बेबाक विचार

अनिवार्य टीकाकरण की ओर भारत

Share
अनिवार्य टीकाकरण की ओर भारत
नेशनल डिजिटल हेल्थ मिशन क्या अंततः भारत को अनिवार्य टीकाकरण की ओर ले जाएगा? इसी से जुड़ा दूसरा सवाल यह है कि क्या भारत सरकार का यह मिशन दुनिया के सबसे बड़े उद्योगपतियों में से एक बिल गेट्स की ओर से प्रस्तुत आईडी-2020 प्रोजेक्ट का हिस्सा है या उसका विस्तार है? और क्या रिलायंस का जियो डिजिटल प्लेटफॉर्म भी इससे जुड़ा है? क्या नेशनल डिजिटल हेल्थ मिशन के तहत बनने वाले हेल्थ कार्ड हर भारतीय के लिए हेल्थ पासपोर्ट के तौर पर काम करेगा, जिसे अपडेट और एक्टिव रखने के लिए हर व्यक्ति को सारे टीके लगवाने होंगे? अभी तो सरकार कह रही है कि इस मिशन के तहत हेल्थआईडी बनवाना स्वैच्छिक है। पर याद करें किस तरह से आधार कार्ड बनवाना भी स्वैच्छिक था और कैसे सरकार ने उसे अनिवार्य किया। सिर्फ अनिवार्य नहीं किया गया, बल्कि लोगों को मजबूर किया गया कि वे आधार कार्ड बनवाएं और उसे पैन कार्ड के साथ लिंक करें। इसके बगैर लोगों का आयकर रिटर्न भरना रोक दिया गया। वह तो बाद में सुप्रीम कोर्ट ने इसकी अनिवार्यता खत्म की लेकिन तब तक देश के ज्यादातर लोग आधार कार्ड बनवा चुके थे। यह भी खबर है कि चुनाव आयोग वोटर आईकार्ड को भी आधार कार्ड से जोड़ने की तैयारी कर रहा है। और यह भी एक तथ्य है कि कोई भी सरकारी सब्सिडी आधार के बगैर नहीं मिलती है। अगर आधार में कोई एक डाटा गलत हो गया तो आपके सारे काम रूक सकते हैं। यह आपके पैन कार्ड से लिंक होने के साथ साथ आपके फोन नंबर से भी लिंक होता है और अगर आप डिजिटल पेमेंट के प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करते हैं या पीपीएफ, ईपीएफ के एकाउंट हैं तो उसमें भी आधार लिंक किया गया होगा और उसमें जरा सी गड़बड़ी हुई तो आपके सारे एकाउंट से लेन-देन बंद हो सकता है। बिल्कुल इसी तरह का काम हेल्थआईडी कार्ड भी करेगा। यह भी कहा जा रहा है कि आधार को हेल्थआईडी से लिंक किया जाएगा। सो, भले यह अभी स्वैच्छिक हो पर हो सकता है कि आगे इसके बगैर आयुष्मान भारत जैसी योजनाओं का लाभ न मिले। इस कार्ड को बनाने में आपको आधार में दिया गया सारा डाटा तो डालना ही होगा साथ में अपनी शारीरिक बनावट से लेकर अपनी सारी बीमारियों, इलाज, जांच और दवाओं का ब्योरा भी देना होगा। इसमें आपके टीकाकरण की भी पूरी जानकारी होगी, जिसके खेल में दुनिया और देश के सबसे बड़े उद्योगपति शामिल हैं। माइक्रोसॉफ्ट के मालिक बिल गेट्स पहले से वैक्सीन के ग्लोबल खेल के सबसे मुख्य खिलाड़ी हैं और अब रिलायंस समूह भी इस खेल में कूद गया है। रिलांयस समूह की पिछली एजीएम में जिन लोगों ने सिर्फ मुकेश अंबानी का भाषण सुना और उनके बच्चों के भाषण सुन कर वाह-वाह किए उन्हें नीता अंबानी का भाषण भी ध्यान से सुनना चाहिए। नीता अंबानी ने रिलायंस के जियो डिजिटल प्लेटफॉर्म की बात की और कहा कि कंपनी इस प्लेटफॉर्म के जरिए कोरोना वायरस की वैक्सीन को गावों और देश के दूरदराज के इलाकों तक पहुंचाएगी। सवाल है कि अचानक कोरोना वायरस की वैक्सीन के मामले में रिलायंस और उसके जियो डिजिटल प्लेटफॉर्म की क्या भूमिका बन गई? अब तक तो वह कंपनी इस तरह के किसी काम में नहीं थी! क्या 15 जुलाई 2020 को हुए रिलायंस समूह के एजीएम से पहले नीता अंबानी को पता था कि 15 अगस्त को लाल किले से नेशनल डिजिटल हेल्थ मिशन की घोषणा होने वाली है? और तभी डिजिटल हेल्थ मिशन की घोषणा से पहले उन्होंने रिलायंस के जियो डिजिटल प्लेटफॉर्म के जरिए वैक्सीनेशन का ऐलान किया! यह काम बिल गेट्स पहले से कर रहे हैं। गावी यानी ग्लोबल एलायंस फॉर वैक्सीन एंड इम्युनाइजेशन और आईडी-2020 उनका ब्रेन चाइल्ड है। गावी के जरिए ही बिल गेट्स पूरी दुनिया में कोरोना की वैक्सीन पहुंचाने के लिए पैसे इकड्ठा कर रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन, डब्लुएचओ भी इस काम में उनकी मदद कर रहा है। गावी के साथ ही भारत के सीरम इंस्टीच्यूट ऑफ इंडिया का करार हुआ है, जिसके तहत वैक्सीन की दस करोड़ डोज बनाने के लिए सीरम इंस्टीच्यूट को गावी की ओर से 15 करोड़ डॉलर दिए गए हैं। गावी का जुड़ाव आईडी-2020 के साथ भी है और उसने बांग्लादेश के साथ मिल कर वहां आईडी-2020 का प्रोजेक्ट प्रायोगिक तौर पर शुरू किया है। इसके तहत दुनिया के हर नागरिक को एक यूनिक पहचान नंबर और कार्ड दिया जाना है। यह निश्चित रूप से वैक्सीनेशन के साथ जुड़ेगा। अब सवाल है कि माइक्रोसॉफ्ट और रिलायंस कैसे आपस में जुड़ते हैं तो इसका संकेत प्रतिबंधित चाइनीज ऐप टिकटॉक खरीदने के लिए दोनों कंपनियों की चल रही बातचीत से बूझा जा सकता है। इसके आगे की कड़ी अनिवार्य वैक्सीनेशन है। मिसाल के तौर पर अभी कोरोना वायरस का टीका आने वाला है, जो हर नागरिक के लिए लगवाना अनिवार्य होगा। क्योंकि यह ट्रैवल पासपोर्ट की तरह काम करेगा। इसके बगैर आपकी मूवमेंट प्रतिबंधित कर दी जा सकती है। जिस तरह से अब भी कई जगहों पर यात्रा करने के लिए कोरोना निगेटिव होने का प्रमाणपत्र लेकर जाना होता है उसी तरह घरेलू या विदेश यात्रा करने के लिए कोरोना की वैक्सीन लगवाना अनिवार्य हो जाएगा। इस अनिवार्यता के दो खतरे हैं। पहला, भारत सहित अनेक गरीब देशों के नागरिक सारे टीके खुद नहीं लगवा सकते। सो, सरकारों के जरिए करोड़ों-अरबों का खेल होगा और दूसरा, टीके कई बार जानलेवा होते हैं। उनका परीक्षण और प्रयोग गरीब देशों के सैकड़ों, हजारों लोगों के लिए जान का खतरा भी पैदा कर सकता है। अब पूछा जा सकता है कि अगर कोरोना इतनी खतरनाक बीमारी है और सारी दुनिया इसकी वैक्सीन का इंतजार कर रही है तो उसे लगवाना अनिवार्य करने में क्या बुराई है? असल में बुराई यह है कि यह प्रक्रिया सिर्फ कोरोना के टीके तक नहीं रूकेगी। आगे सारे टीके अनिवार्य किए जाएंगे। जिस तरह से कोरोना की महामारी का वैश्विक हल्ला मचा और खौफ पैदा किया गया, हो सकता है कि आगे इससे भी बड़ा खौफ पैदा किया जाए। आखिर वैक्सीनेशन से जुड़े लोग पहले एचआईवी से लेकर सार्स, मार्स, इबोला आदि के बारे में भी ऐसे ही खौफ पैदा करने का प्रयास कर चुके हैं। सो, बात सिर्फ एक टीके की नहीं होगी, सारे टीके अनिवार्य रूप से लगाने होंगे और अगर उनकी जानकारी आपकी हेल्थआईडी में नहीं है तो यात्रा सहित कई और चीजों से वंचित किया जा सकता है। बहरहाल, हेल्थ आईडी किस तरह से लोगों की निजता, उनकी नौकरी, रोजगार और जान के लिए भी खतरा बन सकती है इस पर आइसलैंड के अनुभव के आधार पर कल विचार करेंगे।
Published

और पढ़ें