nayaindia Karnatak election उफ! अब बजरंग बली भी दांव पर
गपशप

उफ! अब बजरंग बली भी दांव पर

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ईश्वर ही मालिक है नरेंद्र मोदी और उनकी लंगूर सेना का! आखिर हिंदू इष्ट देवताओं के नाम के कटोरों से वोट मांगना क्या पाप की हद नहीं है? आखिरहिंदुओं को कितना उल्लू बनाएंगे? रामजी, शिवजी, बजरंग बली, मां गंगा आदि के नाम ले-लेकर नौ सालों में प्रधानमंत्री मोदी ने भगवानजी को जितना बेचा है क्या कोई उसका हिसाब है? कभी किसी का बेटा बन कर, कभी गले का सांप बन कर, कभी रामजी कैद तो कभी बजरंग बली के कैदी होने के डर बनवा कर, जैसे वोट मांगे जा रहे हैं तो क्या यह इस बात का प्रमाण नहीं कि मोदी सरकार, भाजपा की सरकारों के ऐसे कोई काम ही नहीं है, जिनके दमखम पर वोट मांगे जा सकें? सोचे, बजरंग बली के सियासी उपयोग पर। पहली बात, बजरंग दल क्या बजरंग बली का पर्याय है, जिस पर प्रतिबंध लगा तो बजरंग बली कैद हो जाएंगे? कर्नाटक की जनसभाओं में नरेंद्र मोदी के इस कहे का क्या अर्थ है कि पहले श्रीराम को ताले में बंद किया… अब बजरंग बली को कैद करना चाहते हैं! सवाल है क्या हिंदुओं की मानसिक दशा ऐसी ही बातें सुनने के लायक है?

सोचें, इस अहंकार पर जो नरेंद्र मोदी हिंदुओं के माथे में यह बात घुसेड़ रहे हैं कि भगवान श्री राम उनके कारण, भाजपा के कारण कैद से मुक्त हुए और कर्नाटक में भाजपा को नहीं जिताया तो बजरंग बली को कांग्रेस कैद कर लेगी! क्या हम सनातनी हिंदुओं के भगवान, शक्तिमान देवी-देवता इतने अशक्त, ऐसे बेचारे और निरीह हैं, जो नरेंद्र मोदी यदि राजा नहीं रहे, उनकी पार्टी सत्ता में नहीं रही तो उनके भगवान को हिंदुओं की दूसरी पार्टी जेल में डाल देगी! पता नहीं संघ परिवार हम हिंदुओं को क्या बना देना चाहता है! ध्यान रहे पृथ्वी का हर मनुष्य अपनी आस्था में ईश्वर को सर्वशक्तिमान, मुक्तिदाता, उद्धारक मानता है। हिंदुओं ने कितनी ही गुलामी झेली हो, उनके मंदिरों को विधर्मियों ने तोड़ा, आस्था को हर तरह से रौंदा गया बावजूद इसके सनातनी हिंदुओं के दिल-दिमाग में राम या कृष्ण या बाबा विश्वनाथ आदि देवी-देवताओं को लेकर यह चिंता कभी नहीं हुई कि वे किसी के कैदी हैं, अशक्त हैं और कोई अवतार पैदा होगा तब उनकी जेल के ताले टूटेंगे, वे आजाद होंगे! उलटे सगुण-निर्गुण की हर धारा में घर-घर लगातार यह माना गया कि कण-कण में भगवान!

हां, सनातनी धर्म का सत्य है कि तमाम आक्रांताओं, धर्म विरोधी झंझावातों-तूफानों के बावजूद हिंदू धर्म इक्कीसवीं सदी में जीवित है। और ऐसा होना किसी संघ परिवार, भाजपा या बजरंग दल, राम सेना या नरेंद्र मोदी की मेहरबानी के कारण नहीं है, बल्कि हिंदू की उस सनातन जीवन पद्धति से है, जिसके सफर में हजारों-लाखों राजा-महाराजा-बादशाह-प्रधानमंत्री आए-गए। सनातन धर्म को न पीएफआई जैसी जमात खत्म करने की ताकत रखती है और न वह बजरंगदलियों जैसी जमात से बचा है।

विषयांतर हो गया है। मूल सवाल है नरेंद्र मोदी और उनके लंगूरों, भक्तों का यह अहंकार क्या हिंदू इष्ट देवताओं का अपमान नहीं है जो वे चंद वोटों के लिए कभी राम, कभी शिव, कभी बजरंग बली को दांव पर लगा देते हैं! वोट के सट्टे में बजरंग बली के नाम का पांसा चलना क्या पाप नहीं है? यदि कर्नाटक ने बजरंग बली के नाम पर वोट मांगने की मोदी की अपील खारिज कर दी और वहां कांग्रेस जीत गई तो हनुमानजी की प्रतिष्ठा का तब क्या होगा?

फिर सबसे बड़ी बात क्या मोदी विरोधी विपक्ष-कांग्रेस हिंदुओं की पार्टी नहीं है? क्या तथ्य नहीं है कि 2019 की आंधी में भी मोदी की जीत सिर्फ 37 प्रतिशत वोटों से थी? इस संख्या को चालीस प्रतिशत मान लें तब भी देश की कुल आबादी के साठ प्रतिशत विपक्षी वोटों को क्या मुसलमान मानें? मतलब क्या साठ प्रतिशत लोग रामजी, बजरंग बली को कैदी बनाने वाले हैं जबकि नरेंद्र मोदी और उनकी लंगूर सेना ही हिंदुओं के भगवानों की जेल मुक्ति, उनकी रिहाई के गारंटीदाता!

जाहिर है नरेंद्र मोदी घबराए हुए हैं। वे अपना जादू, अपना करिश्मा खत्म होता महसूस कर रहे हैं। इसलिए कांग्रेस के घोषणापत्र में इस्लामी पीएफआई संगठन और बजरंग दल जैसे संगठनों पर पाबंदी की बात उन्हें मालूम हुई तो लपक कर बजरंग बली को चुनाव में उतार दिया। नरेंद्र मोदी का जनसभाओं में प्रायोजित भीड़ से यह नारा लगवाना कि मेरे साथ दोनों हाथ ऊपर करके बोलिए- बजरंग बली की- जय। यहबुनियादी तौर पर हताशा का एक्स्ट्रिम प्रमाण है। कांग्रेस से उन्हें डूबते हुए तिनके का वह सहारा मिला है, जिसके भरोसे मोदी को उम्मीद है कि हनुमानजी उनका हाथ खींच कर उन्हें वोट दिलवा कर कर्नाटक में जीता देंगे।

सोचें एक कर्नाटक में जीत के लिए भगवानजी को ऐसे दांव पर लगाना!

वैसे मुझे कुछ खटका है। आज ही सर्वे देखने को मिला है कि कर्नाटक चुनाव में बजरंग बली के उतरने के बाद नरेंद्र मोदी और भाजपा का ग्राफ अप है! घटनाक्रम देखिए। पहले मोदी मीडिया ने ही हल्ला बनाया था कि कर्नाटक में भाजपा की हालत पतली है। जेपी नड्डा, अमित शाह, योगी आदि की सभाएं करा लेने के बाद भी हवा में सुधार की खबरें नहीं आईं। तब नरेंद्र मोदी प्रचार में उतरे। वे अकेले मीडिया में छा गए। मोदी ने कांग्रेस द्वारा दी गई गालियों, शिव के गले के सांप बनने जैसी बातों से सहानुभूति और आस्था उभारी। ज्योंहि उन्हें कांग्रेस घोषणापत्र में बजरंग दल का जुमला मिला तो उसे लपका और ऐसा हल्ला बनाया कि अब सर्वे बता रहे हैं कि भाजपा टक्कर में आ गई है। कल्पना करें कि यदि नतीजों में कांग्रेस कुछ आगे रह कर भी सरकार नहीं बना पाए। वह जोड़-तोड़ में फेल हो जाए। भाजपा की सरकार बन जाए तो भक्तों में बजरंग बली को भले श्रेय मिले या न मिले, लेकिन नरेंद्र मोदी तो 2024 के चुनाव के बतौर शक्तिमान स्थापित!

अब यह बात सिर्फ एक खटका है। असल बात तो नरेंद्र मोदी द्वारा प्रचार में कांग्रेस की गालियों के रोने और महादेव तथा बजरंग बली को चुनाव मैदान में उतारने की है। सो, जहां उनकी घबराहट, हताशा झलक रही है वही येन-केन-प्रकारेण चुनाव जीतने के लिए सब कुछ दांव पर लगाने का सत्य भी है। निश्चित ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कर्नाटक चुनाव को बहुत निर्णायक बना डाला है।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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