तालिबान का अफगानिस्तान पर काबिज होना कई नए खतरों को जन्म देगा, जिसमें एक खतरा इस्लामिक स्टेट का है। भारत में असदुद्दीन ओवैसी जैसे कई जानकार लोग हैं, जिन्होंने सार्वजनिक रूप से कहा है कि इस्लामिक स्टेट ही तालिबान को नियंत्रित करता है। यह बात पूरी तरह से सही नहीं है फिर भी इतना तो तय है कि तालिबान की ताकत बढ़ने से इस्लामिक स्टेट को बल मिला है। इराक और सीरिया में दुनिया ने इस्लामिक स्टेट को लगभग खत्म कर दिया था। इसमें अमेरिका के साथ साथ रूस ने भी बड़ी भूमिका निभाई थी। ऐसा लग रहा था कि दुनिया के इस्लामिक स्टेट से मुक्ति मिल गई लेकिन तालिबान की ताकत बढ़ने के साथ ही इस्लामिक स्टेट भी मजबूत होने लगा। इस्लामिक स्टेट को इराक और सीरिया में ताकत मिलेगी लेकिन हो सकता है कि अफगानिस्तान में इस्लामिक स्टेट और तालिबान के बीच जंग छिड़ जाए, जिसका एक संकेत काबुल हवाईअड्डे पर हुए फिदायीन हमले में दिखा है।
असल में अफगानिस्तान में इस्लामिक स्टेट का एक बिल्कुल अलग खेमा काम करता है, जो इस्लामिक स्टेट खुरासान यानी आईएस-के नाम से जाना जाता है। ध्यान रहे अरब और मुस्लिम इतिहास में खुरासान का बहुत महत्व है। भौगोलिक रूप से इसकी सीमाएं ईरान से लेकर मौजूदा समय के ताजिकिस्तान और उजबेकिस्तान तक बताई जाती हैं। लेकिन बुनियादी रूप से पुराने खुरासान में मौजूदा ईरान का उत्तर-पूर्वी हिस्सा, अफगानिस्तान का कुछ हिस्सा और मध्य एशिया का दक्षिणी हिस्सा शामिल थे। इसका विस्तार अमू दरिया तक माना जाता था और किसी जमाने में बुखारा और समरकंद भी इसका हिस्सा बताए जाते थे। अगर सिर्फ मौजूदा अफगानिस्तान की बात करें तो हेरात और बल्ख दो बड़े प्रांत खुरासान का हिस्सा रहे हैं। अरब और इस्लामिक इतिहास में खुरासान का बड़ा महत्व रहा है। ध्यान रहे आईएसआईएस यानी इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया को सब जानते हैं। नाम से जाहिर है कि आईएसआईएस की आतंकी गतिविधियों का हिस्सा सिर्फ इराक और सीरिया थे। उसके बाद बचे हुए बड़े हिस्से में आईएस-के यानी इस्लामिक स्टेट खुरासान को काम करना था।
अफगानिस्तान में चुनी हुई सरकार होने और अमेरिकी फौजों की मौजूदगी में आईएस खुरासान को ज्यादा मौका नहीं मिल रहा था। फिर भी उसने कुछ हमलों को अंजाम दिया था। इसी साल जून में बगलान में हमला किया था, जिसमें ब्रिटेन की एक संस्था के साथ काम करने वाले दस स्थानीय लोग मारे गए थे। उससे पहले आईएस-के ने काबुल में हजारा समुदाय के एक स्कूल पर हमले की जिम्मेदारी ली थी, जिसमें एक सौ से ज्यादा बच्चे मारे गए थे। इसके बावजूद उसकी गतिविधियां कुन्नार और नगनहार इलाके में सीमित थी। अब उसने तालिबान के खिलाफ मोर्चा खोला है। इस्लामिक स्टेट खुरासान के आतंकवादियों का मानना है कि तालिबान ने अमेरिका से हाथ मिला लिया है और इसलिए अमेरिका ने उसे अफगानिस्तान पर कब्जा करने दिया है।
इस्लामिक स्टेट के विचार छापने वाले साप्ताहिक अखबार ‘अल नाभा’ में पहली बार अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे को लेकर अपना विचार जाहिर किया और इसे ‘मुल्ला ब्रैडली’ प्रोजेक्ट नाम दिया। उसने कहा कि नया तालिबान अमेरिका का प्रॉक्सी है। सोचें, चीन और दुनिया के दूसरे कई देश, जिस तालिबान को बदला हुआ या नया तालिबान बता रहे हैं उसे इस्लामिक स्टेट अमेरिका का पिट्ठू बता रहा है। बहरहाल, इस्लामिक स्टेट ने तालिबान से पूछा है कि क्या वह अफगानिस्तान में पूरी तरह से शरिया कानून लागू करेगा! इस्लामिक स्टेट का कहना है कि अफगानिस्तान-पाकिस्तान के इलाके में इस्लामिक स्टेट को कमजोर करने के लिए अमेरिका ने तालिबान को खड़ा किया है। इसके बाद इस्लामिक स्टेट ने जिहाद का नया दौर शुरू करने की बात कही है।
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साप्ताहिक अखबार ‘अल नाभा’ में जहर उगलने के एक हफ्ते के भीतर काबुल हवाईअड्डे पर ऐसा भीषण हमला हुआ, जैसा हाल के बरसों में नहीं हुआ था। इस हमले में 113 लोगों के मारे जाने की खबर है, जिसमें 90 स्थानीय लोग हैं और 13 अमेरिकी सैनिक हैं। सोचें, पिछले डेढ़ साल से अफगानिस्तान में एक अमेरिकी सैनिक की मौत लड़ाई में नहीं हुई थी और जब अमेरिका ने लौटना शुरू किया तो एक हमले में उसके 13 सैनिक मारे गए! इस्लामिक स्टेट खुरासान ने इस हमले की जिम्मेदारी ली है। उसने अपना इरादा जाहिर कर दिया है कि उसे इस तालिबान के खिलाफ खूनी लड़ाई लड़नी है।
पिछले कुछ समय से इस्लामिक स्टेट खुरासान की स्थिति कमजोर हो रही थी और यह खत्म होने की कगार पर था। वाशिंगटन के एक थिंकटैंक के लिए किए गए अध्ययन में सौरव सरकार ने बताया था कि 2020 में आईएस-के ने 11 हमले किए थे, जबकि एक साल पहले 2019 में उसने 343 हमले किए थे। इस अध्ययन के मुताबिक एक समय में आईएस-के में साढ़े हजार आतंकी थी, जिनकी संख्या कम होकर चार हजार तक रह गई है। असल में यह 2014 में पाकिस्तान में बना था और लंबे समय तक पाकिस्तान समर्थिक आतंकवादियों के नियंत्रण में था।
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