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नैतिक महत्त्व का फैसला?

आज हकीकत यह है कि डब्लूटीओ की परवाह कोई देश नहीं कर रहा है। जब खुद अमेरिका और यूरोपीय संघ ने डब्लूटीओ के दायरे से बाहर व्यापार प्रतिबंध और व्यापार युद्ध की नीति अपना ली है, तो फिर इस संस्था का क्या रुतबा बचता है?

विश्व व्यापार संगठन (डब्लूटीओ) ने भारत के खिलाफ फैसला दिया है। यूरोपीय संघ, जापान और ताइवान की एक याचिका पर ये फैसला आया। अगर यह भूमंडलीकरण के पलटने का दौर नहीं होता, तो बेशक इस निर्णय को भारत के लिए एक तगड़ा झटका माना जाता। लेकिन आज हकीकत यह है कि डब्लूटीओ की परवाह कोई देश नहीं कर रहा है। जब खुद अमेरिका और यूरोपीय संघ ने डब्लूटीओ के दायरे से बाहर व्यापार प्रतिबंध और व्यापार युद्ध की नीति अपना ली है, तो फिर इस संस्था का क्या रुतबा बचता है? यह भी गौरतलब है कि अमेरिका ने डब्लूटीओ में जजों की नियुक्ति रोक रखी है। इसलिए बहुत सारे मामलों की सुनवाई वहां पूरी नहीं हो पा रही है। ऐसे में ताजा फैसले से भारत के लिए कोई चिंता पैदा होगी, इसकी संभावना नहीं है। बहरहाल, आईटी उत्पादों के आयात पर कर लगाने के मामले में डब्लूटीओ ने भारत के खिलाफ फैसला दिया।

संगठन की एक समिति ने पाया कि भारत ने नियमों को उल्लंघन किया है। यह मामला 2019 का है, जब यूरोपीय संघ ने भारत की आईटी उत्पादों पर 7.5 प्रतिशत से 20 प्रतिशत तक का आयात कर लगाने के फैसले को चुनौती दी थी। भारत ने मोबाइल फोन, उनके उपकरणों और इंटिग्रेटेड सर्किट जैसे उत्पादों पर ये कर लगाए थे। यूरोपीय संघ का कहना था कि ये कर अधिकतम तय सीमा से ज्यादा हैं। जापान और ताइवान ने भी उसी साल इस बारे में शिकायत दर्ज कराई थी। यूरोपीय संघ भारत का तीसरा सबसे बड़ा व्यापार सहयोगी है। यूरोपीय आयोग के मुताबिक 2021 में दोनों पक्षों के बीच जितना व्यापार हुआ, वह भारत के कुल व्यापार का 10.8 फीसदी था। यूरोपीय संघ की शिकायत के मुताबिक 2014 से ही भारत ने मोबाइल फोन, उनके उपकरणों और एक्सेसरी, लाइन टेलीफोन, कन्वर्टर और केबल जैसे उत्पादों पर 20 फीसदी तक के आयात कर लगाए थे। यह डब्लूटीओ की सीमा से ज्यादा है। यूरोपीय संघ का कहना है कि भारत के करों के कारण उसके निर्यात को 60 करोड़ यूरो तक का नुकसान सालाना हो रहा है।

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