वर्षांत का समय पूरे साल का लेखा-जोखा करने का समय होता है। यह काम कई तरह से और कई पैमानों पर हो सकता है। सामाजिक, आर्थिक, कूटनीतिक आदि हर पहलू से गुजरते साल का आकलन हो सकता है। लेकिन चूंकि भारत में सब कुछ राजनीति केंद्रित है और तमाम दूसरे पहलू इस बात से तय होते हैं कि राजनीति की दशा और दिशा क्या होगी तो बेहतर होगा कि राजनीतिक पहलू से ही साल 2022 का आकलन किया जाए। यह साल कई मायने में देश की राजनीति को नई दिशा देने वाला है। हालांकि यह नहीं कह सकते हैं कि उस नई दिशा में राजनीति कितना आगे बढ़ेगी और उसका नतीजा क्या होगा लेकिन यह तय है कि इस साल जो बड़ी राजनीतिक घटनाएं हुई हैं उनका असर अगले साल की राजनीति पर और फिर उसके अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव पर भी पड़ेगा।
एक एक करके राजनीतिक घटनाओं को देखें तो सबसे पहला और बड़ा घटनाक्रम कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा है। ध्यान रहे कांग्रेस पार्टी पहली बार इतने लंबे समय तक विपक्ष में रही है। पहली बार वह ढाई साल के लिए और दूसरी बार भी ढाई साल के लिए ही विपक्ष में रही थी। तीसरी बार वह लगातार आठ साल विपक्ष में रही। लेकिन अभी वह साढ़े आठ साल से विपक्ष में है और कम से कम 10 साल लगातार विपक्ष में रहेगी। अगर सब कुछ इसी तरह चला तो हो सकता है कि सत्ता के लिए उसका इंतजार और लंबा हो जाए। तभी पहली बार कांग्रेस विपक्षी पार्टी की तरह काम कर रही है और सड़क पर उतर कर संघर्ष कर रही है। राहुल गांधी के नेतृत्व में हो रही भारत जोड़ो यात्रा विपक्ष के तौर पर कांग्रेस के मुखर होने का संकेत है। इसके नतीजे क्या होंगे वह अलग बात है लेकिन कांग्रेस महंगाई से लेकर बेरोजगारी और क्रोनी कैपिटलिज्म से लेकर देश में फैलाए जा रहे नफरत के माहौल के खिलाफ सड़क पर उतरी है।
कांग्रेस की यह यात्रा पार्टी के लिए, विपक्ष के लिए और व्यापक रूप से देश की राजनीति के लिए बहुत अहम साबित हो सकती है। मौजूदा समय में जब राजनीति सोशल मीडिया पर हो रही है और चुनाव भी सोशल मीडिया में लड़े जा रहे हैं, नेता हेलीकॉप्टर और हवाईजहाज से प्रचार करने जाते हैं और भाषण देकर उड़ जातेहै, तब राहुल गांधी और उनके साथ साथ कांग्रेस के अनेक नेता पैदल चल रहे हैं। पांच महीने तक पैदल चलने, 12 राज्यों से गुजरने और साढ़े तीन हजार किलोमीटर की यात्रा करने के बाद देश, जमीनी समस्याओं और राजनीति के बारे में राहुल की एक समझ बनेगी। कांग्रेस को अपने संगठन को मजबूत करने का मौका मिलेगा। कांग्रेस की मुख्य विरोधी भाजपा और समान विचारधारा वाली दूसरी पार्टियों को भी कांग्रेस को नए नजरिए से देखने की मजबूरी बनेगी। इस यात्रा के अनुभव और हासिल को कांग्रेस कैसे सहेजती और भुनाती है उस पर बहुत कुछ निर्भर करेगा।
दूसरा बड़ा घटनाक्रम देश की राजनीति में एक बड़ी ताकत के तौर पर आम आदमी पार्टी का उदय होना है। राजधानी दिल्ली की आधी अधूरी सरकार चला रही आम आदमी पार्टी ने इस साल पंजाब का विधानसभा चुनाव जीता है। आम आदमी पार्टी की जीत बेहद प्रभावशाली रही। उसके थोड़े दिन बाद ही पार्टी ने गुजरात में शानदार प्रदर्शन किया। उसे करीब 13 फीसदी वोट मिले। साल की शुरुआत गोवा में आम आदमी पार्टी के प्रभावशाली प्रदर्शन से हुई थी। उसे गोवा में छह फीसदी से ज्यादा वोट और दो सीटें मिलीं। इस तरह अब वह एक राष्ट्रीय पार्टी है। भाजपा और कांग्रेस के बाद तीसरी पार्टी है, जिसकी एक से ज्यादा राज्य में सरकार है। आम आदमी पार्टी का राष्ट्रीय राजनीतिक फलक पर इस तरह से उभरना पूरे देश की राजनीति को बदलने वाला होगा। हो सकता है कि कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियों को इसका नुकसान हो लेकिन आप के नेता अरविंद केजरीवाल को इसकी परवाह नहीं है। उन्हें सिर्फ अपना विस्तार करना है।
आम आदमी पार्टी की पंजाब में जीत और गुजरात में मिली कामयाबी में अगर हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस को मिली जीत को मिला दें तो एक और नए किस्म की राजनीति के स्थापित होने का संकेत मिलता है। इन तीनों राज्यों में आप और कांग्रेस ने खुले दिल से मुफ्त में वस्तुएं और सेवाएं उपलब्ध कराने का वादा किया था। पुरानी पेंशन योजना बहाल करने की बात हो या मुफ्त में बिजली और पानी की सुविधा देने का वादा हो या महिलाओं और बेरोजगारों को भत्ता देने की बात हो, इन तीनों राज्यों में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस ने वित्तीय अनुशासन को प्रचार की खिड़की से बाहर फेंक दिया और खजाना खोलने का ऐलान कर दिया। राज्यों का खाली खजाना कैसे भरेगा, इसकी चिंता किसी को नहीं है। यह अगले साल और उसके अगले साल की राजनीति का बहुत अहम मुद्दा होने वाला है। आम आदमी पार्टी और उसकी ‘मुफ्त की रेवड़ी’ बांटने की योजना राजनीति पर बड़ा असर डालेगी और चुनाव को प्रभावित करेगी।
तीसरा राजनीतिक घटनाक्रम बिहार में भाजपा और जनता दल यू का तालमेल समाप्त होना है। नरेंद्र मोदी के देश के राजनीतिक क्षितिज पर उभरने के बाद ऐसा दूसरी बार हुआ है। पहले 2013 में नीतीश कुमार ने अपनी पार्टी का तालमेल तोड़ लिया था। वे 2017 में वापस एनडीए में लौट गए थे और अब फिर 2022 में गठबंधन समाप्त कर दिया है। यह इस मायने में बड़ा घटनाक्रम है कि बिहार की 40 में से 39 सीटें पिछली बार एनडीए को मिली थीं और भाजपा के सामने अपने कोटे की 17 सीटों सहित बाकी सीटों के लिए नए इंतजाम करने होंगे। नीतीश कुमार के तालमेल तोड़ने का असर बिहार के अलावा दूसरे कई राज्यों पर पड़ सकता है। इस घटनाक्रम के अहम होने का एक कारण यह भी है कि एक एक करके भाजपा देश के अनेक राज्यों में अपने सहयोगी गवां चुकी है। नीतीश कुमार अब भाजपा के साथ नहीं हैं, उद्धव ठाकरे भी भाजपा के साथ नहीं हैं और बादल परिवार भी भाजपा से दूर हुआ है। इससे कई राज्यों की राजनीति प्रभावित होगी। वैसे तो देश में और भी कई चुनाव हुए और छोटी बड़ी राजनीतिक घटनाएं हुई हैं लेकिन ये तीन घटनाक्रम- कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा, आम आदमी पार्टी का राष्ट्रीय दल के तौर पर उभरना व उसकी ‘मुफ्त की रेवड़ी’ वाली राजनीति का स्थापित होना और बिहार में जदयू से भाजपा का तालमेल टूटना ऐसे हैं, जिनसे अगले साल देश की राजनीति सर्वाधिक प्रभावित होगी।