मैंने अपने जीवन में पहली बार गरी की मिठाई व सोयाबीन के पनीर की सब्जी 1968 में तब खाई थी जब मैं अपने बड़े भाई की शादी में कानपुर से दिल्ली आया था। यहां आकर पता चला कि गर्मियो में दिल्ली में दूध के उत्पादो जैसे पनीर, खोया, बर्फी आदि की बिक्री पर रोक लगाई जाती है। फिर जब मैं दिल्ली आकर नौकरी करने लगा तो उन दिनों गर्मियो में पांच किलो पनीर के साथ पकड़े जाने की खबरें छपती रहती थी।
सच कहूं कि एक समय था जब पनीर शाकाहारी लोगों के लिए बहुत विशेष व महंगी सब्जी माना जाता था। खासतौर पर अच्छी शादियो में इसका खाने में इस्तेमाल किया जाता था जबकि हमारे शहर कानुपर ही नहीं उत्तर प्रदेश में पनीर का उपयोग न के बराबर था व मैंने इसे पाठ्यपुस्तकों में ही पढ़ा था व दिल्ली आने पर इसे सब्जी की दुकानों पर बिकते हुए देखा था। यह मुझे जरा भी अच्छा नहीं लगता है।
इसकी याद इसलिए आ गई क्योंकि अब 30 नवंबर समाप्त हो गया है जोकि दुनिया के एक बड़े व्यापार समझौते आरसीईपी याकि क्षेत्रीय व्यापार आर्थिक भागीदारी समझौते पर दस्तख्त करने की आखिरी तारीख थी व भारत ने कुछ सप्ताह पहले इससे अलग होने का ऐलान करते हुए इस पर दस्तख्त करने से इंकार कर दिया था। इस पर 16 देशों ने दस्तख्त किए है जिनमें सभी देश आसियान के सदस्य है। इसमें चीन, न्यूजीलैंड, आस्ट्रेलिया सरीखे देश भी शामिल है। भारत अब नहीं है।
इसकी अहमितयत का अनुमान तो इससे लगाया जा सकता है कि इसके सदस्य देशों में दुनिया की आधी से ज्यादा आबादी रहती है व दुनिया के कुल देशों की जीडीपी का 35 फीसदी हिस्सा इन संगठन में शामिल लोगों के क्षेत्र से ही आता हैव वहां दुनिया का 40 फीसदी व्यापार होता है। चीन के बाद भारत इस संगठन का सबसे बड़ा देश होता। इसे 2012 में दुनिया का सबसे बड़ा मुक्त व्यापार क्षेत्र बनाने के लिए तैयार किया गया है जिसके सदस्य देश अपने यहां आयात व निर्यात किए जाने वाले उत्पादों पर बहुत कम कर लगाते जिससे कि वे सदस्य देशों के लिए काफी सस्ते हो जाते।
यदि भारत सदस्य होता तो इस कारण हमारे देश में उत्पादो को नुकसान पहुचता क्योंकि सदस्य देश अपने उत्पादो की भारी सबसिडी या उन पर बहुत कम निर्यात शुल्क लगाकर सस्ता कर देते थे जिससे कि जिस देश में उन्हें भेजा जा रहा है वहां के उत्पादको के साथ उनकी प्रतिस्पर्धा बढ़ जाती।
भारत में इस संधि का तमाम मजदूर संगठन विरोध करते आ रहे थे क्योंकि इस समझौते के कारण विदेश में आने वाले उत्पाद काफी सस्ते हो रहे व हमारे भारतीय उत्पादको के लिए समस्या बढ़ती जाती। जब विदेशी सामान सस्ता होगा तो हमारे नागरिक स्वदेशी सामान क्यों खरीदेंगे। इसके कारण कपास, डेयरी, स्टील आदि उत्पादको ने इसका विरोध किया था। आशंका यह थी कि अमेरिका के साथ व्यापार युद्ध के चलते हुए चीन अपना सामान और सस्ता करके भारत के बाजारो में भर सकता था जिससे भारतीय सामान की मांग और भी कम हो जाती है।
चीन ने किस तरह से अपने सामान खासकर दीवाली में लडि़यो के जरिए भारत के बाजार को पाट दिया है, यह किसी से छुपा नहीं है। यह आशंका थी कि चीन इसके बाद भारतीय बाजारो में अपने सामान से पाट सकता है व दूसरे इस क्षेत्र में उसका दबदबा व प्रभाव और भी ज्यादा बढ़ने का खतरा था।
इस समझौते को लेकर किसान सबसे ज्यादा विरोध कर रहे थे व उनमें भी दूध उत्पादक सबसे आगे थे। यहां तक कि नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड तक ने इसका विरोध किया था। भारत की गिनती दुनिया के सबसे बड़े दुग्ध उत्पादको में की जाती है। खुद भारत में कृषि क्षेत्र में जो सबसे ज्यादा दूध का उत्पादन होता है। इस साल देश में 187.75 लाख टन दूध का उत्पादन है जोकि धान के 174.63 लाख टन, व गेहूं के 102.59 लाख टन उत्पादन से ज्यादा है। इस दूध का मूल्य 5,63,250 करोड़ रहा वह भी तब अगर हम दूध का दाम महज 30 रुपए लीटर माने तो।
भारत में किसानो के लिए अन्य फसलो की तुलना में दूध आय का सबसे बड़ा स्त्रोत है जहां किसानों की फसल से साल में एक बार ही आमदनी होती है वहीं यह दूध के जरिए हर रोज कमाई करते हैं। आम नागरिक के स्वास्थ्य संबंधी जरूरतो जैसे चिकनाई, प्रोटीन आदि की जरूरतो को भी दूध ही पूरा करता है। हमारे देश में जैसे-जैसे आय बढ़ी है दूध का उपयोग भी बढ़ता जाता है। वे परिवार अपनी रोटियो पर देसी घी लगाने लगते हैं जोकि दूध का ही उत्पाद है।
हम दूध से मिल्क पाउडर (सूखा दूध) मक्खन, घी, दही, पनीर आदि तैयार करते हैं। दूध व उसके उत्पादको में आस्ट्रेलिया व न्यूजीलैंड काफी आगे हैं। जोकि अपने किसानो को भारी राज सहायता देकर उनके उत्पाद सस्ते बना देते हैं। इन देशों ने तो अपने उत्पादन का 95 फीसदी हिस्सा तक निर्यात किया था। ऐसे में दूध के उत्पादो की भरमार वहीं से होनी थी। उसके सस्ते होने से हमारे देश के दूध उत्पाद को भारी घाटा उठाना पड़ता।
हमारे देश में पनीर का बहुत कम आयात होता है क्योंकि उसकी मांग ज्यादा नहीं है। हर साल हम 14-1500 करोड़ का पनीर आयात करते व इसका ज्यादातर इस्तेमाल पिज्जा बनाने में किया जाता है। इसलिए आस्ट्रेलिया व न्यूजीलैंड की भारत के बाजार पर नजर थी। अब आने वाला समय ही ही यह बताएगा कि यह समझौता रद्द होने के बाद हमें कितना फायदा या नुकसान होता है।
भारत मे दुध प्रॉडक्ट का रेट कम कहोगे, गाय, म्हैस दुध रेट भारी गिरावट होगी.