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हीरा बा को ममता की श्रद्धांजलि

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की माँ हीरा बा के निधन पर कई देशों के राष्ट्रपतियों और प्रधानमंत्रियों ने शोक व्यक्त किया लेकिन यह देखकर आश्चर्य हुआ कि कांग्रेस से सोनिया गांधी और राहुल ने कोई एक शब्द तक नहीं कहा। यह भी हो सकता है कि उन्होंने कहा हो और अखबारों ने उसे छापा न हो। लेकिन ज़रा हम सोचें कि भारतीय राजनीति में आपसी कड़ुवाहट किस स्तर तक नीचे पहुंच गई है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ ने तो शोक व्यक्त किया है और उन्होंने अपनी श्रद्धांजलि भी दी है लेकिन हमारे कई अत्यंत मुखर विरोधी नेता बिल्कुल मौन रह गए।

क्या हमारे विरोधी दलों के नेता, जहाँ तक मोदी का सवाल है, वे किसी पाकिस्तानी प्रधानमंत्री से भी ज्यादा खफा हैं? राहुल गांधी का अटलजी की समाधि पर जाना मुझे अच्छा लगा। यह उदारता और राजनीतिक शिष्टाचार का परिचायक है। इंदिराजी के निधन पर अटलजी ने भी जो शब्द कहे थे, उसे मार्मिक श्रद्धांजलि ही कहा जा सकता है। लोकतंत्र की यह खूबी है कि आप चुनावों के दौरान, संसद में, प्रदर्शनों में और बयानों में अपने विरोधियों का डटकर विरोध करते रहें लेकिन शोक के ऐसे अवसरों पर आप इंसानियत का परिचय दें।

इस मामले में प. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बेनर्जी ने अद्भुत उदारता का परिचय दिया है। मोदी का जितना कट्टर विरोध ममता ने किया है और उनके तत्कालीन राज्यपाल जगदीप धनखड़ को उन्होंने जितना सताया है, किसी अन्य राज्यपाल को नहीं सताया गया है, लेकिन मोदी की माताजी के निधन पर जो वाक्य उन्होंने कहे हैं, वे अत्यंत मार्मिक हैं। ममता ने कहा है कि ‘‘आपकी माताजी के निधन पर आपको कैसे सांत्वना दी जाए। आपकी माँ भी तो हमारी माँ हैं।’’ मोदी ने अपनी माँ की अंत्येष्टि के तुरंत बाद हावड़ा-जलपाईगुड़ी वंदे भारत एक्सप्रेस को हरी झंडी दी।

वे चाहते तो इस कार्यक्रम को स्थगित भी कर सकते थे। लेकिन इससे यह भी पता चलता है कि उनकी माँ ने उनको कितने पवित्र संस्कार दिए थे। उनका आचरण एक अनासक्त कर्मयोगी की तरह रहा। उन्होंने अन्य नेताओं की तरह अपनी माँ और अपने भाई-बहनों को सत्ता की चाशनी को चखने का भी मौका नहीं दिया जबकि हमारे नेताओं के रिश्तेदार उस चाशनी में अक्सर लथपथ हो जाते हैं।

इसका अर्थ यह नहीं है कि हमारे विरोधी नेता मोदी की खुशामद करें। मोदी का जो भी काम या भाषण उन्हें अप्रिय लगे, उसकी आलोचना वे बेखटके जरूर करें लेकिन शोक के ऐसे मौकों पर सभी नेता एक-दूसरे के प्रति सहज सहानुभूति व्यक्त करें तो उनके बीच सद्भाव तो पैदा होगा ही, भारत का लोकतंत्र भी मजबूत होगा।

By वेद प्रताप वैदिक

हिंदी के सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले पत्रकार। हिंदी के लिए आंदोलन करने और अंग्रेजी के मठों और गढ़ों में उसे उसका सम्मान दिलाने, स्थापित करने वाले वाले अग्रणी पत्रकार। लेखन और अनुभव इतना व्यापक कि विचार की हिंदी पत्रकारिता के पर्याय बन गए। कन्नड़ भाषी एचडी देवगौड़ा प्रधानमंत्री बने उन्हें भी हिंदी सिखाने की जिम्मेदारी डॉक्टर वैदिक ने निभाई। डॉक्टर वैदिक ने हिंदी को साहित्य, समाज और हिंदी पट्टी की राजनीति की भाषा से निकाल कर राजनय और कूटनीति की भाषा भी बनाई। ‘नई दुनिया’ इंदौर से पत्रकारिता की शुरुआत और फिर दिल्ली में ‘नवभारत टाइम्स’ से लेकर ‘भाषा’ के संपादक तक का बेमिसाल सफर।

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