इस सप्ताह एक तरफ नरेंद्र मोदी का वापिस पीएम बनने के लिए 400 दिन का आह्वान तो दूसरी खबर न्यूजीलैंड से उसकी प्रधानमंत्री जेसिंडा अर्डर्न की घोषणा कि वे अगला चुनाव नहीं लड़ेंगी क्योंकि उनके पास अगले चार साल योगदान देने के लिए कुछ खास नहीं बचा है। अगले महीने वे प्रधानमंत्री के पद से इस्तीफा देंगी ताकि पार्टी नया नेता चुने। उन्होंने कहा- हमें नया नेतृत्व चाहिए जो चुनौती ले सके। नया कुछ दे सके।
वाह! क्या बात है। क्या ऐसे लीडर, ऐसी लीडरशीप कभी भारत में संभव है? क्या कभी नरेंद्र मोदी या डॉ. मनमोहन सिंह या एक्सवाईजेड कोई नेता सोचेगा कि वह थक गया है, बासी हो गया है, फेल हो गया है और उसके कारण देश-प्रदेश गतिहीन, बेजान, टाइमपास करते हैं तो रिटायर हुआ जाए। कोई और प्रधानमंत्री बने। अमित शाह बनें, राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी बनें या जेपी नड्डा! उनसे ताजगी, जोश देश में बने। हिंदुओं को ताजी हवा, नए आइडिया मिलें।
न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री जेसिंडा अर्डर्न ने रिटायर होने की घोषणा करते हुए कहा कि उन्होंने छह साल तक इस ‘चुनौतीपूर्ण’ पद को संभालने के लिए कड़ी मेहनत की है। अगले चार साल में उनके पास योगदान देने के लिए कुछ खास नहीं बचा है। इसलिए अब वो अगला चुनाव नहीं लड़ेंगी। जेसिंडा ने कहा कि उन्होंने मैंने गर्मी की छुट्टियों के दौरान अपने भविष्य की योजनाओं के बारे में सोच-विचार किया। ‘मैंने उम्मीद की थी कि मुझे अपना बचा हुआ कार्यकाल पूरा करने की कोई वजह मिलेगी, लेकिन दुख की बात है कि ऐसा नहीं हुआ। अगर मैं अब भी अपने पद पर बनी रहती हूं तो इससे न्यूजीलैंड का नुकसान होगा’।
ध्यान रहे 42 साल की जेसिंडा दुनिया की सबसे कम उम्र की महिला राष्ट्र प्रमुख बनी थीं। वो चुनाव अभियानों में समाज में फैली असमानताओं की बात किया करती थीं। राजनीति में उन्हें क्या खींचता है, इस पर बात करते हुए कभी अर्डर्न ने कहा था कि “भूख से संघर्ष करते बच्चे और बिना जूते के उनके पांव ने उन्हें राजनीति में आने के लिए प्रेरित किया”। 1980 में जन्मी अर्डर्न साल 2017 में गठबंधन सरकार में न्यूडीलैंड की प्रधानमंत्री बनीं। इसके एक साल बाद जून 2018 में वो दुनिया की दूसरी ऐसी राष्ट्राध्यक्ष बनीं, जिन्होंने पद पर रहते हुए बच्चे को जन्म दिया।
बतौर प्रधानमंत्री जेसिंडा ने कोरोना महामारी और मंदी, क्राइस्ट चर्च मस्जिद में हुई गोलीबारी और व्हाइट आइलैंड में ज्वालामुखी विस्फोट जैसी चुनौतियों का सामना किया। वह लीडरशीप दिखलाई, जिससे दुनिया में वाहवाही हुई। उन्होंने कहा, ‘शांति के दौर में देश का नेतृत्व करना एक बात है, लेकिन संकट के दौर में ऐसा करना बड़ी चुनौती है। ये घटनाएं… मेरी परेशानी की वजह हैं क्योंकि ये बड़ी घटनाएं थीं, बेहद बड़ी घटनाएं और एक के बाद एक आती गईं। इस दौरान कोई वक्त ऐसा नहीं रहा जब मुझे लगा हो कि हम शासन का काम देख रहे हैं’।…आगे कहा, ‘मैं इस उम्मीद और विश्वास के साथ देश का नेतृत्व छोड़ रही हूं कि देश का नेता ऐसा हो, जो नेकदिल होने के साथ मजबूत हो, संवेदनशील होने के साथ फैसले लेनेवाला हो, आशावादी हो और देश का काम एकाग्रता से करे और अपनी शख्सियत की छाप छोड़े- और जिसे ये पता हो कि कब नेतृत्व छोड़ देना है’।
तुलना करें प्रधानमंत्री जेसिंडा की लीडरशीप के साथ भारत और भारत की लीडरशीप पर।