प्रवासी मजदूर लाखों की संख्या में अपने गांव लौट चुके हैं। इससे अपने घर पहुंच जाने का मनौवैज्ञानिक संतोष उन्हें जरूर मिला हो, मगर वहां उन्हें कई तरह की गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। असल बात तो यह है कि गांवों में काम के मौके नहीं होने की वजह से ही उन्होंने पलायन किया था। अब वहां कोई ऐसा जादू नहीं हो गया है कि वे अपने गांवों में ही रोजी-रोटी का इंतजाम कर लें। फिर उनको लेकर वहां छुआछूत की भावना भी है। ज्यादातर लोग उनमें कोरोना संक्रमण की संभावना सोच कर उनसे मिलने-जुलने से बच रहे हैं। ये डर बेजा नहीं है। ये सच है कि प्रवासी मजदूरों के लौटने के बाद बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों के गांवों- कस्बों में संक्रमण के मामले बढ़ने लगे हैं। छोटे शहरों में अब तक संक्रमण की रफ्तार बेहद कम थी। मगर वहां हर दिन ज्यादा संख्या में पॉजिटिव केस सामने आ रहे हैं। उत्तर प्रदेश में बस्ती, आजमगढ़, जौनपुर, संभल, बहराइच, बाराबंकी जैसे जिले इसकी मिसाल हैं। लखनऊ से लगे बाराबंकी जिले में संक्रमित लोगों की संख्या तेजी से बढ़ रही है।
बताया जा रहा है कि श्रमिक स्पेशल ट्रेनों, सरकारी बसों और अन्य वैध साधनों से आने वालों की संख्या से कहीं ज्यादा ऐसे लोग हैं जो अलग-अलग जरियों से अपने आप ही अन्य राज्यों से चले आए। इनमें से कुछ क्वारंटीन सेंटरों में गए, लेकिन बहुत से लोग ऐसे हैं जो सीधे र अपने घरों और गांवों में पहुंच गए। आने वाले ज्यादातर प्रवासी मुंबई, दिल्ली और गुजरात से हैं, जहां कोरोना संक्रमण की स्थिति देश में सबसे ज्यादा खराब है। वैसे प्रवासी मजदूरों को क्वारंटीन में रखने में प्रशासन की लापरवाही और नाकामी दोनों सामने आई हैं। क्वारंटीन सेंटरों की स्थिति ऐसी है कि वहां से लोग भाग जाते हैं। उत्तर प्रदेश और बिहार के कई जगहों से क्वारंटीन सेंटरों से लोगों के भागने या फिर अव्यवस्थाओं को लेकर शिकायतें करने की खबरें आई हैं। खास चिंता की बात यह भी है कि उत्तर प्रदेश और बिहार दोनों ही राज्यों में अभी भी मजदूरों के आने का सिलसिला जारी है। अभी लाखों और लोगों के आने की संभावना है। सरकारी अधिकारियों के मुताबिक आगे आने वाले लोगों को क्वारंटीन सेंटरों पर भेजा जाएगा। मगर अब तक का अनुभव भरोसा नहीं बंधाता। फिलहाल, तो आने वाले दिन बेहद चुनौती भरे दिखते हैं।