बेबाक विचार

मीडिया है नफरत फैलाने का टूल!

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मीडिया है नफरत फैलाने का टूल!
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि मीडिया है नफरत फैलाने का टूल। सिर्फ प्राइम टाइम में नहीं, बल्कि हर समय न्यूज चैनलों पर कुछ न कुछ ऐसा चलता होता है, जो दो समुदायों में नफरत फैलाने वाला हो। इस मकसद में इस्तेमाल हो सकने वाली छोटी से छोटी बात भी मीडिया की नजरों से नहीं बच पाती है। आम लोगों के जीवन से जुड़ी बड़े महत्व की बातों पर किसी की नजर नहीं जाती है। जैसे सरकार ने खुद माना है कि देश में इस बार धान की पैदावार पिछली बार से कम हुई है। इस वजह से चावल की कीमतें बढ़ती जाएंगी या एक डॉलर की कीमत 81 रुपए पहुंच गई है या महंगाई फिर सात फीसदी हो गई है।  ऐसी बातें मीडिया की नजरों से ओझल रहती हैं लेकिन कश्मीर घाटी के स्कूलों में ‘रघुपति राघव राजा राम’ गवाए जाने का महबूबा मुफ्ती ने विरोध कर दिया है तो उस पर हर जगह चर्चा। देश के सबसे बड़े और पुराने मीडिया घराने के न्यूज चैनल पर उसकी संपादक और सुपरस्टार एंकर ने इस पर चर्चा कराई। चर्चा में शामिल मुस्लिम प्रतिनिधियों को डांटते-फटकारते हुए उसने कहा कि महात्मा गांधी का भजन गाए जाने का विरोध कैसे हो सकता है! सोचें, कितनी होशियारी से महात्मा गांधी के नाम का इस्तेमाल किया गया है। ‘रघुपति राघव राजा राम’ महात्मा गांधी का भजन हो गया और इस आधार पर मुस्लिम छात्रों से इसे गवाए जाने को न्यायसंगत ठहराया जाने लगा। इस तरह के मुद्दे मीडिया हर जगह से खोज कर लाता है। उस पर कथित हिंदू धर्मगुरुओं और मौलानाओं को बैठा कर बहस करता है। सुप्रीम कोर्ट के जजों ने यह ठीक बात कही है कि कई लोगों को बैठा कर होने वाली बहसों में एंकर खुद ही बोलते रहते हैं। यह हकीकत है कि एंकर नफरत फैलाने वाली भाषा बोलते हैं तो उनके बुलाए  प्रायोजित गेस्ट भी जब मुंह खोलते हैं तो नफरत की भाषा बोलते हैं। सो, इस लिहाज से सुप्रीम कोर्ट के दोनों जजों की टिप्पणी बहुत जायज है। लेकिन असल समस्या न्यूज चैनलों की या एंकरों की नहीं है। न्यूज एंकर तो वहीं हैं और उनके चैनल भी वहीं हैं, जो आठ-दस साल पहले थे। लेकिन तब तो वे इस तरह की बातें नहीं करते थे या करते थे तो बहुत ढके-छिपे शब्दों में! फिर अचानक क्या हुआ, जो नफरत फैलाने वाली खबरों और बहसें मुख्यधारा में आ गईं? सुप्रीम कोर्ट को इस बारे में ज्यादा गहराई से सोचना चाहिए। आखिर ऐसा क्या बदला है कि सारे न्यूज चैनल और सोशल मीडिया नफरत फैलाने का टूल बन गए हैं? जब तक इसकी जड़ तक नहीं पहुंचा जाएगा, तब तक इस समस्या को खत्म नहीं किया जा सकेगा। दूसरे, सुप्रीम कोर्ट ने इसे ठीक करने का जो उपाय सुझाया है वह अपने आप में एक नई मुश्किल खड़ी करने वाला है। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कहा है कि वह इसे रोकने के नियम, कानून बनाए। यह दूध की रखवाली में बिल्ली को बैठाने जैसा है।
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