बेबाक विचार

भारत में बढ़ती भूख

ByNI Editorial,
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भारत में बढ़ती भूख
संवेदनशील सरकार का पहला कदम इस सच को स्वीकार करना होता। लेकिन जब सच को स्वीकार करने के लिए सरकार तैयार नहीं है, तो फिर सुधार की अपेक्षा तो बेकार ही है। इसीलिए ऐसी आशंकाओं में दम है कि आने वाले समय में भारत दुर्दशा की कहानी अधिक विकराल होती जाएगी। global hunger index 2021 दो अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने अपने वर्ल्ड हंगर इंडेक्स के ताजा संस्करण में जो बताया, वह बेशक किसी देश के लिए शर्म की बात है। जो देश कभी महाशक्ति बनने का सपना देखता था, वहां अगर भूख की समस्या इस हद तक बढ़ गई है कि उसके नीचे सिर्फ युद्ध जर्जर और दूसरी मुसीबतों के मारे देश ही हैँ। लेकिन भारत सरकार ने अपनी फितरत के मुताबिक उस हकीकत को स्वीकार नहीं किया। बल्कि इंडेक्स बनाने के तरीके पर सवाल उठा दिए। हालांकि अगले ही दिन इंडेक्स बनाने में शामिल रही एक जर्मन संस्था ने सरकार के सवालों को निराधार साबित कर दिया। बहरहाल, इस सरकार की फितरत आरंभ से ही यही रही है कि हकीकत पर नहीं, बल्कि हकीकत की प्रस्तुति पर ध्यान दिया जाए। यानी बहुत खराब हालत की भी हेडलाइन मैनेजमेंट से गुलाबी सूरत पेश की जा सकती है और उससे मतदाताओं के एक बड़े वर्ग को प्रसन्न किया जा सकता है। अब तक ये तरीका सियासी तौर पर कामयाब रहा है। लेकिन लोगों की माली हालत के मोर्चे पर सूरत लगातार डरावनी होती जा रही है। हंगर इंडेक्स कुपोषण, बाल अल्प-विकास और बाल मृत्यु की दर के आधार पर तैयार किया जाता है।

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ये सारे ठोस आंकड़े हैं। फिर उसमें संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी विश्व खाद्य संगठन के मानकों का उपयोग किया जाता है। संयुक्त राष्ट्र की संस्थाओं को सूचना हर देश के आधिकारिक स्रोतों से मिलती है। तो ऐसे में जो यथार्थ हमारी आंखों के सामने चारों और पसरा है, उसे स्वीकार करने के बजाय सरकार उसकी प्रस्तुति के सवाल उठाए, तो यही कहा जाएगा कि आम जन की पीड़ा के प्रति वह पूरी तरह असंवेदनशील है। संवेदनशील सरकार का पहला कदम इस सच को स्वीकार करना होता। उसके बाद ऐसी सरकार इसे राष्ट्रीय शर्म का विषय बताती और इस शर्म को मिटाने के राष्ट्रीय प्रयास शुरू करने का संकल्प लेती। इसमें सभी दलों और नागरिक समाज को शामिल कर ऐसी कोशिश करती कि अगले साल जब ये इंडेक्स जारी हो, तो उसमें सुधार का ट्रेंड दिखे। लेकिन जब सच को स्वीकार करने के लिए सरकार तैयार नहीं है, तो फिर सुधार की अपेक्षा तो बेकार ही है। इसीलिए ऐसी आशंकाओं में दम है कि आने वाले समय में भारत दुर्दशा की कहानी अधिक विकराल होती जाएगी।
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