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ये संयोग है या प्रयोग?

ByNI Editorial,
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पहले सहसा इस खबर पर यकीन करना मुश्किल है। लेकिन ये सच है कि भारत पाकिस्तान की जमीन पर उस आतंकवाद विरोधी सैनिक अभ्यास में शामिल होगा, जिसमें पाकिस्तान की सेना भी हिस्सा लेगी। पब्बी आतंकवाद विरोधी संयुक्त सैनिक अभ्यास इसी वर्ष होगा। शंघाई सहयोग संगठन के क्षेत्रीय आतंकवाद विरोधी ढांचे के तहत इसका कार्यक्रम बना है। लेकिन भारत के नजरिए से मुद्दा यह है कि क्या भारत अब पाकिस्तान को आतंकवाद विरोधी शक्ति मानने लगा है? क्या उसकी ये राय बदल गई है कि पाकिस्तान आतंकवाद को संरक्षण और प्रश्रय देता है? अगर ऐसा हुआ है, तो फिर यह भारत की आतंकवाद संबंधी समझ में पैराडाइम शिफ्ट (मानक परिवर्तन) माना जाएगा। मगर ऐसे परिवर्तन का कोई आधार है, यह सामान्य बुद्धि से बाहर है। पिछले दिनों भारत और पाकिस्तान के बीच वर्षों से रिश्‍तों पर जमी बर्फ अब पिघलने लगी, ये तो साफ है।

मगर बात इस हद तक पहुंच गई है, ये अविश्वसनीय है। और ब्‍लूमबर्ग की ये रिपोर्ट कम अविश्वसनीय नहीं है कि भारत और पाकिस्‍तान के बीच दोस्‍ती के बीच संबंधों में सुधार का यह रास्‍ता संयुक्‍त अरब अमीरात का शाही परिवार तैयार कर रहा है। सवाल यह है कि यूएई के शाही परिवार का भारत सरकार पर इतना प्रभाव कैसे है कि वह अपने एक बुनियादी एजेंडे को नरम करने पर तैयार हो गई है? यहां ये उल्लेखनीय है कि 2019-20 में जब भारत में नागरिकता कानून संशोधन विरोधी आंदोलन चल रहा था, तब यूएई की राजकुमारी ने कड़े शब्दों का इस्तेमाल करते हुए भारत की आलोचना की थी। वैसी किसी आलोचना पर विचलित हो जाने वाली भारत सरकार ने उसका उसी अंदाज में जवाब नहीं दिया था। तब भी ये प्रश्न उठा था कि आखिर यूएई के शाही परिवार के प्रति भाजपा सरकार का रुख इतना नरम क्यों है? ये अभी तक रहस्य ही है। लेकिन यह रहस्यमय प्रभाव अब भारत को उस रास्ते पर ले जा रहा है, जिससे वर्षों में विकसित हुई भारत की वो कूटनीतिक पहल अप्रभावी हो सकती है, जिसके जरिए पाकिस्तान को घेरा गया था। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट में बताई गई एक बात ध्यान खींचती है कि नियंत्रण रेखा पर सीजफायर को प्रभावी तरीके से लागू करने के एलान के ठीक 24 घंटे बाद यूएई के विदेश मंत्री एक दिन की यात्रा पर नई दिल्‍ली पहुंच गए। संभवतः यह कोई संयोग नहीं, बल्कि एक प्रयोग का ही हिस्सा था।

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