐसा कुछ संभव है? पता नहीं। लेकिन भारत और अमेरिकादोनों के नेताओं में जैसा संवाद है और विदेश मंत्रीऔर व्यापार मंत्रियों के बीच व्यापार समझौते से ले कर तमाम मामलों में जो बात हो रही है तो संभव है चीन के परिप्रेक्ष्य में दोनों देशों में कोई ठोस-स्थायी सहमति बने। भारत और अमेरिका दोनों को छोटे-छोटे विवाद खत्म करके दीर्घकालीन सहयोग और साझे के करार करने चाहिए।
क्या इससे अमेरिका का भारत मोहरा नहीं बनेगा? नहीं। ऐसा डर फालतू और शीत युद्ध की मानसिकता में बना हुआ है। दुनिया बदल गई है और बदली दुनिया में भारत का जो अनुभव है उसमें चीन का बंदोबस्त किए बिना भारत आगे नहीं बढ़ सकता है, यह हर कोई महसूस कर रहा है। भारत को पश्चिमी देशों का टेका चाहिए। फिर अब जब खुद अमेरिका तैयार है, पहल करके भारत के समर्थन में आगे आया है तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और तमाम नीति-निर्धारकों को चीन संकट के बहाने अमेरिका से स्थाई सैनिक-सामरिक रिश्ता बना लेना चाहिए।
चीन के आगे अमेरिका है साथ
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