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ईरानी वैज्ञानिक की हत्या का झमेला

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ईरानी वैज्ञानिक की हत्या का झमेला
पिछले दिनों ईरान के परमाणु वैज्ञानिक मोहसिन फ़ख़रीज़ादेह की कार पर अंधाधुध गोलियां चला कर उनकी हत्या कर दी गई। ईरान का आरोप है कि इस हत्या के पीछे इजराइल का हाथ है। हालांकि उसने अभी तक अपनी प्रतिक्रिया नहीं जताई है। ईरान के परमाणु कार्यक्रम को चलाने में इस वैज्ञानिक की बहुत अहम भूमिका थी। वह ईरानी सेना के प्रतिष्ठित हिस्से इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड्स कॉर्प्स का ब्रिगेडियर जनरल था। वह 1979 में ईरानी क्रांति के बाद सेना में भर्ती हुआ था। भौतिक शास्त्र का यह जाना-माना वैज्ञानिक ईरान का परमाणु कार्यक्रम चला रहा था। इससे नाराज होकर संयुक्त राष्ट्र व अमेरिका ने 2020 में दुनिया भर में उसकी संपत्ति को जब्त कर लेने की कार्रवाई की थी। मगर उसने अपना कार्यक्रम जारी रखा। उसने महामारी के दौरान कोविड-19 परीक्षण किट भी तैयार किया था। उसने जो कोरोना वैक्सीन तैयार की थी उसका लोगों पर परीक्षण भी चल रहा था। उसने अपने द्वारा तैयार की गई जांच की 40000 किट जर्मनी, टर्की समेत अनेक देशों को भेजी हैं। वह खबरों से दूर रहता था। सरकारी मीडिया में उसकी बहुत कम चर्चा होती थी। उसे विश्वविद्यालय के प्रोफेसर से ज्यादा कुछ नहीं कहा जाता था। पिछले दिनों उसे ईरान में जाने-माने धार्मिक नेता व प्रशासक आयतुल्लाह अली ख़ामेनई के साथ टीवी पर इंटरव्यू देना था। मगर वे ऐन मौके पर गायब हो गया। दो साल पहले इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने अपनी गुप्तचर सेवा मोसाद द्वारा हासिल किए गए दस्तावेजो के आधार पर उसे परमाणु बम तैयार करने के लिए चलाई जा रही परियोजना अमद प्रोजेक्ट का प्रमुख बताते हुए लोगों से उसका नाम हमेशा याद रखने के लिए कहा था। इससे पहले भी उसे कई बार मारने के लिए हमले किए गए मगर वह हर बार बच निकाला। उसकी तुलना अमेरिका के जाने-माने वैज्ञानिक रॉबर्ट ओपेनहाइमर से की जाती है। जोकि उस प्रयोगशाला के निदेशक थे जिसकी देख-रेख में दुनिया का पहला परमाणु बम तैयार किया गया था। मोहसिन ईरान के जिस परमाणु कार्यक्रम को चला रहा था उस पर पूरी दुनिया की नजरें लगी हुई थी। सारी दुनिया खासतौर से विकसित देश यह मान रहे थे कि ईरान वास्तव में परमाणु बम तैयार करने की और आगे बढ़ रहा है। जबकि ईरान का दावा था कि उसका परमाणु कार्यक्रम शांतिपूर्ण कार्यो खासतौर से ऊर्जा उत्पादन के लिए है। ईरान पर शक में ही यूरोप और अमेरिका ने मिलकर 2010 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में उस पर कड़े प्रतिबंध लगा दिए थे। मगर 2015 में ईरान ने दुनिया की छह ताकतो अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, चीन रूस व जर्मनी के साथ यह समझौता किया कि वह अपने परमाणु कार्यक्रमो को सीमित कर देगा। बदले में इन देशों ने उसके खिलाफ लगाए गए प्रतिबंधों में कुछ ढील दे दी थी। तब शर्त रखी गई कि ईरान अपने द्वारा इस्तेमाल किए गए यूरेनियम को परिष्कृत नहीं करेगा ताकि वह उसका उपयोग परमाणु बम बनाने के लिए न कर सके। उससे कहा गया कि वह अपने द्वारा तैयार किए जा रहे हैवी वाटर रिएकटर की डिजाइन बदले। इसमें इस्तेमाल किए जाने वाले प्लूटोनियम ईधन को परिष्कृत कर उससे बम बनाया जा सकता है। इन देशों ने ईरान पर यह शर्त लगाई कि वह संयुक्त राष्ट्र के निरीक्षको को अपने रियक्टरो की जांच करने की अनुमति देगा। इस समझौते के बाद  2018 में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस संधि से अलग होते हुए ईरान के खिलाफ फिर से प्रतिबंध लगा दिए। वह चाहते थे कि ईरान अपनी बैलास्टिक मिसाइल कार्यक्रम को रद्द कर दे ताकि इस क्षेत्र में और टकराव को बढ़ावा न मिले। ईरान ने उनकी चेतावनी व धमकी की परवाह नहीं की। इसका परिणाम यह हुआ कि उसके तेल की कीमत गिरने लगी व प्रतिबंधों के कारण उसके यहां महंगाई की इंतहा हो गई। इससे घबराकर पहले ईरान ने कुछ ढीला पड़ने के संकेत दिए मगर जनवरी 2020 तक यह संधि व समझौता पूरी तरह से फेल हो गई। यह तनाव तब और बढ़ गया जब अमेरिका के एक ड्रोन हमले में ईरान के जाने-माने जनरल कासिम सुलेमान मारे गए। बदले में ईरान ने ईराक स्थित अमेरिका के सैनिक ठिकानों पर मिसाइलो से हमले किए। इसके साथ भी वह कहता रहा है कि अगर उस पर लगाए गए प्रतिबंध हटा लिए गए तो वह यूरेनियम को परिष्कृत करने का काम बंद कर देगा। मगर बात कुछ बनी नहीं। संयुक्त राष्ट्र में ईरान के राजदूत माजिद तख्त का कहना है कि उनकी हत्या के बाद इस क्षेत्र में बहुत गंभीर परिणाम देखने को मिलेंगे। इजराइल ने बदहवासी में उनकी हत्या की है। इस हत्या के कारण अमेरिका के नए राष्ट्रपति जो बाइडेन द्वारा ईरान के साथ संबंध सामान्य बनाने की अटकलों व कोशिशों को बहुत धक्का पहुंचेगा। बाइडेन चाहते हैं कि 2015 की परमाणु संधि को फिर से स्वीकार लिया जाए। इससे ईरान के परमाणु कार्यक्रमों को भी काफी धक्का पहुंचने की आशंका है। ऐसा माना जा रहा है कि अगर ईरान परमाणु बम बनाना चाहता है तो उसे उसके लिए पर्याप्त विकरणीय ईधन हासिल करने में कुछ महीनो से लेकर सालों तक की देरी लग सकती है। यूरोपीयन देश भी चाहते रहे हैं कि अमेरिका इस परमाणु संधि में शामिल रहे ताकि ईरान को परमाणु हथियारो से लैस होने से बचाया जाता रहे। जब तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने 2015 की परमाणु संधि के लिए चर्चा की थी तब जो बाइडेन भी उसमें शामिल हुए थे। उसके साथ हुई संधि में 202.8 किलोग्राम परिष्कृत यूरेनियम ही रखने का प्रावधान था जबकि संधि होने से पहले ईरान के पास परिष्कृत ईधन की मात्रा आठ टन मानी जाती थी। ऐसा माना जाता है कि ईरान कुछ जले हुए ईधन का 3.67 हिस्सा परिष्कृत कर सकता है जबकि उसे हथियार बनाने के लिए कहीं ज्यादा परिष्कृत ईधन की जरूरत है। अमेरिका व दूसरे देशों के वैज्ञानिको का मानना है कि ईरान से परमाणु बैलास्टिक मिसाइल की डिजाइन हासिल कर ली है व उसकी हरकतो व कार्यक्रमों पर नजर रखना बेहद जरूरी है।
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