बेबाक विचार

कलियुगी वज्रमूर्खता, गधेड़ापन!

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कलियुगी वज्रमूर्खता, गधेड़ापन!
मेरे तो गिरधर गोपाल (मोदी) दूसरा न कोई-3: तो इक्कीसवीं सदी के सन् इक्कीस में भारत-हिंदू पड़ाव का क्या कलियुगी अर्थ हुआ? भाग्य में लिखा है सो ऐसा हो रहा है! ईश्वर की इच्छा है जो ऐसा है। प्रभु इच्छा। ताली थाली बजा कर, दीया जला कर प्रभु से प्रार्थना करनी है, वायरस भगाना है। यज्ञ करो, सुबह-शाम सूर्य को अर्पण दो, ताप वायरस को भस्म कर देगा। वैसे भी मोदीजी हैं। कलियुग के कल्कि रक्षक अवतार हैं तो भला वायरस कहां टिकेगा। ...कुछ करोड बीमार हो रहे है, कुछ लाख मर रहे है तो क्या, इतने करोड ठिक भी तो है और देखों मोदीजी का कमाल... बीमार ठिक हो रहे है!...लोग मर नहीं रहे...बाकि जगह तो कितने मर गए। आज फंला का प्रवचन सुनों.. चित्त को शांत करों।... पोजिटिवटी अनलिमिटेड...विश्वास रखों सूरज फिर उदय होगा! ... इस तरह अमेरिका, यूरोप याकि दुनिया के सभ्य और सतयुगी जीवन जी रहे लोग नहीं सोचते। क्योंकि वे कलियुगी होने, कलियुग बनाने वाली वज्रमूर्खता, गधेड़ापन लिए हुए नहीं हैं। वे वैसे ही जीते हैं, जैसे सतयुग में हिंदू जीते हुए थे। मतलब मूर्ति के आगे अपने को अर्पित करते हुए नहीं, बल्कि सत्य समझते, सत्य से जीते हुए इस उपासना के साथ कि- मुझे तेज दीजिए, मुझे बलवान बनाइए, मुझे ओजस्वी बनाइए, मेरे लिए सभी दिशाएं झुकें।.. मेरी वायरस को परास्त करने की बुद्धि बने….मतलब कर्मवाद और ज्ञान का प्रज्वलन!...फिर नोट करें कि हिंदू का जब सत्यवादी सतयुग था तब प्रजा और राजा दोनों बौद्धिक शक्ति से संचालित व नियंत्रित थे। पूरी राज्य शक्ति बौद्धिक शक्ति से। राजा जवाबदेह था। एक धोबी ने सवाल उठाया तो राम ने सीता को जंगल भेजा। न राम ने, न कृष्ण ने ऐसी मार्केटिंग बनवाई कि हर-हर मोदी, घर-घर मोदी। लेकिन जब इस कीर्तन से घर-घर बीमारी, घर-घर मौत बनी तो लोग राजा को दौड़ाने की बजाय अपने आपको कोसते हुए यह कहते  नहीं थे हैं कि हमारे करम फूटे हैं! राजा क्या करे! राजा तो बेचारा चौबीस घंटे काम कर रहा है। उफ! हिंदू का कलियुग हिंदू की बुद्धि को कितना खा चुका है। इसलिए अपनी यह मान्यता पुख्ता है कि आने वाले दशकों में अगली हिंदू पीढ़ी ऐसा बिलखता-भूखा-भयाकुल, पशुगत जीवन भारत में जीती हुई होगी कि पृथ्वी पर मानवता का नरक भारत होगा। सन् इक्कीस नरक की महज झांकी है, जिससे मुंह मोड़ हिंदू अभी भी मेरे तो मोदी गिरधर गोपाल का भजन करते हुए बेसुध है। जबकि पृथ्वी की शेष मानवता इस चिंता, अविश्वास में है कि इंसान और उसकी मौत भला कैसे ऑक्सीजन-सांस की कमी में फड़फड़ाती और जलती हुई व नदियों में बहती हुई हो सकती है। शेष मानवता का ऐसा सोचना मेरे सुधी पाठक, हैदराबाद के अपने कादेल और मेरे साढ़ू शत्रुध्न शर्मा को समझ नहीं आता। वे तो आंखें बंद किए भक्ति में नाचते हुए हैं... मेरे तो मोदी गिरधर गोपाल।.. हां याद करें बंद-बेसुध आंखों और बुद्धि व जगत मिथ्या के भाव में नाचती हुई मीरा को..उनकी दिवानगी को जबकि प्रजा में हाहाकार था, प्रजा बाबर का हमला झेल रही थी..खानवा की लड़ाई ने रूलाया हुआ था मगर भक्त और भक्ति के लिए तो जगत मिथ्या।...वह प्रभुजी की लीला में खोई निश्चिंत कि रामजी सब भला करेंगे। ये भी पढ़ें: बुद्धि जब कलियुग से पैदल हो! यही कलियुग है, लेकिन हिंदू का कलियुग। जो नस्ल, जो प्रजा सत्य में जीती है वह महामारी के प्रारंभ में वायरस को वायरस मानती हुई थी। टेस्ट-ट्रेस-रिस्पांस की गंभीरता-ईमानदारी में थी। वैक्सीन की रिसर्च में खो कर सौ फिसदी टीकाकरण, एक भी संक्रमण नहीं की जिद्द (हां, आंशिक टीकाकरण में भी ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, दक्षिण कोरिया, सिंगापुर जीरो संक्रमण से जीते हुए हैं)। सो, सतयुगी सत्यवादी सभ्य प्रजा-व्यवस्था बनाम कलियुगी झूठे लोगों की कलुयगी व्यवस्था, कलियुगी राजा का फर्क जगत प्रमाणित है!  कलियुग क्योंकि झूठ बुलवाता है, झूठा तंत्र लिए होता है, झूठी प्रजा लिए हुए होता है तभी नरेंद्र मोदी ने अवतारी राजा कल्कि वाली सर्वज्ञता में आह्वान किया था- फलां दिन, फलां वक्त ताली-थाली बजाएं, दीया जलाएं, वायरस भाग जाएगा। मैंने लॉकडाउन लगा दिया है, महाभारत में हम विजयी 18 दिनों में हुए थे, इस बार 21 दिनों में होंगे।...याद करें नरेंद्र मोदी के 24 मार्च 2020 के भाषण से लेकर विश्व को बचाने वाले त्राता होने, विश्व गुरू होने की बंडलबाजी वाले भाषणों को। एक तरफ सतयुगी सत्यवादी संगठन, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति सब कह रहे थे वायरस खतरनाक है.. लंबी चलेगी महामारी... टेस्ट-ट्रेस-रिस्पांस, इलाज में जुट जाओ.. जब तक वैक्सीन नहीं तब तक निदान नहीं.... लेकिन कलियुग के प्रधानमंत्री का भला सत्य से क्या नाता। पहले दिन से झूठ ही झूठ कि हम विजयी हुए। अब अनलॉक-1, अनलॉक-2-3-4-5-6-7 और फिर यह आह्वान की महामारी मौका है, अवसर है! ये भी पढ़ें: मेरे तो गिरधर गोपाल (मोदी), दूसरा न कोई! तभी हिंदू ने नरेंद्र मोदी को देखते हुए, हिंदू राजा के आह्वानों, मतलब धंधा करो, मौके का फायदा उठाओ, देखो तालियां बजाओ, जिधर देखो उधर भीड़...लाखों लोग मुझे सुनने आए...जैसी बातों पर भक्त-भोले कलयुगी हिंदू ने वह सब किया जो राजा ने कहा और जो राजा ने खुद किया। उसने भी भीड़ की परवाह न करते हुए कुंभ में डूबकी लगाई....मौके का फायदा उठा, कमा कर आत्मनिर्भर हुआ। संकट-दवा इलाज-मौत सबको मौका बनाया। बाबुओं की व्यवस्था के नाम पर कमाई, दवा की ब्लैक मार्केटिंग... और मौका है लाश को बेचो, लाश का मुंह दिखा कर उसको सीलबंद बना पांच सौ या हजार या दो हजार रुपए किसी भी रेट पर सुपुर्द कर परिजन से पैसा ऐठों. .कमाई करो।... डॉक्टर भी कमाई करेगा, बाबू भी कमाई करेगा, श्मशान में बैठा पंडित भी कमाई करेगा क्योंकि कलियुगी अवतारी राजा मोदी ने देश के जन-जन को अपने भाषणों, अपने कामों से बताया है कि जान नहीं जहान की चिंता, महामारी नहीं मौका। मौत झूठ और आंकड़े सत्य। सोचें कलियुगी राजा की इस कलियुगी सोच पर..मौत का तांडव, वायरस का इंडियन वैरिएंट हवा में भी घूमता हुआ और इसकी चिंता से दिल्ली में सख्त लॉकडाउन... लेकिन बावजूद इसके कलियुगी राजा अपना महल बनवाने के लिए उसका काम कर रहे मजदूरों को ‘आवश्यक निर्माण’ की कैटेगरी में डाल लॉकडाउन के बीच उनसे काम करवा रहा है। दिमाग में तनिक भी ख्याल नहीं कि जब लॉकडाउन, महामारी में प्रजा यह जानेगी कि राजा अपना चुपचाप महल बना रहा है तो लोग भी लॉकडाउन के बावजूद शटर डाल कर दुकान के भीतर धंधा करेंगे, अपना घर-अपने प्रोजेक्ट का निर्माण कराते हुए होंगे। लेकिन इस सबकी कलियुगी राजा को चिंता नहीं। न महामारी की न लोगों की इसलिए क्योंकि उन्हें आता है वह जादू, जिसकी भक्ति कलियुगी हिंदू में सदियों से रची पकी है। वे आराध्य हैं, मूर्ति हैं और उनका मंदिर इक्कीसवीं सदी के दूसरे दशक के हिंदुओं का नंबर एक सिद्ध पॉवर स्थान है तो भला भगवान को फिक्र, सोचने विचारने की क्या जरूरत। जब भक्त सोचने वाला नहीं तो उन्हें क्या सोचना। कैसा गजब है भारत का यह कलियुग वर्तमान! 140 करोड़ लोगों में एक भी कोई नाम नहीं जो कलियुगी हिंदू दिमाग में नरेंद्र मोदी का विकल्प समझ आए। मेरे पाठक सोहनलालजी को राज करने योग्य एक व्यक्ति नहीं सूझा जो पूछ रहे है- आप ही बताइए कौन है जी? ...जाहिर है सोहनलालजी न अपने को समर्थ मानते हैं और न पूरी हिंदू जात में किसी अमित शाह, राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी को लायक मानते हैं। कितनी गजब बात है कि हिंदू लंगूरों की लाखों लोगों की फौज ने सोशल मीडिया में सवाल बना रखा है कि मोदी नहीं तो क्या पप्पू? बुद्धि पर ऐसा कलियुगी पर्दा है कि इनमें किसी को यह भी नहीं सूझता कि अमित शाह लायक हो सकते हैं, राजनाथ सिंह, गडकरी, योगी या शिवराज याकि कथित 11 करोड़ भाजपाइयों में कई लायक हो सकते हैं। तभी नरेंद्र मोदी को क्या चिंता! सब कलियुगी हिंदुओं की एक देवता, एक भगवान विशेष से लगन पक्की है। सब धर्म-कर्म-पुरुषार्थ-बुद्धि-विवेक-ज्ञान-विज्ञान छोड़ मोदी के आगे सरेंडर हैं। उन्हीं का देवालय, उन्हीं की आरती, उन्हीं के नगाड़े, उन्हीं का चालीसा, उन्हीं के ताबीज, उन्हीं की कंठी जब सबके गले में बंध गई है तो उस मंदिर-मठ-सत्ता की चारदिवारी में भला दूसरा कोई भगवान कैसे हो सकता? कलियुग और कलियुगी हिंदू पूरा ही जब मोदी मंदिर को अर्पित है तो भक्तों का स्वभाविक है यह मानना कि अमित शाह, गडकरी या कोई भी भाजपाई नेता मुख्य मूर्ति की जगह ले ही नहीं सकता। अमित शाह रामजी के हनुमान हो सकते हैं पर राम नहीं, गडकरी विश्वकर्मा हो सकते हैं मगर परशुराम अवतार नहीं। ये तमाम चेहरे और बाकी सब मुख्य मूर्ति के अगल-बगल या मंदिर परिसर के वे देवी-देवता हैं, जिन पर लगे हाथ भक्त फूल चढ़ा देंगे। लेकिन भक्त के ध्यान-ख्याल में कलियुग के कल्कि अवतार की जगह कतई स्थापित नहीं हो सकते। मैंने जाना नहीं कि कलियुगी हिंदुओं ने क्या सोचा-माना कि कल्कि का अवतार होगा तो क्या-क्या होगा? लेकिन धारणा है कि यह हिंदुओं का अंतिम कलियुगी अवतार है। इसके बाद कोई अवतार, कोई विकल्प नहीं है। कुछ कलयुगी हिंदू यह विचार भी लिए हुए हैं कि नरेंद्र मोदी ही हैं, जिससे कुछ बन सकता है। कुछ यह भी सोच रहे है कि हर-हर मोदी का असली रूद्र रूप अभी भला कहां प्रकट हुआ है? सितंबर बाद जब मंगल उच्च का होगा तब मोदीजी का असली रूद्र रूप प्रकट होगा... बहुत संभव है यह सब महामारी में मोदी के सच्चे रूप के प्रकटीकरण पर पर्दा डालने और पट बंद करके आने वाले महीनों में नरेंद्र मोदी के नए शृंगार, नए दर्शन के हेडलाइन-रोडमैप का विचार हो या उत्तर प्रदेश के भावी चुनाव में हिंदुओं के सच्चे रक्षक बताने की कोई अगली स्कीम हो। लब्बोलुआब कलियुगी हिंदू के लिए नरेंद्र मोदी आखिरी अवतार हैं। अब जब ऐसा है तो न सोहनलालजी का सवाल गलत है और न मेरे जवाब या सोचने का कोई मतलब है। भारत भूमि के कलियुगी हिंदुओं का सतयुग कभी नहीं आ सकता! बावजूद इसके मैं अपने धर्म-कर्म को भी छोड़ नहीं सकता। मुझे जिद्द बनाए रखनी है कि कैसे भी हो कलियुगी हिंदुओं की बुद्धी जागे।
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