बेबाक विचार

किसान जीते हैं तो जग जीता है

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किसान जीते हैं तो जग जीता है
विलियम वर्ड्सवर्थ ने फ्रांसीसी क्रांति के बारे में लिखा था, ‘उस अरुणिम प्रभात में जीवित होना अद्भुत आनंद देने वाला था परंतु युवा होना तो स्वर्गिक ही था’। कुछ कुछ वैसी अनुभूति इस समय हो रही है। यह स्वर्गिक आनंद का क्षण है कि हमने एक बड़े जन आंदोलन की सफलता देखी। अपनी आंखों के सामने इतिहास बनते देखा। महात्मा गांधी की डेढ़ सौंवी जयंती के साल में उनके सत्याग्रह के प्रयोग को सफल होते देखा। लोकतंत्र में जनता की ताकत देखी। किसानों के आगे सर्वशक्तिशाली सत्ता को झुकते देखा। हमने गांधी का सत्याग्रह नहीं देखा था। मार्टिन लूथर किंग जूनियर और नेल्सन मंडेला के गांधी मार्ग पर चल कर सफल होने की कहानियां भी पढ़ी, सुनी ही थी। लेकिन इस बार अपनी आंखों के सामने गांधी के सत्य और अहिंसा के प्रयोग को सफल होते देखा है। Kishan andolan narendra modi किसान आंदोलन के 365 दिन पूरे होने से सात दिन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के सामने आकर कहा कि वे तीनों विवादित केंद्रीय कृषि कानूनों को वापस ले रहे हैं। यह लोकतंत्र और जन आंदोलन की ताकत में यकीन रखने वाले हर भारतीय के लिए गर्व का क्षण है, जो किसानों के अहिंसक सत्याग्रह के आगे सरकार झुकी। उम्मीद करनी चाहिए कि बहुत सारे लोगों को उनके बहुत सारे सवालों का जवाब मिल गया होगा। जो लोग गांधी विचार और गांधी मार्ग की प्रासंगिकता पर सवाल उठाते हैं और जिनके लिए गांधी का अहिंसक सत्याग्रह मजाक का विषय है उनको भी इसकी ताकत पर यकीन आ गया होगा। गांधी ने सत्य और अहिंसा के रास्ते पर चल कर दुनिया के सबसे बड़े साम्राज्य को पराजित किया था, नरेंद्र मोदी तो फिर भी लोकतंत्रिक तरीके से चुने गए प्रधानमंत्री हैं। उनके पीछे हटने से यह भी प्रमाणित हुआ कि गांधी का अहिंसक सत्याग्रह अंग्रेजों के अन्याय के आगे सफल था और वह लोकतांत्रिक ढंग से चुनी गई सरकार की मनमानी के सामने भी सफल है। यह समय इन बातों पर विचार का नहीं है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किस वजह से तीनों कानून वापस लेने की घोषणा की। हो सकता है कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में अपनी पार्टी की निश्चित हार की आशंका ने उन्हें इन कानूनों को वापस लेने के लिए मजबूर किया हो। आखिर वे एक राजनेता हैं इसलिए उनके फैसले राजनीति से प्रभावित हों तो यह कोई हैरानी की बात नहीं होनी चाहिए। यह भी संभव है कि उन्होंने जाट और सिख समुदाय की नाराजगी को समझा हो और समाज पर होने वाले उसके असर की संभावना को देखते हुए यह बड़ा फैसला किया हो। उन्होंने राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में कहा कि तीनों कानून उनकी सरकार ने किसानों के फायदे के लिए बनाया था लेकिन देश हित में उन कानूनों को वापस ले रहे हैं। Read also कृषि-कानूनों पर शुभ शीर्षासन repeal three farm laws जाहिर है कहीं न कहीं इस आंदोलन की वजह से देश हित पर आंच आ रही थी, जिसकी वजह से सरकार को मजबूर होकर कानून वापस लेना पड़ा। लेकिन क्या इसके लिए किसान जिम्मेदार थे? अगर किसानों के आंदोलन से देश हित पर आंच आ रही थी तो उसके लिए सरकार के मंत्री, भाजपा के नेता और उसकी आईटी सेल की ट्रोल आर्मी जिम्मेदार थी, जिसने सिखों को आतंकवादी, खालिस्तानी, पाकिस्तानी बताया और आंदोलन का समर्थन करने वाले हर व्यक्ति को देशद्रोही करार दिया गया। किसानों को किसान मानने से इनकार कर दिया। उन्हें कभी कांग्रेस का एजेंट कहा तो कभी आढ़तियों का। उम्मीद करनी चाहिए कि अब सरकार, सत्तारूढ़ दल और उसकी ट्रोल आर्मी को समझ आया होगा कि लोकतंत्र में जनता की ताकत सबसे बड़ी होती है और जब भी सरकारें उससे टकराती हैं तो जीत हमेशा जनता की होती है। तभी फैज ने लिखा था, ‘यूं ही हमेशा उलझती रही है जुल्म से खल्क, न उनकी रस्म नई है न अपनी रीत नई। यूं ही हमेशा खिलाए हैं हमने आग में फूल, न उनकी हार नई है न अपनी जीत नई’। सो, जनता की जीत का जश्न मनाएं। उम्मीद के जिंदा होने का जश्न मनाएं। सरकार के झुकने का कारण फिर खोज लेंगे और तब सरकार की हार का भी जश्न मना लेंगे। लेकिन अभी तो पिछले एक साल में शहीद हुए छह सौ से ज्यादा किसानों की शहादत को सलाम करें। इतने लोगों के शहीद होने के बाद भी हजारों किसानों के आंदोलन पर डटे रहने के जज्बे और सफलता के प्रति उनके यकीन को सलाम करें। इस बात पर गर्व करें कि भारत की सबसे बड़ी नैतिक ताकत यानी गांधी और उनके सत्य व अहिंसा का प्रयोग जीत गया। मजबूरी में ही सही लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने इस देश की सबसे बड़ी नैतिक ताकत यानी गांधी के मूल्यों का मान रख लिया। इसमें रत्ती भर भी संदेह नहीं है कि मोदी राजनीतिक कारणों से और चुनावी मजबूरियों में में झुके हैं। उनका झुकना रणनीतिक है। उनको उत्तर प्रदेश के चुनाव और उसके बाद 2024 के चुनाव की चिंता है और इसलिए उन्होंने किसान आंदोलन के सामने झुकना मंजूर किया। पर ध्यान रखें कि झुकने वाला बड़ा बनता है। मोदी अब तक अपनी जीत से बड़े होते थे लेकिन इस बार उनकी हार उनको बड़ा बना सकती है।
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