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चुनाव हैं पर उनसे 2024 तय नहीं होगा

वैसे तो भारत में हर साल चुनाव होते हैं लेकिन 2023 का साल इस मायने में अलग है क्योंकि इस साल जितने चुनाव हैं उतने किसी एक साल में नहीं होते। दूसरे, इसके बाद सीधे लोकसभा का चुनाव होना है। सो, इस साल होने वाले चुनावों के नतीजों का देश की राजनीति पर बड़ा असर होगा। भाजपा देश की राजनीति पर अपने प्रभुत्व को और मजबूत करना चाहेगी तो राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा से पुनर्जीवन पा रही कांग्रेस भी जोर आजमाइश करेगी। प्रादेशिक पार्टियों के लिए तो जीवन मरण का मामला है। इस साल होने वाले चुनावों का भौगोलिक दायरा पूरे देश में है। मध्य भारत के मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में चुनाव है तो पश्चिम में राजस्थान और पूर्वोत्तर में नगालैंड, त्रिपुरा, मेघालय और मिजोरम में चुनाव होना है। दक्षिण में कर्नाटक और तेलंगाना में इस साल चुनाव तो कई साल के बाद जम्मू कश्मीर में भी इस साल चुनाव होगा। तभी इन चुनाव नतीजों का आकलन अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों पर असर के लिहाज से किया जाएगा।

परंतु ऐसा नहीं है कि इन चुनावों के नतीजों से अगले लोकसभा के नतीजों का अंदाजा हो जाएगा। हो सकता है कि विधानसभा चुनाव के जो नतीजे आएं उसके बिल्कुल उलट लोकसभा के नतीजे हों। अगर इन राज्यों में पिछले चुनाव को ही आधार बनाएं तो इस धारणा की पुष्टि होती है कि दोनों के नतीजे अलग अलग हो सकते हैं। पिछले चुनाव में यानी 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी 15 साल के बाद मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में सरकार में लौटी थी। दोनों राज्यों में पार्टी को पूर्ण बहुमत मिला। राजस्थान में पांच साल में राज बदलने का रिवाज कायम रहा और भाजपा को हरा कर कांग्रेस सत्ता में लौटी। लेकिन लोकसभा चुनाव में तस्वीर बदल गई। तीनों राज्यों में कांग्रेस की सरकार थी और कांग्रेस के पास तीनों राज्यों की कुल 520 विधानसभा सीटों में से करीब 290 सीटें थीं। लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस इन तीन राज्यों की 65 लोकसभा सीटों में से सिर्फ तीन सीट जीत पाई। राजस्थान की 25 में से एक भी सीट कांग्रेस नहीं जीत पाई और मध्य प्रदेश की 29 में सिर्फ एक सीट मिली। जिस छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने 90 में से 70 सीटें जीती थीं वहां लोकसभा की 11 में से सिर्फ दो सीट जीत पाई।

असल में देश के मतदाता राज्यों के विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव में अलग अलग तरह से वोट डालने सीख गए हैं। पहले भी ऐसा होता था लेकिन अपवाद के तौर पर होता था। लेकिन अब ज्यादातर मामलों में ऐसा होने लगा है। कर्नाटक में 2018 के विधानसभा चुनाव में लगभग बराबरी का मुकाबला था। कांग्रेस और जेडीएस ने भाजपा से ज्यादा सीटें जीती थीं। लेकिन एक साल बाद हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा ने राज्य की 28 में से 25 सीटें जीत लीं और कांग्रेस व जेडीएस को एक-एक सीट से संतोष करना पड़ा। पश्चिम बंगाल में 2016 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को 294 में सिर्फ तीन सीटें मिली थीं लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में उसने 42 में से 18 सीटें जीतीं और फिर 2021 के विधानसभा चुनाव में वह 77 सीटों पर रूक गई, जबकि तृणमूल कांग्रेस ने 214 सीटें जीत लीं। बिहार में 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा और जेडीयू गठबंधन 40 में से 39 सीटों पर जीता लेकिन अगले साल यानी 2020 के विधानसभा चुनाव में उसे 243 के सदन में बड़ी मुश्किल से बहुमत मिल पाया और लोकसभा की सिर्फ एक सीट जीतने वाला विपक्षी गठबंधन 115 से ज्यादा सीट जीत गया। दिल्ली में 2019 में भाजपा ने लोकसभा की सभी सात सीटों पर जीती पर 2020 के विधानसभा चुनाव में वह 70 में से सिर्फ आठ सीट जीत पाई। हरियाणा में लोकसभा की सभी सीट जीतने के बावजूद विधानसभा में भाजपा बहुमत से पीछे रह गई और झारखंड में 14 में से 12 सीट जीतने के बावजूद विधानसभा का चुनाव हार कर सत्ता से बाहर हो गई। इसके कुछ अपवाद भी हैं लेकिन ध्यान रहे अपवादों से नियम प्रमाणित होते हैं।

उपरोक्त आंकड़ों से यह तो पता चलता है कि विधानसभा चुनावों के नतीजों के आधार पर लोकसभा चुनाव नतीजों का अनुमान नहीं लगाया जा सकता है। मतदाता दोनों चुनावों में अलग अलग तरह से वोट करते हैं और दोनों चुनावों में सामाजिक समीकरण, क्षेत्रीय संतुलन और वोटों का हिसाब भी अलग अलग होता है। लेकिन इसके साथ ही यह भी पता चलता है कि विधानसभा चुनाव में भले अलग अलग पार्टियां भाजपा को हरा कर जीतती हैं या उससे बराबरी का मुकाबला करती हैं लेकिन लोकसभा चुनाव में फायदा सिर्फ एक पार्टी को होता है और वह भाजपा है। ऐसा संभवतः एक भी राज्य नहीं है, जहां विधानसभा चुनाव भाजपा जीती हो और लोकसभा में हार गई हो। यह भी एक तथ्य है कि भाजपा जहां लोकसभा चुनाव नहीं जीत पाती है वहां विधानसभा भी नहीं जीतती है। पंजाब से लेकर तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, केरल, ओडिशा आदि राज्यों में भाजपा न विधानसभा जीत पाती है और न लोकसभा। सो, विधानसभा चुनावों के नतीजों से लोकसभा का अंदाजा लगाना जोखिम भरा हो सकता है। हो सकता है कि भाजपा कुछ राज्यों के चुनाव में पिछड़ जाए लेकिन यह इस बात की गारंटी नहीं है कि उन राज्यों में वह लोकसभा चुनाव में भी पिछड़ जाएगी!

इस साल जिन राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं उनमें कई राज्य भाजपा की छप्पर फाड़ लोकसभा जीत वाले हैं। राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और कर्नाटक ऐसे राज्य हैं, जहां भाजपा ने अधिकतम सीटें जीती हैं। इन चार राज्यों की 93 लोकसभा सीटों में से भाजपा के पास 87 लोकसभा सीटें हैं। अगले साल इन सीटों को बचाना भाजपा की बड़ी चुनौती है। लेकिन अगले साल का चुनाव अगले ही साल लड़ा जाएगा। इस साल विधानसभा चुनाव होंगे और उनके नतीजों से अगले साल के चुनाव का कुछ भी तय नहीं होगा। फिर भी भाजपा की कोशिश होगी कि वह इन चुनावों में अच्छा प्रदर्शन करे क्योंकि इसका असर पार्टी कार्यकर्ताओं के मनोबल पर होगा। दूसरी ओर कांग्रेस व अन्य विपक्षी पार्टियों की जोर आजमाइश भी पूरी ताकत से होगी क्योंकि उसी आधार पर अगले लोकसभा चुनाव से पहले का विपक्षी गठबंधन बनना है। विपक्षी पार्टियां अपनी ताकत बढ़ाने का प्रयास करेंगी ताकि वे गठबंधन में ज्यादा सीट और बेहतर पोजिशन के लिए मोलभाव कर सकें। सो, भले विधानसभा चुनाव के नतीजों से लोकसभा के नतीजों के अनुमान नहीं लगे लेकिन विधानसभा के चुनाव लोकसभा चुनाव की तैयारियों के लिहाज से ही लड़ें जाएंगे।

Published by अजीत द्विवेदी

संवाददाता/स्तंभकार/ वरिष्ठ संपादक जनसत्ता’ में प्रशिक्षु पत्रकार से पत्रकारिता शुरू करके अजीत द्विवेदी भास्कर, हिंदी चैनल ‘इंडिया न्यूज’ में सहायक संपादक और टीवी चैनल को लॉंच करने वाली टीम में अंहम दायित्व संभाले। संपादक हरिशंकर व्यास के संसर्ग में पत्रकारिता में उनके हर प्रयोग में शामिल और साक्षी। हिंदी की पहली कंप्यूटर पत्रिका ‘कंप्यूटर संचार सूचना’, टीवी के पहले आर्थिक कार्यक्रम ‘कारोबारनामा’, हिंदी के बहुभाषी पोर्टल ‘नेटजाल डॉटकॉम’, ईटीवी के ‘सेंट्रल हॉल’ और फिर लगातार ‘नया इंडिया’ नियमित राजनैतिक कॉलम और रिपोर्टिंग-लेखन व संपादन की बहुआयामी भूमिका।

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