बेबाक विचार

राम मंदिर की नींव का नाम है केके नायर

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राम मंदिर की नींव का नाम है केके नायर
मेरी दिवंगत मां ने भले ही काफी खोजबीन करके मेरा नाम विवेक रखा हो मगर मुझे अपने बारे में एक बात आज तक समझ में नहीं आती कि जब मैं पढ़ता था तब मुझे इतिहास, भूगोल बहुत अच्छा लगता था व जब लिखने लगा तो इन विषयों से बहुत लगाव हो गया।  शायद यही वजह थी कि जब पिछले दिनो पूरा देश राम व मोदी मय हो रहा था, उस समय मैं तमाम अखबारो व खबरिया चैनलो पर एक नाम तलाश रहा था पर मुझे तब बहुत ज्यादा निराशा हुई जबकि मैंने किसी को उस नाम का जिक्र करते हुए नहीं पाया। सच कहता हूं कि मेरा इतिहास, भूगोल काफी कमजोर है। खासतौर से मैं आज भी यह भूल जाता हूं कि मुगल शासको जैसे बाबर, हुमायूँ, अकबर आदि में कौन किसका बाप व कौन किसका बेटा था। जब मैंने आधुनिक अयोध्या कांड देखा तो मुझे फैजाबाद के डीएम केके नायर का नाम याद आया जिनके तहत अयोध्या आता था। हमारे उत्तर प्रदेश में कहा जाता है कि आपका तीन लोग ही भला कर सकते हैं डीएम, सीएम व  पीएम। बतौर डीएम नायर ने साबित किया कि एक डीएम की कितनी हैसियत होती है और वह तो पीएम व सीएम की ऐसी-तैसी कर सकता है। उन्होंने डीएम रहते हुए विवादित स्थल पर राम, सीता व लक्ष्मण का कब्जा करवा कर वहां ताला डलवा कर उस उक्ति को सही साबित किया कि मुकदमा झूठा व कब्जा सच्चा है। पहले प्रदेश में यह बात बहुत गहराई से जांच होती है व अपने लोग जमीन पर कब्जा जमाने में लगे रहते हैं। उनकी हैसियत का अंदाजा तो इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब दशको पहले पहली बार अयोध्या गया तो बाबरी मजिस्द के अंदर जाने पर मैंने राम, सीता, लक्षमण व हनुमानजी की प्रतिमा देखी। मैं उनकी शक्ल तो भूल गया मगर वहां दीवार पर एक काली सफेद रंगी हुई फोटो लगी थी वह केके नायर की है। वह चेहरा मुझे आज तक याद है हालांकि मैं कई बार माता के दर्शन के लिए कटरा गया मगर आज तक मुझे याद नहीं कि पूजा की जिस मूर्ति की और इशारा करते व पीछे से आने वाली भीड़ मुझे धक्का मार कर आगे चलने को कहती वह मूर्ति कैसी है। वास्तव में अयोध्या में राम के बारे में अगर किसी का सबसे ज्यादा नाम था तो उस समय केके नायर का ही था। केके नायर ने एक डीएम की हैसियत का अंदाजा रखते हुए 1948 में अपनी कलम से वह काम कर दिखाया जोकि उसके बाद राजीव गांधी से लेकर आज तक आधा दर्जन प्रधानमंत्री भी नही कर पाए व देश की सर्वोच्च अदालत को भी  उस जमीन पर राम को कब्जा दिलवाने में इतने साल लगाए। उनका पूरा नाम कंडांगलथिल करुणाकरण नायर था। वे उत्तर भारत के न होकर केरल के एक ऐसे बहादुर आईसीएस अधिकारी माने जाते हैं जिनकी वजह से देश में राम जन्मभूमि आंदोलन की शुरुआत हुई। उनका जन्म 1 सितंबर 1907 को केरल में हुआ था। केरल से अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद वे उच्च शिक्षा के लिए ब्रिटेन गए। 21 साल की आयु में आईसीएस में उनका चयन हो गया जोकि ब्रिटिश सरकार की आईएस जैसी होती थी। उन्होंने 1949 में फैजाबाद के डिप्टी कमिश्नर व जिला मजिस्ट्रेट का पद संभाला। उन्होंने अपने सहायक गुरूदत्त को अयोध्या प्रकरण पर नजर रखने को कहा। विवादित स्थल पर ताला डलवा कर वहां रामलला को स्थापित करवा दिया। रामलला की मूर्तियां रखने का समाचार फैला तो गुरूदत्त ने 10 अक्टूबर 1949 को उन्हें भेजी अपनी रिपोर्ट में कहा कि हमें वहां मंदिर का निर्माण कर देना चाहिए। उनका कहना था कि वहां मंदिर व मस्जिद दोनों ही मौजूद थे व हिंदू व मुसलमान दोनों ही अपनी पूजा करते आए थे। हिंदुओं ने काफी पहले से ही वहां मंदिर बनाए जाने के लिए प्रार्थना पत्र दे रखा था। उनका कहना गलत भी नहीं था क्योंकि वहां भगवान रामच्रंदजी पैदा हुए थे व हिंदूजन मंदिर बनाए जाने की मांग कर रहे नजूल (सरकार की जमीन थी। जब यह मामला दिल्ली तक पहुंचा तो तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने हिंदुओं को वहां से बेदखल करने के लिए राज्य सरकार को निर्देश दिए। उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री गोबिंद वल्लभ पंत ने 22 दिसंबर 1949 को उन्हें हिंदुओ को वहां से खदेड़ने को कहा। मगर उन्होंने ऐसा करने से साफ मना करते हुए उन्हें जवाब दिया कि उस जगह के असली मालिकाना हक रखने वाले लोग पूजा कर रहे हैं व अगर मैंने यह कदम उठाया तो दंगे भड़क जाएंगे। सरकार ने अपना आदेश न मानने के कारण उन्हें बर्खास्त कर दिया और वे अदालत से अपने पक्ष में आदेश ले आए। जवाहरलाल नेहरू उन्हें बुरी नजर से नापसंद करने लगे थे। फिर उन्होंने खुद अपनी नौकरी से इस्तीफा देकर इलाहाबाद हाईकोट से वकालत करना शुरू कर दी। वे रातोंरात हिंदुओं के हीरो हो गए व इलाके के लोग उन्हें नायर साहब कहकर बुलाने लगे। राम मंदिर अभियान को आगे बढ़ाने के लिए केके नायर व उनकी पत्नी शकुंतला नायर जनसंघ में शामिल हो गए व 1952 में जनसंघ के टिकट पर उनकी पत्नी उत्तर प्रदेश विधानसभा की सदस्य चुनी गई। 1962 में दोनों पति-पत्नी चौथी लोकसभा के सदस्य बने। वे क्रमशः बहराइच व कैसरगंज से चुनाव जीते। मजेदार बात यह है कि उनके प्रयास का अंदाजा तो इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनका ड्राइवर तब फैजाबाद से विधानसभा का चुनाव जीत गया। आपातकाल के दौरान पति-पत्नी को मीसा के तहत गिरफ्तार कर लिया गया। वे उत्तर प्रदेश की जानी हस्ती बन गए थे। 7 सितंबर 1972 को केके नायर का देहांत हो गया। उन्हें अपने राज्य से नहीं माना गया। बाद में उनके नाम से उनके गांव में एक ट्रस्ट बना जो गरीबो की मदद करने लगा जोकि जरूरतमंद बच्चो की पढ़ाई में मदद करता है। मगर समय के साथ उन्हें उत्तर भारत ने भुला दिया। जब राम मंदिर का प्रधानमंत्री ने मूर्ति पूजन किया तो कहीं किसी ने उनका जिक्र नहीं किया। यह देखकर जनसत्ता के अपने वरिष्ठ रहे एक साथी कि बात याद आती है। वे कहते थे कि कभी इंसान को अनाम शहीदो में नाम लिखवाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। जिसका प्रतीक आज इंडिया गेट है। हमें तो कुछ ऐसा करना चाहिए कि देश में शांतिवन, राजघाट की तरह हमारी समाधि बने और जानी-मानी हस्तियां उस पर फूल चढ़ाकर हमें याद करे। वक्त ने केके नायर को अनाम शहीदो में शामिल कर दिया।
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