प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो नया मंत्रिमंडल ( modi govt cabinet new ) बनाया है वह एक बेहद खास खूबी वाला है। इसमें दो-चार अपवादों को छोड़ कर लगभग सभी मंत्री नए और उनके प्रति निष्ठा रखने वाले हैं। ऐसे तमाम नेता, जिनसे किसी जमाने में भाजपा की पहचान होती थी या ऐसे नेता, जो कभी अटल बिहारी वाजपेयी के नवरत्नों में शामिल होते थे वे सब बाहर हो गए हैं। यही स्थिति पार्टी की भी है। लेकिन अभी सरकार की बात हो रही है तो उसी के चेहरों पर फोकस रहना चाहिए। सरकार में शामिल किए गए ज्यादातर नेता नए हैं, अपरिचित हैं या बाहरी हैं। इसमें संदेह नहीं है कि नए नेताओं को आगे किया जाना चाहिए क्योंकि उससे अगली पीढ़ी का नेतृत्व बनता है। लेकिन उसके लिए पहली शर्त नेता की योग्यता और उसकी लोकप्रियता होती है। जिन नए लोगों को मंत्री बनाया गया है उनमें से थोड़े से लोगों को छोड़ कर बाकियों के बारे में यह पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता है कि वे बहुत लोकप्रिय या भविष्य की संभावना वाले नेता हैं।
इसमें भाजपा के लोगों की भी कमी है क्योंकि अनेक मंत्री ऐसे हैं, जो हाल ही में दूसरी पार्टियों से आए हैं। तभी शिव सेना के संजय राउत ने तंज करते हुए कहा कि भाजपा को कैबिनेट बनाने के लिए एनसीपी और शिव सेना का शुक्रगुजार होना चाहिए। महाराष्ट्र के तीन ऐसे नेता मोदी की सरकार में शामिल हुए हैं, जिनमें से दो पहले एनसीपी में थे और शिव सेना-कांग्रेस में। झारखंड से मंत्री बनाई गईं अन्नपूर्ण देवी दो-ढाई साल पहले राजद में थीं और उत्तर प्रदेश के एसपी सिंह बघेल राज्य की सभी पार्टियों में रह चुके हैं।
modi govt cabinet new : बहरहाल, एक तो कुछ संयोग भी रहा कि वाजपेयी-आडवाणी और जोशी वाली भाजपा के कई बड़े नेताओं की असमय मौत हो गई। अरुण जेटली, सुषमा स्वराज, अनंत कुमार, मनोहर पर्रिकर जैसे कई नेताओं की असमय मौत हो गई। कुछ लोग सक्रियता के बावजूद उम्र के आधार पर घर बैठा दिए गए, वेंकैया नायडू को उप राष्ट्रपति और कुछ अन्य लोगों को राज्यपाल बना दिया गया। इससे जो बच गए उनको हाशिए में डाल दिया गया। ऐसा सुविचारित तरीके से किया गया तभी राज्यों में मुख्यमंत्री बनाए गए नए चेहरों और केंद्र सरकार के मंत्रियों में भी वह दिख रहा है। इनमें से ज्यादातर वो चेहरे भी नदारद हैं, जो राजनाथ सिंह और नितिन गडकरी के समय संगठन में काम करते थे। संगठन और सरकार दोनों जगह अपवाद के लिए पुराने चेहरों को रखा गया है। ज्यादातर लोग ऐसे हैं, जो मोदी-शाह के प्रति निष्ठा रखने वाले हैं।
मोदी की मौजूदा कैबिनेट ( modi govt cabinet new ) में 30 मंत्री हैं। इनमें पांच आईएएस और आईएफएस हैं, जो वाजपेयी-आडवाणी या राजनाथ-गडकरी के समय सरकारी नौकरी कर रहे थे या कुछ और काम कर रहे थे। दो लोग सहयोगी पार्टियों के हैं और दो दूसरी पार्टियों से आए हुए हैं। बचे 21 लोगों में से 10 लोग भी ऐसे नहीं हैं, जो पहले से जाने हुए हों या किसी पुराने नेता के करीबी रहे हों। राज्यमंत्रियों में यह संख्या बहुत ज्यादा है। ज्यादातर बिल्कुल नए लोग हैं। प्रदेशों की राजनीति में भी कम महत्व रखने वाले और गुमनाम लोगों को आगे किया गया है। जो पुराने लोग बचे हुए हैं वे भी कब तक बचे हैं, कहा नहीं जा सकता है।
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पुरानी विरासत का प्रतीक रहे नेताओं में से रविशंकर प्रसाद, प्रकाश जावडेकर, थावरचंद गहलोत, डॉक्टर हर्षवर्धन, डीवी सदानंद गौड़ा और संतोष गंगवार को इस बार सरकार से बाहर कर दिया गया है। राजीव प्रताप रूड़ी और सैयद शाहनवाज हुसैन को पहले ही बाहर रखा गया है। सुमित्रा महाजन, शांता कुमार, बंडारू दत्तात्रेय, हुकुमदेव नारायण यादव, रमेश बैस, बीसी खंडूरी आदि को उम्र के हवाले रिटायर किया जा चुका है। संजय पासवान बिहार की राजनीति तक समेट दिए गए हैं और उमा भारती सेहत के हवाले रिटायर होकर बैठी हैं। सुरेश प्रभु, सुब्रह्मण्यम स्वामी, कड़िया मुंडा, जुएल उरांव आदि नेता सरकार से बाहर ही समय काट रहे हैं।