बेबाक विचार

ठगे गए कश्मीरी पंडित?

ByNI Editorial,
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ठगे गए कश्मीरी पंडित?
कश्मीर और कश्मीरी पंडित भारतीय जनता पार्टी के लिए बड़ा चुनावी मुद्दा रहे। मगर उसके छह साल के शासन में कम-से-कम कश्मीरी पंडितों की हालत तो नहीं बदली। इसलिए वे आज खुद को ठगा महसूस करते हैं। ये लोग तीस साल पहले पलायन के वक्त घाटी में ही रह गए थे। अब इन कश्मीरी पंडितों के करीब 800 परिवारों का कहना है कि धारा 370 के तहत जम्मू-कश्मीर राज्य का विशेष दर्जा खत्म होने के बाद भी उनके हालात में कोई बदलाव नहीं आया। स्थानीय प्रशासन द्वारा उनकी प्रताड़ना जारी है। ये पंडित परिवार रोजगार और मासिक वित्तीय सहायता समेत अपनी मांगों को लेकर अक्सर श्रीनगर में विरोध प्रदर्शन करते रहे हैं। इनके संगठन- कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति के अध्यक्ष संजय टिक्कू पिछली 20 सितंबर से आमरण भूख हड़ताल पर भी बैठे। तब उन्होंने कहा था कि बयानबाजी करना और आंसू बहाना तो सबको आता है, लेकिन घाटी में रह गए कश्मीरी पंडितों की असल में अब तक किसी सरकार ने नहीं सुनी। पंडित परिवारों ने राज्य की आपदा प्रबंधन और राहत-पुनर्वास कमेटी पर आरोप लगाया है कि वह इनकी समस्याओं पर कोई ध्यान नहीं दे रही है। कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति का कहना है कि ऐसा लगता है जैसे राहत-पुनर्वास कमेटी के लिए संसदीय समिति की सिफारिशें, हाइ कोर्ट के आदेश और केंद्र सरकार के निर्देश कोई मायने नहीं रखते। पिछले साल 5 अगस्त को सरकार ने धारा 370 के तहत मिले विशेष दर्जे को खत्म किया। लेकिन उससे कश्मीरी पंडितों की दशा में अब तक कोई बदलाव नहीं आया है। अब पंडितों का कहना है कि टीवी न्यूज चैनलों ने धारा 370 को लेकर हौव्वा खड़ा किया हुआ है, लेकिन उनके हाल वैसे ही हैं जैसे पहले थे- बल्कि पहले से भी अधिक खराब हुए हैं। पहले तो अगर किसी को कोई तकलीफ होती थी, तो वह राजनीतिक पार्टियों के नुमाइंदों के पास जा सकता था, लेकिन आज यहां पूरी तरह सियासी खालीपन है और जनता के प्रतिनिधि भी डरे हुए हैं। तो कश्मीरी पंडितों के मांग पत्र में कहा गया है कि कोर्ट के आदेश और केंद्रीय गृह मंत्रालय की सिफारिश के अनुसार बेरोजगार कश्मीरी पंडितों को नौकरियां दी जाएं। यहां रह रहे 808 पंडित परिवारों को मासिक वित्तीय सहायता दी जाए। इनमें से कई पंडित परिवारों को आवास चाहिए और इनके लिए गैर-प्रवासी पहचान प्रमाण पत्र देने की मांग भी संघर्ष समिति कर रही है।
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