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मुख्यधारा और पूर्वोतर के छोटे प्रदेश

फरवरी में त्रिपुरा, मेघालय और नगालैंड में विधानसभा चुनाव हैं। इनकी राजनीति और नतीजों का मुद्दा महत्व का नहीं है। इसमें अहम और असल बात है कि पिछले पांच सालों में इन तीन प्रदेशों का भारत की मुख्यधारा में कैसा घुलना-मिलना हुआ? क्या इन प्रदेशों की राजनीति को अब वैसा ही मानें, जैसे उत्तराखंड या हिमाचल प्रदेश को घुलामिला समझते हैं? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमित शाह और हेमंता बिस्वा सहित भाजपा-संघ परिवार की उत्तर पूर्व के लोगों में क्या वैसी पकड़ बन गई है, जैसे कभी कांग्रेस की हुआ करती थी? कांग्रेस को खत्म कर भाजपा ने लोगों के दिल-दिमाग में अपनी क्या छाप बनाई है? क्षेत्रीय, नस्लीय पहचान और कबीलाई राजनीति से ये प्रदेश कितना बाहर निकले हैं?

मोटामोटी सत्य है कि मोदी सरकार में उत्तर-पूर्व के राज्यों में अलगाववादी, उग्रवादी संगठन हाशिए में गए हैं। असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा को उत्तर पूर्व के प्रदेशों की सियासी जागीरदारी दे कर भाजपा ने प्रदेशों की सत्ता पर कायदे का दबदबा बना रखा है। बावजूद इस सबके भाजपा-संघ परिवार का संगठन स्थानीय आबादी में अपने नेचुरल कार्यकर्ता व नेता नहीं पैदा कर पा रहा है। हिमंता बिस्वा भी कांग्रेस से आयातित हैं तो त्रिपुरा और मेघालय, नगालैंड में पांच साल बाद भी भाजपा दलबदलुओं के भरोसे फरवरी का चुनाव लड़ते हुए है। आश्चर्य जो त्रिपुरा के मुख्यमंत्री ने हाल में वामपंथी नेताओं को भाजपा में आने का न्योता दिया। मतलब कम्युनिस्टों का वाममोर्चा त्रिपुरा में जिंदा है। और वह कांग्रेस से मिलकर चुनाव लड़ेगा।

तभी नरेंद्र मोदी, अमित शाह, जेपी नड्डा सब फरवरी के चुनाव के लिए हर संभव दम लगा रहे हैं।
ऐसे ही मेघालय और नगालैंड में भाजपा ने सत्ता का खेल, कांग्रेस के नेताओं-कार्यकर्ताओं की खरीदारी से सजाया। सत्ता खेल से कांग्रेस को खत्म किया लेकिन जनता और जनप्रतिनिधियों में भाजपा-संघ के आइडिया ऑफ इंडिया को लेकर हिकारत है। उस तुलना में कांग्रेस अभी भी तीनों प्रदेशों में जिंदा है। मेघालय में दलबदल के बावजूद कांग्रेस खत्म नहीं हुई। मौजूदा चुनाव में कांग्रेस दमखम से लड़ते लग रही है।

ऐसा ही नगालैंड में है। प्रादेशिक पार्टी के नेफ्यू रियो की सरकार के साथ घालमेल के बावजूद ईसाई बहुल प्रदेश में भाजपा से लोगों में चिढ़ है। मेघालय व नगालैंड की ईसाई आबादी को ही ध्यान में रख प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में 2021 की वेटिकन सिटी यात्रा का उल्लेख करते हुए पोप को भारत न्योतने की जानकारी दी। कहा- मैं वेटिकन सिटी गया और पोप से मिला। मैंने उन्हें भारत आमंत्रित किया। उस बैठक का मुझ पर बहुत प्रभाव पड़ा। हमने चर्चा की कि मानवता की एकता मानव जाति के लिए कैसे महत्वपूर्ण है।

संदेह नहीं कि उत्तर पूर्व जस का तस पहले जैसा है। मतलब दिल्ली में जो केंद्र सरकार होगी उसी अनुसार वहां की सरकारें। दिल्ली में कांग्रेस तो कांग्रेस का वहां भी राज और यदि केंद्र में भाजपा की सरकार तो वहां भी भाजपा की सत्ता। तभी दीर्घकालीन दृष्टि का विचारणीय पहलू है कि अगले चुनाव में कांग्रेस वहां और खत्म होगी या बची रहेगी? क्योंकि भाजपा की खुद की जड़ें तो स्थायी गहरी पैठते हुए नहीं हैं। तभी मुख्यधारा से जुड़ाव से सियासी तकाजे में जरूरी है कि कांग्रेस उत्तर पूर्व में लगातार उपस्थित रहे।

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By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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