इस्लाम की छवि के लिए चिंतित लोगों को ऐसी घटनाओं पर जरूर गौर करना चाहिए। इसके लिए सिर्फ पश्चिमी देशों या कथित इस्लामोफोबिया से ग्रस्त लोगों को दोष देना उचित नहीं है। बेहतर होगा कि इस्लाम मजहब को मानने वाले लोग अपने भीतर उन लोगों को सुरक्षा देने की कोशिश करें, जो विवेक और तर्क आधारित बातें करते हैं। ये अहम नहीं है कि ऐसे मामले कहां सामने आते हैं। अहम यह है कि अगर कहीं भी इस तरह की प्रतिक्रिया आती हो, तो उससे खराब संदेश जाता है। ताजा मामला कोसोवो का है। अपने गांव की मस्जिद में इमाम रह चुके द्रिलोन गाशी को इवोलूशन यानी क्रमिक विकास के सिद्धांत में रुचि है। मस्जिद में इमामत के अलावा जब भी उन्हें समय मिलता था, वे सोशल मीडिया पर इस बारे में अपने ख्यालात का इजहार करते थे। लेकिन इस्लाम और डार्विनवाद को एक साथ लेकर चलने के कारण उन्हें अपनी नौकरी गंवानी पड़ी। पिछले महीने उन्हें बेआबरू कर इमाम के पद से हटा दिया गया।
हटाए जाने के बाद उन्होंने कहा कि ऐसे रूझानों से कोसोवो में पारंरपरिक उदारवादी इस्लाम को किस कदर खतरा है। कोसोवो ने 2008 में सर्बिया से एकतरफा तौर पर आजादी का एलान किया। 2011 की जनगणना के मुताबिक कोसोवो की 18 लाख की आबादी में 90 प्रतिशत लोगों ने खुद को मुसलमान बताया है। गाशी का कहना है कि इस्लाम और विज्ञान एक साथ चल सकते हैं। दोनों के मुताबिक जीवित प्राणी क्रमिक विकास की प्रक्रिया में पैदा हुए हैं। लेकिन इस क्रमिक विकास का नेतृत्व ईश्वर करता है। सभी प्राकृतिक चीजों को अल्लाह ने बनाया है, लेकिन विज्ञान उन्हें हमारे सामने पेश करता है। कोसोवो को उदारवादी इस्लाम के रास्ते पर चलने वाला इलाका माना जाता है। ऐसे में अगर कोई वहां क्रमिक विकास के सिद्धांत को मानता है, तो इसमें कोई अनोखी बात नहीं है। वैसे कोसोवो में शराब पर भी किसी तरह की पाबंदी नहीं है। वहां अमेरिकी चीजें बहुत लोकप्रिय हैं। लेकिन पिछले दो दशकों में यहां पहचान बदलने की कोशिशें तेजी से हुई है। ऐसे में पारंपरिक रीति-रिवाजों पर आपत्तियां जताई जाने लगी हैं। दुनिया भर में डार्विन का सिद्धांत मान्य है, लेकिन इसको लेकर मुस्लिम दुनिया में अलग-अलग तरह की राय पाई जाती है। एक राय यह है कि सृष्टि के निर्माण को लेकर बाइबिल के मुकाबले कुरान में कम स्पष्टता नहीं है। बहरहाल, बेहतर यह होगा कि सारी इस्लामिक दुनिया के लोग इस मुद्दे पर सार्थक बहस करें।