अद्भुत अनिश्चित्ताओं के महान खेल में भी बाज़ार को निश्चित नंबर वन ही चाहिए। लेकिन बाज़ार किसी को नंबर वन बना नहीं सकता है। क्या न्यूजीलैंड के विश्व टेस्ट विजेता बनने से बाज़ार में वही खुशी है जो भारत के जीतने पर होती? यह कहना मुश्किल है। क्रिकेट की महानता का और बाज़ार की मुनाफाखोरी का कोई मेल नहीं है। जीवन का खेल चलता रहा है। टेस्ट क्रिकेट का खेल जीता रहेगा।
लेखक: संदीप जोशी
marketism and cricket : आखिर क्रिकेट प्रेमियों को विश्व टेस्ट विजेता टीम मिल ही गयी। क्या सच में ऐसा हो सकता है? चतुर लोग इतिहास को समय में तोलने की भुल करते रहे हैं। घड़ी को इतिहास से मापना समय की नासमझी है। मापना और तोलना दोनों इतिहास और समय से परे होने चाहिए। जैसा क्रिकेट में होता है वैसा ही जीवन में भी है। नंबर वन की विश्व टेस्ट विजेता दौड़ बीते समय के महान खेल को नकार नहीं सकती है। लेकिन बाज़ार को तो बेचने के बहाने चाहिए। एक नंबर वन चाहिए। बाज़ार बेशक खेलों की लोकप्रियता भुना कर चलाने में सहायक बनता है मगर उसका ध्येय तो मुनाफे की सर्वसत्ता में ही टिकता है। इंग्लैण्ड के साउथहेम्टन शहर के रोस बाउल मैदान पर न्यूज़ीलैण्ड टीम की ताज़पोशी हो गयी। बाज़ार गच्चा खा गया। टेस्ट क्रिकेट खेलने वाले देशों के बीच दो साल चली टेस्ट श्रृंखलाओं के आधार पर भारत और न्यूज़ीलैण्ड को नंबर वन के लिए इंग्लैण्ड में विश्व टेस्ट विजेता के लिए यह आधारभूत टेस्ट मैच खेलना था।डेल्टा प्लस वैरिएंट क्या है, क्या ये कोरोना की तीसरी लहर की चेतावनी है..आइयें जानते है इसके सारे सवालों के जवाब
विश्व टेस्ट विजेता की जरूरत इसलिए जतायी गयी क्योंकि नई पीढ़ी के दर्शकों में टेस्ट क्रिकेट अरूचि पैदा कर रहा था। टेस्ट क्रिकेट का प्रारूप आज के एकदिवसीय, बीसमबीस और दसमदस के सामने लोकप्रियता में कमजोर पड़ रहा था। आयोजकों को यह जताने वाला भी बाज़ार ही है। अब अपन सभी क्रिकेट प्रेमियों को अच्छे से मालूम है कि इन सभी प्रारूपों में खेला तो क्रिकेट ही जाता है। एक ढेड़ शताब्दी पूर्व जब क्रिकेट खेला जाने लगा, और लोग आंनद लेने लगे तो इसको जो सबसे पहला रूप दिया गया वह टेस्ट क्रिकेट था। टेस्ट क्रिकेट यानी नीयत समय में खिलाड़ी की संपूर्ण कला का सर्वांगी प्रदर्शन। यह कोई दो-तीन घंटे, या दिन भर में नहीं दर्शाया जा सकता है। जीवन के उतार-चड़ाव, हानि-लाभ, जय-पराजय और सुख-दुख समेट कर ही फिर टेस्ट क्रिकेट का लोकप्रिय प्रारूप उभर कर आया। जिसको अंग्रेजी साम्राज्यवाद में रहे देशों द्वारा खेला गया। वहीं इसका फैलाव हुआ और लोकप्रियता फैली। जीवन और खेल को जोड़ का देखने वाला क्रिकेट का एकमात्र टेस्ट प्रारूप ही है। बदलाव ही जीवन की नियती रहा है। कई दशकों के विकास के बाद इसी लोकप्रिय टेस्ट क्रिकेट में बदलते समय के साथ बदलाव लाने जरूरी हुए। खेल को अच्छा तो उस खेल के अच्छे खिलाड़ी ही बनाते हैं। खेल के महान खिलाड़ी ही खेल को लोकप्रिय भी बनाते हैं। फिर टेस्ट क्रिकेट को धीमा, उबानेवाला और समय खाने वाला अरूचिपूर्ण खेल माना जाने लगा। इसको चाहे विकास कहें या विनाश। आज हम असीमित दिनों के टेस्ट मैच से आगे आ कर दो घंटो की दसमदस की लप्पेबाजी पर आ गए हैं।यह भी पढ़ें: उमर को मुख्यमंत्री कौन बनाएगा?
जो भी आज खेला जा रहा है वो भी क्रिकेट ही है। लेकिन जब खेल प्रेमी मैदान के दर्शक खेल प्रेमी न बन कर सिर्फ टीवी दर्शक बनने लगे तो वही खेल बाज़ार का खेल बन गया। क्योंकि उन्हीं के कारण हमें घर बैठे हमारा रोमांचक और प्रिय खेल देखने को मिल रहा था। मैदान पर खेले जाने वाला खेल घर पर देखा जाने लगा। बाज़ार खुद को खेल प्रमियों से ज्यादा खेल का मालिक मानने लगा। फिर तो जो दिखाया गया वही हमारे देखने में आया। बाज़ार और उसके मुनाफे से जुड़ी शक्तियां मनमर्जी से खेल में बदलाव भी लाने में लगे। सन सत्तर के दशक में समाज पर जब बाज़ार हावी होने लगा तो कुछ गिने-चुने लोगों के लिए संप्रभुता का सवाल पैदा हो गया। आस्ट्रेलिया की एक टीवी कंपनी के मालिक कैरी पैकर को खेल दिखाने का एकाधिकार चाहिए था। कैरी पैकर ने अपना पव्वा जमाने के लिए अलग से एकदिवसीय लीग कराई। खिलाडि़यों को पैसे से खरीदने का सिलसिला शुरू किया गया। जब विश्व क्रिकेट संघ - जिसको मुख्यत इंग्लैण्ड से चलाया जाता था - को यह खटकने लगा तो उसने नए प्रायोजक पकड़े। तब जा कर प्रूडेंशियल इंश्योरेंस कंपनी के प्रायोजन से सन 1975 में पहली बार एकदिवसीय क्रिकेट का विश्व कप आयोजित किया गया। हालांकि यह आयोजन इंग्लैण्ड को विश्व विजेता देखने के बाज़ार के प्रयोजन से निकला था। मगर जो तब क्रिकेट की सर्वश्रेष्ठ टीम थी यानी वेस्ट इंडीज वही सन 75 और सन 79 में क्रिकेट के एकदिवसीय प्रारूप की विश्व विजेता बनी। नए दर्शकों में, नई पीढ़ी में एकदिवसीय क्रिकेट लोकप्रिय हुआ। सन 83 में कपिल देव के आत्मविश्वास से सराबोर भारतीय टीम ने क्रिकेट जगत को हैरान कर दिया। भारत पहली बार क्रिकेट में विश्व विजेता बना। बाज़ार के लिए भारत के नए प्रायोजकों को जोड़ने का मौका मिला। खेल का छोटा होता प्रारूप, और फलने फूलने लगा।फिर जब एकदिवसीय भी बोर करने और लंबा लगने लगा तो सन 2007 में दक्षिण अफ्रीका में पहला बीसमबीस का विश्व कप कराया गया। नया दुग्धारी नंबर वन खोजना था। धोनी के धुरंधर बीसमबीस क्रिकेट के पहले विश्व विजेता बने। तब दुनिया को पता चला कि भारत में क्रिकेट की लोकप्रियता के कारण दुनिया की क्रिकेट भी चलाई जा सकती है। भारत में बीसमबीस की आईपीएल चली और दुनिया की क्रिकेट के बदलने का सिलासिला जारी रहा। आज विश्व क्रिकेट संघ में भारत के धन और भारत की क्रिकेट का ही बोलबाला है।Playstation Time! 🕹️ Who is winning this - @SDhawan25 or @BhuviOfficial? 🤔😉 #TeamIndia #SLvIND pic.twitter.com/41KF0l69kN
— BCCI (@BCCI) June 25, 2021