
पिछले दिनो दो खबरें हमारे भारतीय मीडिया पर छायी रही। एक थी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात और फिर प्रधानमंत्री की सगी भतीजी दमयंती बेन का दिल्ली के गुजरात भवन के बाहर थ्रीव्हीलर स्कूटर से उतरते ही पर्स का छीना जाना। जिस राजधानी दिल्ली में पर्स व मोबाइल फोन का आए दिन छीना जाना जहां यहां की गंदगी और प्रदूषण की तरह रोजमर्रा की जिदंगी का हिस्सा बन चुका है वहीं यह घटना प्रधानमंत्री की भतीजी होने के बावजूद उसका पर्स छीना जाना अखबारो के लिए बड़ी घटना थी।
इसकी वजह यह है कि हम लोगों की दिक्कत यह है कि हम जिन्हें अपना आदरणीय मानते है उनके साथ कुछ भी हो जाए तो हम पगला जाते हैं। हम ऐसी बातों को बेहद गंभीरता से लेते हैं। जैसे कि जवाहर लाल नेहरू से जब उनके एक करीबी कांग्रेसी ने पूछा कि पंडितजी वैसे तो आप सिगरेट से सिगरेट जलाकर पीते हैं मगर आपको जनता ने कभी सिगरेट पीते हुए नहीं देखा तो उन्होंने जवाब दिया कि अगर जनता हनुमानजी या रामचंद्र को सिगरेट पीते हुए देखे तो क्या सोचेंगे। इसलिए मैं सिगरेट नहीं पीता हूं।
दूसरे शब्दो में वे खुद को ईश्वर से कम नहीं मानते थे। यह सुनने में अजीब बात लग सकती है मगर होता यही है। जब जनसत्ता में था तो वहां के तत्कालीन चीफ रिपोर्टर को किसी संस्था ने पुरस्कार के लिए चुना तो उनके अधीनस्थ काम करने वाला एक युवा कर्मचारी कहने लगा कि भाईसाहब हम भी पुऱस्कार वितरण समारोह में चलेंगे। जब आपको ईनाम मिलेगा तो हम सब लोग अगली पंक्ति में बैठ करके तालियां बजाएंगे।
जब जनसत्ता के तत्कालीन संपादक के यहां चोरी हो गई तो हमारे अपराध संवाददाता ने खबर लिखी कि अब चोरों की हिम्मत इतनी ज्यादा बढ़ गई है कि वे संपादक के यहां भी चोरी करने लगे हैं। मानों चोर न होकर जनसत्ता के संवाददाता हों। मगर भला हो हाल की ताजा घटना में कि दिल्ली पुलिस ने जल्द ही चोरी के सामान को जब्त कर दिया। यह वो पुलिस थी जोकि आंकड़ो के मुताबिक पिछले दो सालों में 50 फीसदी मामले भी नहीं सुलझा पाई थी।
जो मामले सुलझा भी लिए थे उनमें सामान के असली मालिक को सामान मिल पाना तो वैसे भी असंभव था। यह वही पुलिस थी जिसने सरेआम जैसिका लाल को गोली मारे जाने के बावजूद सबूतो के अभाव में किसी को मुजरिम नहीं बनाया था व सब बच गए थे तो एक अंग्रेजी के अखबार ने अपनी खबर ही हैडिंग लगाई थी कि 'नो बॉडी क्लिड जैसिका' किसी ने जैसिका को नहीं मारा है। फिर जा कर हंगामा हुआ व उसी पुलिस ने अपनी जांच में कुछ प्रभावशाली लोगों को हत्या का दोषी बताते हुए मामला बनाया और अदालत ने जिम्मेदार ठहराया।
हमारी जिदंगी में आए दिन ऐसे मामले देखने को मिलते हैं। याद है न जब सपा में सत्ता के रहते उनके प्रभावशाली नेता आजम खान की भैंस चोरी हो गई थी तो पूरा पुलिस विभाग ही उसकी छान-बीन में जुट गया था। इससे पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के स्मारक बंगले की घास काटने वाली मशीने को चलाने वाले बेल को उनके घर से चोरी होने की खबर के कारण बहुत हंगामा मचा था। तब पुलिस चोरी हो गए बैल को तो नहीं ढूढ़ पाई पर उसने एक नया बैल खरीद कर मशीन चलाने वाले को देते हुए उससे चोरी हो गया बैल ही बताने को कहा था। जब इसका खुलासा हुआ तो काफी हंगामा मचा।
कुछ साल पहले मेरे एक परिचित के यहां चोरी हो गई। जब पुलिस को पता चला कि मैं पत्रकार हूं तो एक बुजुर्ग पुलिस वाले ने मुझसे कहा कि साहब आप तो सब जानते ही है। अगर किस्मत खराब न होती तो चोरी ही क्यो होती। जो चला गया वह मिलना ही नहीं है। जिन्हें हमें ओबलाइज करना होता है उन्हें हम पहले से जब्त कुछ आभूषण दिखा देते हैं। आप अपने रिश्तेदार से कहिए कि हम उन्हें अदालत में जाने के पहले वह जेवर दिखाएंगे व वे वहां शिनाख्त के दौरान उन्हें पहचान कर अपना बता देंगे व चोरी हो गए सामान के बराबर उन्हें सोने के जेवर मिल जाएंगे। मगर मेरी रिश्तेदार ने किसी दूसरे के जेवर को लेना अशुभ करार देते हुए ऐसा करने से इंकार कर दिया और उनका सामान कभी नहीं मिला।
एक चुटकूला बहुत प्रचलित है कि एक बार इंटरपोल के सम्मेलन में तमाम देशों के आला पुलिस अफसर आए। रात को खाने-पीने के साथ एक अमेरिकी पुलिस अफसर ने कहा कि हम तो 24 घंटे के अंदर अपराधी को पकड़ लेते हैं। वहीं आस्ट्रेलियाई अफसर ने कहा कि हमने तो एक घंटे के अंदर सीरियल किलर को पकड़ लिया था। इस पर पाकिस्तान से आया पुलिस अधिकारी कहने लगा कि एक बार मंत्रीजी का हिरन चोरी हो गया हम लोगों ने ऊंट को बरामद कर अच्छी तरह से उसकी सेवा की। जब उसे अगले दिन अदालत में पेश किया तो उसने बयान दिया कि मैं ही हिरण हूं।
वैसे इस घटना के बाद मैं ईश्वर से प्रार्थना करने लगा कि प्रधानमंत्री के ज्यादा से ज्यादा रिश्तेदार दिल्ली आए व अपराधी उनका सामान छीन छीन कर भांगे। कम-से-कम इसी बहाने उनको पकड़ तो लिया जाएगा व राजधानी में केंद्र सरकार के अधीन काम करने वाली पुलिस के सक्रिय होने से अपराधों में कमी तो कुछ आएगी।