बेबाक विचार

फिर माओवाद का साया?

ByNI Editorial,
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फिर माओवाद का साया?
क्या पश्चिम बंगाल के झारखंड से सटे इलाकों में नौ साल बाद एक बार फिर माओवाद सिर उठाने लगा है? हाल में इलाके में माओवादियों के कई पोस्टर नजर आए हैं। तब से पुलिस प्रशासन में हड़कंप है। इससे पहले बीते महीने भी माओवादियों ने लोगों से स्वाधीनता दिवस समारोहों के बहिष्कार की अपील की थी। अब वरिष्ठ महानिदेशक समेत कई अधिकारियों ने इलाके का दौरा कर स्थिति की समीक्षा की है। कोई नौ साल से इलाके में माओवाद का कोई नामोनिशान नहीं था। उससे पहले माओवादी सक्रियता की वजह से इलाके के तीन जिलों, पश्चिम मेदिनीपुर, बांकुड़ा और पुरुलिया को जंगल महल कहा जाता रहा है। बाद में ममता बनर्जी सरकार ने पश्चिम मेदिनीपुर का हिस्सा रहे झाड़ग्राम को भी जिले का दर्जा दे दिया। लेकिन हालिया पोस्टरों के बाद नक्सलवाद के मुद्दे पर राजनीतिक टकराव तेज हो गया है। सत्तारुढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने बीजेपी का नाम लिए बिना इन पोस्टरों को एक साजिश बताया है। वहीं बीजेपी का आरोप है अगले साल होने वाले चुनावों से पहले सियासी फायदे के लिए टीएमसी माओवाद को बढ़ावा दे रही है। दरअसल, पश्चिम बंगाल के झारखंड से लगे इलाकों में बीते नौ वर्षों से माओवाद का कोई नामलेवा नहीं था। 2011 में माओवादी नेता किशनजी के पुलिस मुठभेड़ में मारे जाने के बाद इलाके में शांति बहाल हो गई थी। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सत्ता में आने के बाद इलाके के आदिवासियों को मुख्यधारा में शामिल करने के लिए थोक के भाव विकास योजनाएं शुरू की थीं। उनका असर भी नजर आने लगा था। दो साल पहले भी एक बार इलाके में माओवादियों के सक्रिय होने की खबरें आई थीं। लेकिन पुलिस और इलाके में तैनात केंद्रीय बलों की चुस्ती की वजह से माओवादियों को दोबारा संगठित होने का मौका नहीं मिला। लेकिन हाल में इलाके में माओवादियों की ओर से लिखे धमकी भरे पोस्टरों के सामने आने से इलाके में आतंक फैल गया। राज्य सरकार ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए अगले ही दिन पुलिस महानिदेशक समेत कई वरिष्ठ अधिकारियों को मौके पर भेजा। वहां उन्होंने स्थानीय पुलिस औऱ प्रशासन के साथ बैठक में जमीनी परिस्थिति की समीक्षा की और जरूरी निर्देश दिए। इलाके में गश्त भी बढ़ा दी गई है। पुलिस को संदेह है कि अगले साल होने वाले अहम चुनावों से पहले माओवादी एक बार फिर संगठित होने का प्रयास कर सकते हैं।
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