Naya India

खड़गे जी, बात नहीं करके दिखाएं!

शायद ही कोई सियासी जानकार हो जो नगालैंड में मल्लिकार्जुन खड़गे के भाषण के इन वाक्यों पर चौंका नहीं हो कि 2024 में केंद्र में गठबंधन सरकार होगी। हम दूसरी पार्टियों से बात कर रहे हैं। उनके साथ अपनी यह सोच जाहिर कर रहे हैं कि कैसे 2024 का चुनाव जीता जा सकता है। विपक्षी एकता जरूरी है अन्यथा लोकतंत्र व संविधान बचना मुश्किल होगा! सवाल है क्या सचमुच कांग्रेस में इन चार-पांच वाक्यों के अनुसार राजनीति का संकल्प बना है? विपक्षी पार्टियों में मोदी हटाओ, लोकतंत्र बचाओ के सूत्र पर क्या एकता बन सकना संभव है?

मैं कुछ संभावना मानता हूं। क्यों? इसलिए कि इरादा मल्लिकार्जुन खड़गे के मुंह से निकला है। खड़गे अब कांग्रेस महाधिवेशन के ठप्पे के साथ पक्के पार्टी अध्यक्ष हो गए हैं। जनता में मोटा-मोटी उनको ले कर धारणा एक निराकार और गांधी परिवार के अनुगामी अध्यक्ष की है। लेकिन ऐसा रियलिटी में नहीं होगा। नगालैंड की जनसभा के उनके भाषण, तेवर से अब राजनीतिक बिरादरी में उनको ले कर अलग राय बनती लगती है। मल्लिकार्जुन खड़गे गांधी परिवार के साथ बाकी विपक्षी पार्टियों के नेताओं में भी धीरे-धीरे खांटी जमीनी और गंभीर नेता के रूप में मान्य हो रहे हैं।

प्रमाण संसद का शीतकालीन सत्र और बजट सत्र का पहला चरण है। शीतकालीन सत्र में चीन के मुद्दे तथा बजट सत्र में अदानी मुद्दे पर खड़गे ने पहल करके विपक्ष के संसदीय नेताओं से बात की। कई बार बैठक की और नतीजे में पूरे विपक्ष ने एकजुटता से संसद की कार्यवाही में सरकार को घेरे रखा। आम आदमी पार्टी के सांसद हों या समाजवादी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस या दक्षिण की क्षेत्रीय पार्टियों के सांसदों ने अदानी को ले कर जिस शिद्दत से संसद ठप्प की तो उससे न सरकार का सन् 2023-24 का चुनावी बजट जनता में चर्चित हुआ और न प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने एजेंडे पर फोकस रख पाए। उलटे जनकल्याणकारी बजट व अपनी उपलब्धियों का ब्योरा देने की बजाय एकजुट विपक्षी हल्ले के दबाव में संसद में छाती ठोंक कर कहना पड़ा एक अकेला सब पर भारी या देखो जो काम वोटर नहीं कर पाए वो प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने कर दिया। ईडी ने विपक्ष के सभी को एक साथ करा दिया।

जाहिर है मल्लिकार्जुन खड़गे में विरोधी पार्टियों के नेताओं से डायलॉग और साझा बनवाने की समझ है। तथ्य है कि वे जमीनी हकीकत, चुनावी राजनीति और नेताओं के दावपेंचों के बीच अपने को चलाए रखने के दशकों पुराने अनुभवी हैं। तभी अपना मानना है कि खड़गे जो करेंगे उसमें सोनिया गांधी, राहुल गांधी या प्रियंका की बाधा नहीं होगी। पार्टी संगठन के मामले में भले प्रियंका गांधी वाड्रा के ईर्द-गिर्द के लोग, एआईसीसी के दरबारी कांग्रेसी पदाधिकारियों के मामले में कुछ टांग अड़ाएं मगर मोटा मोटी कांग्रेस मुख्यालय की चुनावी तैयारियां, उम्मीदवार चयन, विपक्षी तालमेल के काम पार्टी अध्यक्ष खड़गे की ही कमान में होंगे।

बावजूद इस सबके हैरानी वाली बात जो मल्लिकार्जुन खड़गे ने नगालैंड में सार्वजनिक तौर पर 2024 के चुनाव को ले कर अपनी सोच जाहिर की। अपने पर नरेंद्र मोदी, अमित शाह का फोकस बनवाया। बहुत संभव है अब उन पर भी ईडी, सीबीआई आदि की नजर रहे। उनको दस तरह से घेरने का काम हो। मोदी-शाह किसी को भी यह राजनीति नहीं करने दे सकते, जिससे सन् 2024 के चुनाव में भाजपा उम्मीदवार के खिलाफ विपक्ष का एक अकेला उम्मीदवार चुनौती देने वाला हो। मल्लिकार्जुन खड़गे इस असंभव को संभव करने का शोर करेंगे तो उनके आगे दसियों तरह के नए रोड़े बनेंगे ही।

इसलिए लाख टके का सवाल है कि मल्लिकार्जुन खड़गे ने अपने इरादे को सार्वजनिक करके क्या विपक्षी एकता के काम को और मुश्किल नहीं बना दिया? हिसाब से उन्हें एकता की कोशिश की बातें नहीं करनी चाहिए, बल्कि विरोधी पार्टियों को एकजुट बनाने का चुपचाप मिशन बनाए रखना चाहिए। बोलें नहीं, बल्कि सन् 2024 के चुनावों की घोषणा के बाद ही बतलाएं कि लोकसभा की 543 सीटों में से कितनी सीटों पर पार्टियों में एक उम्मीदवार की सहमति हुई है। उससे पहले न उनका बोलना ठीक है और न जयराम रमेश या चिदंबरम या एक्सवाईजेड किसी कांग्रेसी नेता को इसकी सार्वजनिक चखचख बनानी चाहिए।

Exit mobile version