जमीयत उलेमा-ए-हिंद के मुखिया महमूद मदनी के बयान पर इधर हंगामा मचा हुआ है। हमारे टीवी चैनलों पर आजकल यही सबसे बड़ा मुद्दा बना हुआ है। मदनी के इस कथन का कोई एतिहासिक प्रमाण नहीं है कि ‘‘इस्लाम का जन्म-स्थान अरब देश नहीं, भारत है। पहले नवी का जन्म भारत में ही हुआ है। यह मुसलमानों की मातृभूमि है। इस्लाम को विदेशी मजहब मानना एतिहासिक दृष्टि से गलत है और बिल्कुल निराधार है।’’ ये वाक्य मदनी ने पढ़कर सुनाए थे, जमीयत के 34 वें अधिवेशन में।
यों तो मदनी अपने आप में उत्तम वक्ता हैं लेकिन यह समझ में नहीं आया कि ये विवादास्पद वाक्य उन्होंने पढ़कर क्यों सुनाए? हो सकता है कि जैसे हमारे बड़े नेताओं के भाषण उनके अफसर लिखकर दे देते हैं और वे उन्हें श्रोताओं के सामने पढ़ डालते हैं, वैसे ही यह गलती मदनी से भी हो गई है। लेकिन इस गलती के पीछे छिपी भावना को समझने की कोशिश की जाए तो लगेगा कि मदनी किसी भी बड़े से बड़े हिंदू से भी कम नहीं हैं।
मदनी के पूरे भाषण का सार यह है कि भारत के मुसलमानों की श्रद्धा और आस्था का सर्वोच्च केंद्र अगर कहीं है तो वह भारत में ही है। भारत जितना हिंदुओं का है, उतना ही मुसलमानों का भी है। यदि जिन्ना को यह बात समझ में आ जाती तो पाकिस्तान बनता ही क्यों? मैं तो चाहता हूं कि मदनी, ओवैसी तथा कई मुस्लिम नेता मेरे उस कथन को दोहराएं, जो कई वर्ष पहले मैंने दुबई में हमारे दूतावास द्वारा आयोजित एक बड़ी सभा में कहे थे। उस सभा की अगली पंक्ति में कई जाने-माने अरब शेख लोग भी बैठे थे।
मैंने कहा था कि मुझे हमारे भारतीय मुसलमानों पर गर्व है, क्योंकि वे दुनिया के सर्वश्रेष्ठ मुसलमान हैं। वे सर्वश्रेष्ठ इसलिए हैं कि उनके रगों में पैगंबर मुहम्मद के क्रांतिकारी सुधारों की धारा के साथ-साथ भारतीय संस्कारों की सदियों पुरानी पवित्र गंगा भी बहती है। मदनीजी का यह भाषण मेरे इस कथन को और भी अधिक मजबूत बनाता है, क्योंकि भारत के मुसलमान कौन हैं?
वे सब पहले भारतीय ही थे, हिंदू ही थे और आजकल जिन्हें मुसलमान कहा जाता है। अरब, ईरान, तुर्कीए और अफगानिस्तान से आनेवाले फौजियों और सूफी संतों की संख्या कितनी थी? अब तो उनकी संतान कौन है और कौन नहीं, यह पता लगाना भी लगभग असंभव है। वे विदेशी लोग आटे में नमक की तरह एक-मेक हो गए हैं। इसीलिए संघ-प्रमुख मोहन भागवत ठीक ही कहते हैं कि हिंदु और मुसलमानों का डीएनए तो एक ही है।
यही बात कुछ नए ढंग से महमूद मदनी कहने की कोशिश कर रहे हैं। भारत के हिंदू लोग जिस ‘हिंदू’ शब्द को बड़े गर्व से अपने लिए बोलते हैं, वह भी उन्हें विदेशी मुसलमानों का ही दिया हुआ है। भारत के किसी भी प्राचीन ग्रंथ में ‘हिंदू’ शब्द कहीं नहीं आया है।