मैक्रों का बयान खासा विवादास्पद हुआ है। चीन समर्थक मींडिया जहां इस पर अह्लादित नजर आया, वहीं पश्चिमी देशों में इस पर निराशा देखने को मिली। दोनों जगहों पर इसे चीन के मसले पर पश्चिमी एकता में सेंध लगने के रूप में देखा गया।
फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने चीन के बारे में यूरोपीय, बल्कि पश्चिमी सहमति को तोड़ते हुए जो कह दिया, उसके झटके से यूरोप में हलचल थम नहीं रही है। कई यूरोपीय हलकों में इसको लेकर मैक्रों के प्रति गुस्से का इजहार किया गया है। मसलन, जर्मनी में विपक्षी पार्टी सीडीयू के नेता नॉबर्ट रोएटगन ने कहा है कि चीन और ताइवान के मुद्दे से यूरोप को दूर रहने की सलाह देकर माक्रों खुद को अलग-थलग कर रहे हैं और वे यूरोपियन यूनियन को कमजोर कर रहे हैं। मैक्रों और यूरोपियन कमीशन की प्रमुख फोन उरसुला वॉन डेय लियोन इस महीने की शुरुआत में तीन दिन की बीजिंग यात्रा पर थे। बीजिंग से लौटते हुए एक फ्रांसीसी अखबार से बातचीत में माक्रों ने कहा कि ताइवान के मुद्दे पर यूरोपीय संघ को किसी ब्लॉक का हिस्सा नहीं बनना चाहिए। उनका इशारा अमेरिका और चीन ब्लॉक से था। मैक्रों ने यह बयान उस समय दिया जब ताइवान की खाड़ी में इस वक्त तनाव चरम पर है। ताइवानी राष्ट्रपति की अमेरिका यात्रा से नाराज चीन ने सैन्य अभ्यास कर तीन दिन तक ताइवान की घेराबंदी कर दी।
इसलिए मैक्रों का बयान खासा विवादास्पद हुआ है। चीन समर्थक मींडिया जहां इस पर अह्लादित नजर आया, वहीं पश्चिमी देशों में इस पर निराशा देखने को मिली। दोनों जगहों पर इसे चीन के मसले पर पश्चिमी एकता में सेंध लगने के रूप में देखा गया। वैसे इस मुद्दे पर यूरोपीय संघ और यूरोप की सरकारें ज्यादा कुछ नहीं बोल रही हैं। लेकिन गैर सरकारी क्षेत्रों और मीडिया में पिछले कई दिनों से यह मुद्द सर्वाधिक चर्चित बना हुआ है। अमेरिका और उसके साथी देशों की निगाह में एशिया में चीनी सेना के बढ़ते प्रभाव के बीच समंदर में आवाजाही के अधिकार का मुद्दा केंद्रीय महत्त्व क है। ताइवान के साथ साथ विवाद की जड़ में दक्षिण चीन सागर भी है। जबकि चीन दक्षिण चीन सागर के कई द्वीपों को अपना बताता है। जिस समय इस मुद्दे पर अमेरिका लामबंदी तेज करने में जुटा हुआ है, फ्रांस ने अलग रुख अपना कर उसके लिए मुश्किल खड़ी की है। इससे पश्चिम में हलचल मचना लाजिमी है।