बेबाक विचार

क्या झूठ ही हिंदू राज की पहचान?

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क्या झूठ ही हिंदू राज की पहचान?
यह बहुत बड़ा सवाल है क्योंकि कोरोना वायरस की महामारी ने देश की राजनीतिक जमात को या शासन कर रही जमात को दो हिस्सों में बांटा है। एक हिस्सा अच्छे और सच्चे नेताओं का है, जो ईमानदारी से, सच बोलते हुए, अपने कामकाज की सीमाएं बताते हुए कोरोना से लड़ रहे हैं और लोगों की मदद कर रहे हैं और दूसरी जमात उन नेताओं की है, जो सिर्फ झूठ बोल रहे हैं, आंकड़े छिपा रहे हैं, मीडिया को धमका कर सही खबर दिखाने से रोक रहे हैं, आम लोगों को सच कहने से रोक रहे हैं। आप गौर से देखें तो जो जमात झूठ के सहारे कोरोना की लड़ाई लड़ रही है उसमें ज्यादातर चेहरे ऐसे हैं, जो हिंदुत्व की प्रयोगशाला वाले हैं, जिन्हें राम राज लाने के लिए चुना गया था। दूसरी ओर सचाई के साथ देश और मानवता की सेवा करने वाली वह जमात है, जिन्हें पिछले सात साल से देशद्रोही और टुकड़े टुकड़े गैंग का कहने का चलन शुरू हुआ है। क्या आप हिंदुत्व की राजनीति करने वाले किसी नेता, मुख्यमंत्री या केंद्रीय मंत्री या प्रधानमंत्री तक से उस बात की उम्मीद कर सकते हैं, जो केरल की स्वास्थ्य मंत्री केके शैलजा ने कही है? केरल वह राज्य है, जिसने कोविड-19 का सबसे बेहतर और वैज्ञानिक तरीके से सामना किया है। विधानसभा चुनाव और दूसरी लहर से वहां भी स्थिति बिगड़ी है पर मृत्यु दर सबसे कम है और बेड, ऑक्सीजन किसी चीज के लिए हाहाकार नहीं है। उलटे केरल के ऑक्सीजन से कर्नाटक और तमिलनाडु में लोगों का इलाज हो रहा है। इसके बावजूद वहां की स्वास्थ्य मंत्री केके शैलजा ने सार्वजनिक रूप से कहा कि दूसरी लहर उम्मीद से पहले आ गई और इसलिए सरकार इससे मुकाबले के लिए बहुत अच्छा बंदोबस्त नहीं कर पाई। सोचें, शिक्षक रही इस महिला स्वास्थ्य मंत्री की ईमानदारी पर, जो सबसे बेहतर बंदोबस्त करने के बावजूद स्वीकार कर रही है कि कमी रह गई। इसके बरक्स राम राज ला रहे नेताओं पर विचारें तो क्या तस्वीर बनती है? गुजरात को हिंदुत्व की प्रयोगशाला कहते हैं और गुजरात मॉडल दिखा कर ही नरेंद्र मोदी पूरे देश में हीरो बने थे। उस गुजरात की हकीकत है कि हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस की बेंच ने कहा कि कोरोना को लेकर सरकार ने जो हलफनामा दिया है वह हकीकत बयान नहीं करता है। सोचें, कानून की आंखों पर पट्टी बंधी होती है पर उसे भी दिखाई दे रहा है कि सरकार झूठ बोल रही है। चारों तरफ हाहाकार मचा है। अस्पतालों में बेड्स नहीं हैं, ऑक्सीजन की बाकी राज्यों से ज्यादा आपूर्ति होने के बावजूद कमी है, लोग सड़कों पर इलाज के लिए भटक रहे हैं, मौत के बाद अंतिम संस्कार के लिए लंबी कतारें हैं और लोगों को अपने परिजनों का शव दूसरे शहरों में ले जाना पड़ रहा है अंतिम संस्कार के लिए, इसके बावजूद राज्य सरकार यह हलफनामा देकर अदालत में झूठ बोल रही है कि सब ठीक है और सरकार कोरोना का प्रबंधन बेहतर कर रही है। उत्तर प्रदेश में तो माना जा रहा था कि राम राज बस अब आ ही गया है लेकिन वहां की हकीकत भी इलाहाबाद हाई कोर्ट ने जाहिर की। हाई कोर्ट के दो जजों की बेंच ने दो टूक कहा है कि सरकार के वकील जो जवाब दे रहे हैं वह आंख में धूल झोंकने वाला है। सोचें, किसी और राज्य के बारे में कहीं ऐसी बात सुनने को मिली? उत्तर प्रदेश में ही यह सुनने को मिला की न ऑक्सीजन की कमी है और न अस्पताल में बेड्स की कमी है। सुन कर महीनों पहले कही प्रधानमंत्री की बात ध्यान आई कि भारत की सीमा में न कोई घुसा है और न कोई घुस आया है। झूठ की गंगोत्री जब ऊपर से ही बह रही है तो नीचे पहुंचने में क्या आश्चर्य है! लेकिन हकीकत यह है कि पद्म भूषण से सम्मानित पंडित राजन मिश्रा वाराणसी में ऑक्सीजन की कमी से मरे। सत्तारूढ़ दल के विधायक, विधायकों के रिश्तेदार, जज, अधिकारी और सैकड़ों की संख्या में आम लोग ऑक्सीजन की कमी से मर रहे हैं। सरकार की प्रशासनिक विफलता अपनी जगह है, कोरोना से निपटने की तैयारी नहीं करने का सच अपनी जगह है लेकिन इसे लेकर झूठ बोलना और सच बोलने वालों की आवाज दबाना क्या यह हिंदुवादी शासन की पहचान है? दिल्ली से सटे हरियाणा में कोरोना वायरस का संक्रमण बेकाबू है। हर दिन 13-14 हजार केसेज आ रहे हैं। लोगों को अस्पताल में बेड्स नहीं मिल रहे हैं, ऑक्सीजन की कालाबाजारी हो रही है, अंतिम संस्कार के लिए लोगों को पैरवी करानी पड़ रही है लेकिन राज्य के स्वास्थ्य मंत्री का क्या कहना है कि हरियाणा के अस्पतालों में 70 फीसदी बाहरी लोग इलाज करा रहे हैं। सोचें, इस बात का मतलब! महामारी के समय में कौन बाहरी और भीतरी की बात कर रहा है? वैसे तथ्यात्मक रूप से भी यह बात गलत है। लेकिन अगर ऐसा हो भी तो क्या यह समय मरीज को बाहरी और भीतरी के आधार पर पहचानने की है? क्या यह तथ्य नहीं है कि दिल्ली के अस्पताल उत्तर प्रदेश और हरियाणा के मरीजों से भरे हैं? क्या यह सच नहीं है कि ओड़िशा से सारे देश में ऑक्सीजन की आपूर्ति की जा रही है? क्या केरल के ऑक्सीजन से कर्नाटक और तमिलनाडु में लोगों का इलाज नहीं हो रहा है? फिर वसुधैव कुटुंबकम का सबसे ज्यादा राग अलापने वाले हिंदुवादी सरकार की बाहरी और भीतरी के आधार पर भेद करना क्या दिखाता है! इस जमात ने राष्ट्रीय शर्म को भी कैसे गर्व का विषय बना दिया है, यह पिछले दिनों देखने को  मिला, जब राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ से जुड़े रहे एक 85 साल के सज्जन ने अपनी बेड एक महिला को दे दी और कहा कि उन्होंने अपना जीवन जी लिया है अब उस महिला को बचाया जाए। खबर आई कि तीन दिन बाद उन सज्जन का निधन हो गया। पूरी हिंदुवादी जमात ने इसे संघ की शिक्षा का असर बताते हुए खूब प्रचार किया। मुख्यमंत्रियों तक ने ट्विट किए। अब सोचें, यह गर्व का विषय है या शर्म का! व्यक्ति के रूप में उन्होंने जो किया वह अलग मामला है लेकिन क्या यह व्यवस्था के विफल होना का पुख्ता सबूत नहीं है कि हमने एक बुजुर्ग को मरने के लिए छोड़ दिया? क्या यह शर्म की बात नहीं है कि हम एक बुजुर्ग और दूसरी युवा महिला में से एक का ही इलाज कर सकते हैं और दूसरे को अनिवार्य रूप से मरना होगा?
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