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भाजपा के पास मोदी और राहुल!

कर्नाटक के चुनाव शोर में भाजपा जस की तस सौ टका नरेंद्र मोदी के करिश्मे पर आश्रित है। बतौर प्रमाण पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा का यह वाक्य सटीक है- कर्नाटक को मोदी जी के आशीर्वाद से वंचित नहीं होना चाहिए। तभी गुरूवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीजेपी कार्यकर्ताओं को संबोधित किया तो बसवराज बोम्मई ने भी कहा कि हमारा जीतना तय। उनके अनुसार पीएम मोदी का एक-एक शब्द बीजेपी कार्यकर्ताओं को प्रेरित करता है।मुझे यकीन है कि हमारे पार्टी कार्यकर्ता कर्नाटक में भाजपा को सत्ता में वापस लाने के लिए अपने प्रयासों को दोगुना करेंगे।

निश्चित ही हिमाचल और उससे पहले के तमाम चुनावों में भी नरेंद्र मोदी आश्रित भाजपा थी। कर्नाटक में भी है। इसलिए यह भाजपा की चली आ रही पुरानी राजनीति का हिस्सा। मगर बावजूद इसके ‘कर्नाटक को मोदी जी के आशीर्वाद से वंचित नहीं होना चाहिए’ जैसा वाक्य जनता को भक्त बनाने में अति है। सो, जनवरी 2023 से बदलती राजनीति में एक तरफ भाजपा, सत्तापक्ष और ज्यादा मोदी के करिश्मे पर निर्भर है। वहीं कांग्रेस, आप, राहुल-केजरीवाल भी जवाब में नरेंद्र मोदी की अदीनी से दोस्ती, डिग्री औरभ्रष्टाचार का शोर करते हुए।

सोचें, जनवरी के बाद की सन् 2023 की राजनीति का फर्क। क्या पहले कभी कल्पना संभव थी कि लोकसभा में नरेंद्र मोदी और अदानी को लेकर नारे लगेंगे। संसद नहीं चलेगी। लोकसभा में नरेंद्र मोदी पर निशाना साधते हुए राहुल गांधी वह भाषण देंगे, जिसका जवाब देने के बजाय सरकार को रिकार्ड से भाषण उड़वाना होगा। राहुल गांधी की सांसदी खत्म कर दी जाएगी। ऐसे ही किसने कल्पना की थी कि अरविंद केजरीवाल विधानसभा में नरेंद्र मोदी और अदानी के रिश्तों पर वह बोलें, जिसे पूरे देश ने चटखारे लेते हुए सुना मगर मोदी-भाजपा के मुंह से रत्ती भर प्रतिक्रिया नहीं। इतना ही नहीं आजाद भारत के इतिहास में पहली बार भारत का प्रधानमंत्री अनपढ़ करार दिया जाता हुआ।

उस नाते फरवरी की हिंडनबर्ग की रिपोर्ट राष्ट्रीय राजनीति का वह मोड़ है, जिससे गैर-भक्त हिंदू आबादी में नरेंद्र मोदी की वह इमेज बनी है, जिसके कारण नरेंद्र मोदी का नाम ही अब विपक्ष का हथियार है। यह पहली बार है। कर्नाटक में कांग्रेस, पूरे देश और खासकर सोशल मीडिया में अरविंद केजरीवाल और आप पार्टी ने नरेंद्र मोदी को भ्रष्ट और अनपढ़ बतलाने का जो शोर बनाया है वैसा आजाद भारत की 75 साला राजनीति में पहले कभी नहीं हुआ। ‘गली-गली में शोर है इंदिरा गांधी चोर है’ का समय हो या इंदिरा गांधी का इमरजेंसी और राजीव गांधी की बोफोर्स बदनामी का वक्त, सबकी तुलना में सन् 2023 में नरेंद्र मोदी के खिलाफ का जैसा नैरेटिव देश-विदेश में बना है, वह इतना अकल्पनीय है कि खुद मोदी को समझ नहीं आ रहा होगा कि सबकुछ कंट्रोल में होते हुए भी कैसे वे नफरत-विरोध का चेहरा हो गए।

कर्नाटक में भाजपा उन्हें‘वरदान’ याकि भगवान करार देते हुए है वही विपक्ष की सभा में सुनाई दिया कि ‘नरेंद्र मोदी जहरीले सांप जैसे हैं आप सोचेंगे कि जहर है या नहीं? लेकिन आपने चख लिया तो फिर मर जाएंगे’। यों अपने इस कहे पर कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे ने खेद जताया है। बावजूद इसके यह तो सोचने वाली बात है नरेंद्र मोदी के राज में भारत की राजनीति सन् 2023 में किस एक्स्ट्रिम, भगवान या सांप के जुमले में पहुंची है।

तभी कर्नाटक और इसके बाद के विधानसभा चुनावों, सन् 2024 के आम चुनाव सिर्फ और सिर्फ नरेंद्र मोदी की नायक या खलनायक इमेज पर होगा। कर्नाटक में भाजपा यदि हारी तो वह मोदी के वहां जादू खत्म होने का प्रमाण होगा। मतलब भगवान के वरदान को कर्नाटक के लोगों ने ठुकराया।

जेपी नड्डा, अमित शाह, योगी आदित्यनाथ, शिवराजसिंह चौहान सब यदि कर्नाटक में नरेंद्र मोदी का नाम ले कर उनका वरदान लेने के लिए कर्नाटक की जनता को कह रहे हैं तो उनके कंट्रास्ट में भाजपा के तमाम नेता राहुल गांधी के नाम का रट्टा भी लगाए हुए हैं। यह भी बदली राजनीति की एक बानगी है। नौबत यह हो गई कि यदि राहुल गांधी नहीं हों तो भाजपा नेताओं के पास बोलने के लिए कुछ नहीं होगा। मोदी भी परोक्ष तौर पर राहुल गांधी से लोगों को सावधान करते हुए हैं तो अमित शाह कहते हैं-राहुल बाबा सुन लें…कांग्रेस जीती तो वंशवाद की राजनीति चरम पर होगी। कर्नाटक दंगों से पीड़ित होगा।राज्य का विकास ‘रिवर्स गियर’ में होगा।ऐसे ही शिवराज सिंह चौहान जनसभा में यह बताते हुए कि राहुल गांधी पचास साल के हो गए हैं मगर बुद्धि उनकी पांच साल की है।

मतलब राहुल गांधी को बेघर बना कर भी मोदी-शाह-भाजपा सबके लिए राहुल गांधी या तो दंगाई राक्षस हैं या बाबा और पप्पू और विकास को ठप्प कर देने वाले। भाजपा के पास अब मोदी सरकार, प्रदेश की भाजपा सरकार की उपलब्धि बताने के नाम पर सिर्फ एक जुमला है और वह है डबल इंजन। कर्नाटक में भाजपा अपनी प्रदेश सरकार के काम को या मुख्यमंत्री के चेहरा बेचती हुई नहीं है, बल्कि अमित शाह को उम्मीद है कि मुस्लिम आरक्षण को खत्म कर लिंगायत, एससी व एसटी के आरक्षण को हमने बढ़ाया है तो हमें वोट मिलेगा। और यदि कांग्रेस रेवड़ी घोषणाएं कर रही है तो जिस पार्टी की वारंटी खत्म हो चुकी है तो उसकी गारंटी (चुनावी वादों) का क्या मतलब है।

जाहिर है कांग्रेस की घोषणाओं के आगे भाजपा लाचार है। इस मामले में कांग्रेस सचमुच आप पार्टी से आगे बढ़ गई है। सभी घरों को 200 यूनिट फ्री बिजली, हर परिवार की महिला मुखिया को 2,000 रुपए महीने की सहायता, ग्रेजुएट युवाओं के लिए 3,000 रुपए और डिप्लोमा धारकों (18 से 25 वर्ष आयु वर्ग) को दो साल के लिए 1,500 रुपये जैसे तमाम वादे कांग्रेस ने किए है। इन्हीं को लेकर गुरूवार को नरेंद्र मोदी ने भाजपा कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा कि मुफ्तखोरी के कारण राज्य कर्ज में डूबे हुए हैं।

कभी मोदी ऐसी घोषणाओं से अच्छे दिन आने का लोगों को ख्वाब दिखाते थे और अब इस सबसे वे मुफ्तखोरी की बात कह रहे हैं। समझ सकते हैं2023 में रेवड़ी राजनीति भी कितनी बदलती हुई है और इस पर भाजपा कैसे रक्षात्मक है!

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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