जब चीन में कोरोना वायरस के कारण वहां फंसकर दिक्कतें झेल रहे भारतीय छात्रों के बारे में पढ़ा तो बहुत आश्चर्य हुआ क्योंकि मुझे लगता था कि भाषा की समस्या के कारण वहां बहुत कम लोग ही पढ़ाई करने जाते होंगे। इससे पहले छात्रों को ब्रिटेन, अमेरिका, न्यूजीलैंड व आस्ट्रेलिया ही पढ़ने के लिए जाते सुना था। इसकी एक वजह यह सोचना था की चीनी भाषा दुनिया की सबसे कठिन भाषाओं में जानी जाती है। वहां उसकी बोलचाल की भाषा मेंडरिन प्रचलित है जिसमें एक हजार से ज्यादा अक्षरो व हर अक्षर के अलग-अलग तरह से अच्चारण किया जाता है व उच्चारण के अनुसार उसका अर्थ अलग हो जाता है। इसके बावजूद सच्चाई कुछ और ही हैं। इस समय चीन में अमेरिका से ज्यादा भारतीय छात्र पढ़ रहे हैं। इनमें से ज्यादातर डाक्टरी की पढ़ाई कर रहे हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि वहां पढ़ाई की भाषा अंग्रेजी है। सच्चाई तो यह है कि इस समय ब्रिटेन से ज्यादा चीन में भारतीय छात्र है। इस समय ब्रिटेन में 18015 व चीन में 25650 छात्र है। चीनी सरकार की खुली नीतियो व बेलर व ग्रेड की नीति के कारण यह संख्या काफी बढ़ी हैं।
वहां थाईलैंड, पाकिस्तान, इंडोनेशिया से भी बड़ी तादाद में छात्र उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए जा रहे हैं। ब्रेक्सिट की चिंताओं के कारण यह संख्या तेजी से बढ़ी। इसकी बड़ी वजह यह है कि चीन में उच्च शिक्षा हासिल करना ब्रिटेन व यूरोप में रहकर शिक्षण हासिल करनी की तुलना में काफी सस्ता है। वहां एमबीबीएस की सालाना फीस दो से तीन लाख रू के बीच में है। वहां की ज्यादातर यूनिवर्सिटी सरकारी व उनकी डिग्रियो को भारत की मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया ने मान्यता दे रखी है।
जबकि रूस के साथ ऐसा नहीं है। वहां की डिग्रियां हासिल करने वाले छात्रो को यहां आकर दोबारा परीक्षा देनी पड़ती है व उसके मुश्किल से 5-10 फीसदी छात्र ही पास हो पाते हैं। वहां की यूनिवर्सिटी दुनिया की जानी-मानी यूनिवर्सिटी में गिनी जाती है व वहां आधारभूत सुविधाएं भी उत्कृष्ट है। भारत के नजदीक होने के कारण भी छात्र वहां जाकर पढ़ना पसंद करते हैं।
वहां 2000 में 52,150 विदेशी छात्र थे जोकि अब बढ़कर 4,50,000 हो गए हैं। वहां एमबीबीएस छह साल का है व उसके बाद चीन में या भारत में एक साल की इटर्नशिप करनी पड़ती है। सबसे बड़ी वजह उन्हें अंग्रेजी में पढ़ाया जाता है। हालांकि ज्यादातर लोग फ्रेंच, स्पेनिश व जर्मन के बाद मेंडरिन भाषा सीख रहे हैं। वैसे भी चीन दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। सूचना तकनीक के क्षेत्र में भी चीन का पूरी दुनिया में अलग स्थान है। पिछले साल भारत की सबसे बड़ी सूचना तकनीक कंपनी नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इंफार्मेशन टेक्नोलॉजी ने चीन में प्रशिक्षण केंद्र खोला था।
इसका मतलब यह नहीं है कि चीन में उच्च शिक्षा हासिल करने जाने वालो के लिए सब कुछ अच्छा ही अच्छा है। सबसे बड़ी समस्या यह है कि भारत में पढ़ाई के लिए बाहर भेजने वाले एजेंट सक्रिय हो गए हैं जोकि छात्रों व कॉलेजो के भ्रष्ट अफसरो से दलाली लेकर उनको बड़े-बड़े वादें करते हैं जैसे कि उन्हें रहने के लिए अच्छी जगह व भारतीय खाना मिल जाएगा। दक्षिणी चीन में विभिन्न देशों के छात्रों के बीच जरा-जरा-सी बात पर मारपीट व झगड़े होने की खबरें सुनने में आती रही है।
इसलिए छात्रों के रहने व वहां यात्रा करते समय सवाधान रहने की जरूरत होती है। सबसे बड़ी समस्या चीनी भाषा न आने की होती है जिससे कि वहां के समाज में मिलना-जुलना मुश्किल हो जाता है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि वहां छात्रों को ब्रिटेन, अमेरिका, आस्ट्रेलिया आदि देशों की तरह पढ़ते समय नौकरी कर अपना खर्च उठाने के लिए पैसा कमाने की छूट नहीं होती है। वहां कुछ ऐसे मेडिकल कॉलेज नहीं है जिनका स्तर काफी घटिया हो। वहां जाते ही मेडिकल बीमा ले लेना चाहिए क्योंकि वहां दुर्घटनागस्त होने या बीमार पढ़ने पर काफी महंगा खर्च उठाना पड़ता है।
छात्रों को पढ़ाई के अलावा अपने रहने, खाने-पीने का खर्च भी उठाना पड़ता है जिसके बारे में उन्हें अक्सर एजेंट गलत जानकारी देते हैं। ड्राइंविंग करते समय बहुत सतर्क रहना चाहिए व बिना लाइसेंस के ड्राइव करने पर मौटे जुर्माने के अलावा देश से निकाले जाने की सजा भी भुगतनी पड़ सकती है। भीड़ में चलते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि किसी को धक्का न लगे। पंक्ति नहीं तोड़नी चाहिए व नए लोगों से ज्यादा सवाल नहीं पूछने चाहिए। सबके साथ सम्मान के साथ बात करनी चाहिए।
अगर आप समय तय करके लेट हो रहे हो तो उस व्यक्ति को अपनी देरी के बारे में सूचित कर देना चाहिए। हमारे यहां उनकी सभ्यता, रहन-सहन में काफी अंतर है। अंतः भारत के रहन-सहन, व्यवहार की तरह चीनियो के रहन-सहन व्यवहार को देखकर उनका आकलन नहीं करना चाहिए। चीन में लोग शाम 6.30 बजे तक खाना खा लेते हैं। वहां होटलों में टिप देने की परंपरा नहीं है। इसलिए वहां पढ़ने को जाने वाले छात्रों को तमाम बातों का ध्यान रखना चाहिए।
कारोना वायरस के कारण वहां रहकर पढ़ रहे छात्रो को बहुत नारकीय जीवन बिताना पड़ रहा है। वहां के वायरस प्रभावित वुहान इलाके में रहने वाले विदेशी छात्र अपने होस्टलो में फंसकर रह गए हैं। वहां रोजमर्रा के सामान की कीमते बढ़ रही हैं। सब्जियां बहुत महंगी मिल रही हैं। उन्हें अपने होस्टल से निकलने की इजाजत भी बहुत मुश्किल से मिलती है। वे अपने कमरे 12 से दो के बीच ही अनुमति मिलने पर छोड़ सकते हैं। पीने का पानी खत्म हो रहा है व उन्हें स्नानघर से पानी पीना पड़ रहा है। वहां से सभी अंतर्राष्ट्रीय उड़ाने रद्द कर दिए जाने के कारण लोग अपने घर भारत भी नहीं लौट सकते हैं। अभी तक भारत सरकार ने भी उन्हें निकालने के लिए कुछ नहीं किया है। इस दुख की घड़ी व समस्या में भारतीय व पाकिस्तानी छात्र एक दूसरे के अच्छे पड़ोसियों की तरह मदद कर रहे हैं।
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