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मोदी व विपक्ष में डाल-डाल, पात-पात!

BJP Leader

फरवरी में अमृतपाल, मार्च में राहुल गांधी तो अप्रैल में अतीक अहमद और मई में कर्नाटक व यूपी चुनाव। एक के बाद एक मोदी-शाह के मीडिया मैनेजमेंट की इन सुर्खियों का क्या अर्थ है? फरवरी में मनीष सिसोदिया जेल में, मार्च में तेजस्वी यादव और उसकी बहनों के यहां छापे, राहुल गांधी की सांसदी खत्म और अप्रैल में राष्ट्रपति भवन में अपने पिता मुलायम सिंह यादव का पद्म पुरस्कार लेते हुए अखिलेश यादव की चर्चाओं का सियासी मिशन क्या है? इसी क्रम में यदि जमीनी स्तर पर रामनवमी और हनुमान जयंती पर दंगे, अतीक अहमद के बेटे के एनकाउंटर जैसी घटनाओं पर एक-एक कर विचार करें तो पहली बात मोदी सरकार चैन में नहीं है। सौ टका राजनीति में दाव-पेंच भिड़ाते हुए है। मगर इस सबसे दूसरी बात कि समय और ग्रह-नक्षत्र नरेंद्र मोदी के लिए कैसी अनहोनी बना रहे हैं।

जनवरी के आखिर में एक अमेरिकी रिसर्च संस्था हिंडनबर्ग की रिपोर्ट क्या आई, बहुत कुछ बदलता हुआ है। एक तो अदानी ग्रुप के लाखों करोड़ रुपए का हवा होना और दूसरे उससे सियासी पारा लगातार खौलता हुआ!

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल के नौ साल मई में पूरे हो रहे हैं। उससे ठीक पहले मई में ही कर्नाटक के चुनाव हैं। सोचें, यदि उसमें भाजपा का बाजा बजा तो क्या होगा? तभी 2023-24 का साल आजाद भारत का वह वर्ष होगा, जिसमें राजनीतिक पारा 50 डिग्री से ऊपर का भूतो न भविष्यति वाला रिकार्ड बनाएगा। फिर भले इसके ताप में भारत खौले और समाज खंड-खंड की दिशा पाए।

मोदी राज के नौ साल राजनीति, आर्थिकी, समाज का वह सच है जो हर तरह की कोशिश के बावजूद दबता हुआ नहीं है। यों झूठ हवा के कण-कण में है और ईडी-सीबीआई-इनकम टैक्स के छापों की सुपर चर्चाओं के बावजूद, विपक्षी नेताओं मसलन सत्येंद्र जैन-मनीष सिसोदिया-केजरीवाल, तेजस्वी, हेमंत, राहुल, ममता आदि की बदनामियों के बावजूद यह सत्य भी हवा में, घर-घर में फैला हुआ है कि कोई अदानी है जो मोदी के करीबी है। तभी मोदी-शाह के लिए मुश्किल बनी हुई है जो वे पढ़े-लिखे कर्नाटक में अदानी की चर्चा, भाजपा सरकार के भ्रष्टाचार किस्सों के रहते कांग्रेस की कैसे अधिक बदनामी कराएं? कैसे अदानी से ध्यान हटे? कैसे राहुल गांधी तौबा करके घर बैठें? कैसे बिहार में नीतीश-तेजस्वी बदनाम हों? कैसे उद्धव-शरद पवार-कांग्रेस एलायंस टूटे? और यदि कर्नाटक में चुनाव हारे तो नौवीं वर्षगांठ का जश्न कैसे हो?

कोई माने या न माने, अपना मानना है कि इस सप्ताह दिल्ली में खड़गे, राहुल, नीतीश की विपक्षी एकता की कोशिश का साझा ऐलान मोदी-शाह-भाजपा के लिए मई 2024 तक तक की बेचैनी है। तभी अब डाल-डाल, पात-पात वाला असल खेल शुरू है। सत्ता के बूते अब अधिक बेशर्मी से राजनीति होगी।

पहला काम विरोधी पार्टियों में शिखंडी और विभीषण पैदा करना है। दूसरा काम नेताओं को खरीदना है। तीसरा काम, भितरघात कराना है। जैसे इस सप्ताह नरेंद्र मोदी के जयपुर कार्यक्रम से पहले कांग्रेस के सचिन पायलट का जयपुर में एक दिन का अनशन हुआ। सोचें, तारीख का क्या गजब संयोग। ताकि कांग्रेस की कलह की बैकग्राउंड में राजस्थान में नरेंद्र मोदी घर-घर छाएं। ऐसे ही अदानी की तरफदारी का शरद पवार का बयान। तुरंत सब तरफ अजित पवार, एनसीपी की मंशा का यह हल्ला की महाराष्ट्र में अघाड़ी का भविष्य नहीं! या यह हल्ला कि तमिलनाडु में स्टालिन के साथ मोदी की बनती केमिस्ट्री! चौथी बात, विपक्ष पर ईडी, सीबीआई, इनकम टैक्स आदि के छापों की दबिश से कांग्रेस से लेकर जेएमएम, तृणमूल, आप, सपा के नेताओं का मनोबल तोड़ना। ताकि किसी के पास सियासी-चुनावी खर्चे का पैसा ही नहीं हो। पांचवी बात, छोटी पार्टियों जैसे जीतन राम मांझी की पार्टी से लेकर राजस्थान, झारखंड आदि में आदिवासी या जातीय पार्टियों के नेताओं से एलायंस बनाना।

सन् 2023 के इन हालातों की जरा सन् 2014 में नरेंद्र मोदी के जलवे की तुलना करें। क्या नहीं मानेंगे कि तब सब कुछ नेचुरल था। नरेंद्र मोदी को 2014 में कुछ भी करने की जरूरत नहीं थी। वक्त और भाग्य की वह ऐसी कृपा थी जो चौतरफा मोदी की चढ़ती कला। अपने आप कांग्रेस तब बदनाम थी। नरेंद्र मोदी बतौर विकल्प सर्वमान्य थे। उनको लेकर तानाशाही, लोकतंत्र खत्म करने, बरबादी जैसे आरोप या किसी अदानी के दाग का कोई हल्ला नहीं था। वे जब प्रधानमंत्री बने तब कांग्रेसी भी ‘अच्छे दिन’ आने के ख्याल में थे। जिधर देखो उधर नरेंद्र मोदी की वाह और अपने आप सभी तरफ लोगों में उन्हें जिताने का उत्साह था।

अब पापड बेलने पड़ रहे हैं। लालू यादव की बेटे-बेटियों के यहां ईडी-सीबीआई-इनकम टैक्स के छापे डलवाने पड़ रहे हैं। नेताओं को खरीदने, पार्टियों को तोड़ने में हाथ काले करने पड़ रहे हैं। नोटबंदी के बाद से नरेंद्र मोदी लगातार वह सब करते हुए हैं, जिसकी भाजपा के चाल, चेहरे, चरित्र में कभी किसी ने कल्पना नहीं की थी। देश की जनता दो हिस्सों में बंट गई है। सत्ता के लिए वह करना पड़ रहा है जिसकी राष्ट्र-लोकतंत्र-कौम के सनातनी सभ्य संस्कारों की तमाम मर्यादाएं चूर-चूर हैं। मेरा मानना है कि हर सनातनी हिंदू ने राम और रावण की कथा से जाना हुआ है कि क्या मर्यादा है और क्या अहंकार! सब जानते हैं कि राम मर्यादा पुरूष थे और रावण अहंकारी। लेकिन अहंकारी रावण भी सीता हरण के बावजूद सभ्य व्यवहारी था। उसने युद्ध मैदान में सीधी आमने-सामने की लड़ाई लड़ी! बहु-बेटियों के यहा छापे नहीं पड़वाए। छल से सीता हरण किया लेकिन उन्हें बाकायदा मर्यादा से अशोक वन में रखा। महाभारत हो या रामायण हम हिंदुओं की सत्ता लड़ाई हमेशा मर्यादा, नियम-कायदे व रणभूमि के बाहर बाकायदा भाईचारे, संवाद और विरोधी के प्रति उसकी बुद्धि-गरिमा का ध्यान रख सद्भाव तथा मान-सम्मान में हुई।

हो सकता है लंगूर भक्त मेरी इस विवेचना से सहमत नहीं हों। वे कह सकते हैं कि अब हम कलियुगी हैं इसलिए बिना राक्षसी, जंगली बने इक्कीसवीं सदी का हिंदू राष्ट्र बनना संभव नहीं है। हमें भी तानाशाह बनना है। कण-कण से विरोध को, पाकिस्तानियों को खत्म करना है। जब तक हिंदू मतदाता लगातार अग्निपरीक्षा देकर प्रधानमंत्री मोदी को अजेय, कालजयी नहीं बनाएंगे तब तक हिंदू राष्ट्र की सिद्धि नहीं है! इसलिए यह मान लिया जाना चाहिए मोदीजी का अगला दसवां वर्ष और कड़ी अग्निपरीक्षा का है।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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