बेबाक विचार

कानून और बुल़डोजर

ByNI Editorial,
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कानून और बुल़डोजर
क्या कथित दोषियों का अपराध न्याय की मान्य प्रणाली से तय हुआ? क्या भारतीय कानून में संपत्ति पर बुल़डोजर चलाने की सज़ा सूत्रबद्ध है? और क्या बुल़डोजर समान रूप से एक जैसे अपराध में सभी शामिल सभी संप्रदायों के व्यक्तियों पर चल रहे हैं? बुलडोजर चलने की एक घटना फिर सुर्खियों में है। लेकिन यह ऐसी कोई पहली घटना नहीं है। बल्कि अब यह एक परिघटना या ट्रेंड का रूप ले चुका है। बहुत से लोगों को बुल़डोजर चलते देख खुशी होती है। इसलिए कि जिस समुदाय के प्रति उनके मन में द्वेष भाव भरा गया है, अभी यह उससे जुड़े लोगों पर ही चल रहा है। भावावेश अभी इस हद तक है कि उन्हें यह अहसास नही होता कि बुल़डोजर दरअसल रूल ऑफ लॉ (कानून के राज केस सिद्धांत) को ढाह रहे हैं, जिसका अंतिम परिणाम घोर अराजकता या जिसकी लाठी उसकी भैंस के सिद्धांत से चलने वाले समाज के रूप में सामने आ रहा है। सभ्य समाज बनने के विकासक्रम में रूल ऑफ लॉ सबसे कीमती धारणा रहा है। इसके बिना लोकतंत्र तो दूर- किसी तरह की स्थिरता और शांति की कल्पना नहीं की जा सकती। जिन समाजों में रूल ऑफ लॉ की आधुनिक व्यवस्था नहीं होती है, वे अनिवार्य रूप से दमनकारी होते हैं। वहां जो समूह दमन का शिकार होते हैं, उनके कभी ना कभी उबल पड़ने की गुंजाइश बनी रहती है। ऐसे समाज में समृद्धि, विकास या सद्भाव की कल्पना भी संभव नहीं है। गौर करने की बात यह है कि जिस रूप में फिलहाल भारत में बुल़डोजर चलाए जा रहे हैं, वे इन तमाम संभावनाओं को ध्वस्त कर रहे हैँ। प्रश्न यह नहीं है कि जिनके घरों पर बुल़डोजर चले, वे दोषी हैं या नहीं। प्रश्न यह है कि क्या उनका अपराध न्याय की मान्य प्रणाली से तय हुआ? क्या भारतीय कानून में संपत्ति पर बुल़डोजर चलाने की सज़ा सूत्रबद्ध है? और क्या बुल़डोजर समान रूप से एक जैसे अपराध में सभी शामिल सभी वर्गों, समुदायों और संप्रदायों के व्यक्तियों पर चल रहे हैं? अगर इन प्रश्नों का उत्तर ‘नहीं’ है, तो फिर यही कहा जाएगा कि बुल़डोजर न्याय और दंड के आधुनिक विवेक पर चलाए जा रहे हैं। जिस समाज में यह हो रहा हो, वहां कोई सुरक्षित और आश्वस्त नहीं रह सकता। इसलिए जो लोग आज खुशी हैं, उन्हें याद रखना चाहिए कि उनकी ये खुशी कुछ वक्त की ही बात है।
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