बेबाक विचार

राजनीतिक पहल को झटका

ByNI Editorial,
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राजनीतिक पहल को झटका
जिस समय जम्मू-कश्मीर में हालात कुछ सुधरने और राजनीतिक प्रक्रिया के लिए फिर से जगह बनने की आशाएं जग रही थीं, जमीन खरीदारी के नियमों में बदलाव ने हालात फिर तनावपूर्ण कर दिए हैं। नतीजतन, विपक्षी आवाजों और गैर-सरकारी संगठनों पर नकेल कसने के लिए एक बार फिर केंद्रीय एजेंसियों को लगाया गया है। इस तरह ये साफ हो गया है कि राज्यपाल का पद संभालने के बाद मनोज सिन्हा राजनीतिक पहल के जो संदेश दे रहे थे, अब उस पर पानी फिर गया है। केंद्र ने बीते हफ्ते कानून में संशोधन करने की अधिसूचना भी जारी की थी। अधिसूचना में नए नियम शामिल हैं, जिनके तहत जम्मू और कश्मीर में जमीन खरीदने पर लगी हर शर्तों को हटा लिया गया है। ये शर्तें धारा 370 के तहत पूर्ववर्ती जम्मू और कश्मीर राज्य के स्थायी नागरिकों के लिए की गई विशेष व्यवस्था का हिस्सा थीं। नए नियम व्यापक और विस्तृत हैं। राज्य स्तर के कुल 11 कानूनों को रद्द कर दिया गया है। 26 दूसरे कानूनों को बदला गया है। इन सभी संशोधनों से शहरी या गैर-कृषि भूमि को जम्मू- कश्मीर से बाहर रहने वाले लोग खरीद पाएंगे, कृषि भूमि पर कॉन्ट्रैक्ट खेती शुरू हो पाएगी और एक औद्योगिक विकास निगम की स्थापना हो पाएगी। कृषि भूमि को भी प्रदेश के बाहर रहने वाला कोई भी व्यक्ति खरीद पाएगा। इसके अलावा घर या दुकान के निर्माण के लिए भूमि के आवंटन पर कोई सीमा भी नहीं होगी। इन बदलावों की राज्य के राजनीतिक दलों ने कड़ी आलोचना की। उन्होंने इसे राज्य पर फिर एक हमला बताया। मसलन पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा कि जम्मू और कश्मीर को अब बेचने के लिए तैयार कर दिया गया है। जमीन के छोटे-छोटे टुकड़ों के गरीब मालिक अब कष्ट भुगतेंगे। प्रदेश की सभी मुख्यधारा की पार्टियों ने पीपुल्स एलायन्स फॉर गुपकार डेक्लरेशन के बैनर तले जो समूह बनाया है, उसने इस कदम को "एक बहुत बड़ा धोखा" बताया है। नए नियम लद्दाख में लागू होंगे या नहीं यह अभी तक स्पष्ट नहीं हो पाया है। मगर यह तय है कि जम्मू और कश्मीर इलाके के लोगों को मिली एक विशेष सुरक्षा खत्म हो गई है। जबकि ऐसी ही सुरक्षाएं हिमाचल प्रदेश और कई उत्तर-पूर्वी राज्यों को मिली हुई हैं। जाहिर है, जम्मू-कश्मीर में उठाए गए कदम के पीछे मकसद राजनीतिक है।
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